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द भारत भूषण आर्यजख्म मेरे क्या कहें कैसा पता देने लगेसांस थी जिस सांस से उसका पता देने लगेजानते थे हश्र अपना आंधियों के सामनेहम दिए फिर भी उन्हें अपना पता देने लगेतोड़ने से आइना कब मिट सकीं सच्चाइयांजख्म मेरे हाथ के मेरा पता देने लगेशाम से ही जब शहर के बन्द दर सब हो गएगांव वो छूटे हुए क्या-क्या पता देने लगेप्यार की बातें यहां अब हाथ का मिलना यहांसब फकत उम्दा लतीफों का पता देने लगे25
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