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माटी का मन एक और एक का कमाल

Archive Manager by
Aug 9, 2002, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Aug 2002 00:00:00

द डा. रवीन्द्र अग्रवालशताब्दी के सबसे भयंकर सूखे की सबसे ज्यादा मार पड़ी, बेजुबान पशुओं पर। राजस्थान में कई स्थानों पर तो चारा अनाज से भी महंगा बिक रहा है। पशुओं के लिए चारे-पानी की व्यवस्था कर पाने में असमर्थ किसान इन्हें खुला छोड़ देते हैं। ऐसे निराश्रित पशुओं के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं। कुछ स्थानों पर जहां गोशालाएं हैं, वहां पशुओं को चारा-पानी मिल जाता है। पर ये गोशालाएं प्राय: बड़े कस्बों और शहरों में हैं। गांवों में ऐसी व्यवस्था प्राय: नहीं है। इस कारण गांवों के निराश्रित पशु दिनभर इधर-उधर भटकते रहते हैं और जो कुछ मिल जाता है, उससे उदरपूर्ति का प्रयास करते हैं। परन्तु यह इन पशुओं के लिए पर्याप्त नहीं होता। राजस्थान के सीकर जिले के गांव सूतोद में ऐसी ही 40 गायों के लिए चारे-पानी का संकट था। अकाल राहत का शोर मचने के बावजूद अकाल राहत कार्य गांवों में कहीं दिखाई नहीं दिया। निराश्रित गायों को चारे-पानी के लिए भटकते देख सूतोद के निवासी और नौ सेना के जवान जे.पी. गोदरा ने कुछ करने की ठानी। उसने इन गायों के लिए चारा एकत्र करने का निश्चय किया। अपनी इस मुहिम के लिए उसने गांव के बच्चों को अपना सहयोगी बनाया। इन बच्चों को साथ ले उसने घर-घर से चारा एकत्र करना शुरू किया। जे.पी. गोदरा के प्रयास ने पहले दिन ही अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। किसी भी द्वार से उसकी टोली को निराश नहीं लौटना पड़ा। गायों के लिए चारे की व्यवस्था होते देख गांव के बुजुर्ग किसानों को भी गोदरा के काम की महत्ता का अहसास हुआ और वे भी उसके साथ इस पुनीत कार्य में जुट गए। बुजुर्ग किसानों के साथ जुटते ही चारे के साथ-साथ चंदा भी इकट्ठा होने लगा जिससे निराश्रित गायों के लिए पानी और आश्रय की व्यवस्था की जा सके।कहते हैं कि अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा? परन्तु नौसेना के जवान जे.पी.गोदरा ने इस कहावत को न केवल गलत सिद्ध कर दिया, बल्कि यह भी बता दिया कि हर कार्य के लिए सरकार की ओर ताकने की जरूरत नहीं। समाज अगर एकजुट हो जाए तो बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान चुटकियों में हो सकता है। सही भी है कि हर काम के लिए सरकार से अपेक्षा करना सही लोकतंत्र नहीं है। सही लोकतंत्र इसी बात में है कि समाज अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करे जिससे सामाजिक कार्यों में सरकार का हस्तक्षेप भी कम हो। अगर हम यह अपेक्षा करेंगे कि सरकार सब कुछ करे तो सामाजिक कार्यों में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ेगा और यही हस्तक्षेप अन्तत: लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होगा।8

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