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नेपाल में सम्पन्न दक्षेस विदेश मंत्रियों की बैठक में

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Aug 9, 2002, 12:00 am IST
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दिंनाक: 09 Aug 2002 00:00:00

आतंकवाद के विरुद्ध मोर्चा कसा… और पाकिस्तान के मंसूबे पर फिर पानी फिराद काठमांडू से राकेश मिश्रदक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) के सदस्य राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों की दो दिवसीय बैठक नेपाल की राजधानी काठमांडू में गत 22 और 23 अगस्त को सम्पन्न हुई। नेपाल के प्रधानमंत्री श्री शेर बहादुर देउबा ने बैठक का उद्घाटन करते हुए कहा कि क्षेत्रीय एवं वि·श्वव्यापी आतंकवाद आज सभी के लिए चिन्ता का विषय है। अत: 11वें दक्षेस शिखर सम्मेलन में आतंकवाद नियंत्रण सम्बंधी जो सन्धि पारित हुई थी, उसे प्रभावशाली ढंग से कार्यान्वित करना आज की पहली आवश्यकता है।एक ओर जहां प्रधानमंत्री देउबा ने आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए सामूहिक प्रयास और सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया, वहीं दक्षेस की महत्ता पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि दक्षेस आज हमारी क्षेत्रीय पहचान बन चुका है, इसलिए इसका सुदृढ़ीकरण, इसके घोषित कार्यक्रमों का क्रियान्वयन और संस्थागत क्षमता की अभिवृद्धि करना हम सभी के लिए जरूरी हो गया है। दक्षेस राष्ट्रों के दक्षिण एशियाई संघ की अवधारणा हेतु दक्षिण एशियाई स्वतंत्र व्यापार (साप्टा) के चौथे चरण की वार्ता इस वर्ष के अन्त तक होने की जानकारी भी उन्होंने दी।विदेश मंत्रालय का कार्यभार भी प्रधानमंत्री देउबा के अधीन ही है। अत: काठमांडू में सम्पन्न दक्षेस विदेश मंत्रियों की इस 23वीं बैठक की अध्यक्षता का दायित्व स्वास्थ्य मंत्री श्री शरत सिंह भण्डारी को सौंपा गया था। उन्होंने आग्रह किया कि दक्षेस क्षेत्र की जितनी भी समस्याएं हैं, उनका समाधान आपसी सहयोग और बातचीत द्वारा ही होना चाहिए।बैठक में भारत के विदेशमंत्री श्री यशवन्त सिन्हा, बंगलादेश के विदेश मंत्री श्री मुर्शीद खान, भूटान के विदेश मंत्री श्री ल्यान्पो जिग्मे वाई चिन्ले, मालदीव के विदेश मंत्री श्री फाथुल्ला जमील, पाकिस्तान के विदेश राज्यमंत्री श्री इनामुल हक और श्रीलंका के विदेशमंत्री श्री लाल गामाजे ने भाग लिया।बैठक में आर्थिक, सामाजिक और अन्य क्षेत्रों से सम्बंधित 22 प्रस्तावों के सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श के बाद उन्हें पारित किया गया।लेकिन, इस बैठक में भी आतंकवाद का मुद्दा ही छाया रहा। सदस्य देशों ने सभी प्रकार के आतंकवाद को मिटाने पर सहमति जताई।पाकिस्तान के विदेश राज्यमंत्री ने इस बैठक में भी द्विपक्षीय मामलों को उठाने की पूरी कोशिश की थी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री चाह रहे थे कि कश्मीर समस्या को दक्षेस बैठक में उठाया जाए। लेकिन भारतीय विदेशमंत्री श्री यशवन्त सिन्हा ने यह कहकर उनके मंसूबे पर पानी फेर दिया कि दक्षेस की किसी भी बैठक में द्विपक्षीय मामलों को नहीं उठाया जा सकता। श्री सिन्हा ने कहा-दक्षेस का उद्देश्य इस क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का सामूहिक प्रयास द्वारा समाधान करके विकास करना है।अन्य देशों के विदेश मंत्रियों ने भी भारतीय विदेश मंत्री के कथन का समर्थन किया और पाकिस्तान के विदेश मंत्री अलग-थलग पड़ गए। हारकर उन्हें अपने इरादे को त्याग देना पड़ा। उल्लेखनीय है कि दक्षेस के 11वें शिखर सम्मेलन में नेपाल के प्रधानमंत्री श्री देउबा ने भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के बीच वार्ता कराने की जो-तोड़ कोशिश की थी। लेकिन देउबा का प्रयास सफल नहीं हुआ था। दक्षेस बैठक की समाप्ति के बाद श्री यशवन्त सिन्हा की दो दिवसीय औपचारिक नेपाल यात्रा प्रारम्भ हुई। अपनी नेपाल यात्रा के क्रम में श्री सिन्हा ने नेपाल नरेश श्री 5 ज्ञानेन्द्र, प्रधानमंत्री श्री शेर बहादुर देउबा, उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री श्री खुम बहादुर खडका व विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से मिलकर भारत-नेपाल सम्बंधों को मजबूत करने और आपसी सहयोग को व्यापक बनाने पर विचार-विमर्श किया।अपनी नेपाल यात्रा के सम्बंध में नेपाल के पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच हुए संधि-समझौते यदि कार्यान्वित नहीं होते हैं तो उनका कोई महत्व नहीं रह जाता। सन्धि-समझौतों को कार्यान्वित करने में आने वाली समस्याओं को प्राविधिक-प्रशासनिक स्तरों पर दूर करने की कोशिश होनी चाहिए। यदि इन दोनों स्तर पर समस्या का निदान नहीं होता, तब राजनीतिक स्तर पर उनका समाधान करने का प्रयास होना चाहिए।पंचेश्वर परियोजना सम्बंधी प्रश्नों पर विदेश मंत्री श्री सिन्हा ने कहा-“नेपाल के प्रति भारत की धारणा हमेशा सकारात्मक रही है। नेपाल की कमजोरी का अनुचित लाभ उठाने की सोच भारत ने कभी नहीं रखी। किसी भी सन्धि-समझौते का अर्थ ही होता है, आपसी लाभ के लिए एक निश्चित बिन्दु पर पहुंचना, मान्य रास्ता खोजना। अगर सन्धि होने के बाद किसी को यह भ्रम हो जाए कि उसका शोषण किया जाएगा, तब उस सन्धि को लागू करना कठिन हो जाता है। भारत, नेपाल के आर्थिक विकास और नेपाली जनता के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में सहयोग करना चाहता है।भारतीय विदेशमंत्री ने कहा कि बहुत जल्दी ही जलस्रोतों को उपयोगी बनाने की दिशा में ठोस कार्य होने की सम्भावना है। ऐसे कार्यों में अनावश्यक विलम्ब नहीं होना चाहिए, क्योंकि प्राकृतिक स्रोत के रूप में प्राप्त पानी को अगर हम प्रयोग में नहीं ला सके तो वह बहते-बहते समुद्र में मिल जाएगा और हम मुंह देखते रह जाएंगे। इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि हम आपस में मिलकर उपलब्ध जल भण्डार का सदुपयोग करें।नेपाल में माओवादियों के हिंसात्मक आन्दोलन के सन्दर्भ में विदेश मंत्री श्री सिन्हा ने वि·श्वास दिलाया कि माओवादी आन्दोलन को नियंत्रित करने में भारत, नेपाल को पूर्ण सहयोग करता आया है और भविष्य में भी सहयोग देना जारी रखेगा, भारत में किसी को भी नेपाल के विरुद्ध काम नहीं करने दिया जाएगा। यदि कोई गुप्त रूप से भारत में रहकर नेपाल विरोधी हरकत करता है तो उसकी सूचना मिलते ही हम ऐसे तत्वों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे।18

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