दिंनाक: 07 Jul 2002 00:00:00 |
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तिवारी की उलझनउत्तराञ्चल में कांग्रेस की राजनीति गरमाने लगी है। मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को पद पर बने रहने के लिए विधानसभा चुनाव लड़ना जरूरी है। उनके लिए रामनगर (कार्बेट पार्क) के विधायक योगम्बर रावत ने अपनी सीट भी छोड़ दी है। इसके बावजूद श्री तिवारी उपचुनाव लड़ने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। उन्हें खतरा विपक्ष से नहीं अपितु चिन्ता इस बात की है कि कहीं चुनाव जीतने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत उनकी कुर्सी न हिला दें। उल्लेखनीय है कि उत्तराञ्चल में कांग्रेस ने चुनाव हरीश रावत की अगुवाई में ही जीता था, आज भी उनके समर्थक विधायकों की संख्या अधिक है। श्री तिवारी ने अभी तक सांसद पद से भी त्यागपत्र नहीं दिया है। संभवत: वे अभी तय नहीं कर पा रहे हैं कि क्या करें? पिछले दिनों उपराष्ट्रपति पद की ओर भी उनका ध्यान गया था, परन्तु राजनीतिक समीकरणों ने उनकी इस आशा पर पानी फेर दिया।कश्मीरी विस्थापितों का दर्दआज लाखों कश्मीरी पंडित शरणार्थी शिविरों में अमानवीय परिस्थितियों में जीने को मजबूर हैं। इन शिविरों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। इनमें रहने वाले लोगों में बढ़ती बीमारियों के परिणामस्वरूप मृत्यु दर में भी काफी वृद्धि हुई है। घाटी से जबर्दस्ती विस्थापित किए गए ये कश्मीरी पंडित, विस्थापन काल से अब तक मानसिक तनाव तथा पाचन संबंधी विकार झेल रहे हैं। जम्मू, कठुआ और उधमपुर के शिविरों में जहां मृत्युदर बढ़ी है, वहीं जन्म दर में भी कमी आई है। मधुमेह और अति उच्च रक्तचाप जैसे रोग तो लगभग महामारी का रूप धारण कर चुके हैं। 1990 में फरवरी और जून माह के मध्य जिन तीन लाख पंडितों को घाटी से अपने पुश्तैनी घर छोड़कर भागना पड़ा उनमें से अधिकांशत: जम्मू के आस-पास तंबू वाले शिविरों और किराए के मकानों में रह रहे हैं। अनेक लोगों ने आजीविका की तलाश में देश के विभिन्न राज्यों का रुख किया था।इस बीच 1991-92 में केन्द्र सरकार की सहायता से जम्मू-कश्मीर सरकार ने विस्थापितों को एक कमरे का मकान बनाने की इजाजत दे दी। ये मकान शुरू में जम्मू के बाहरी क्षेत्र मुठी और पुर्खु में बनाए गए। धीरे-धीरे मिश्रीवाला और नगरोटा में भी ऐसे मकान बनाए गए। किंतु स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ।प्रख्यात चिकित्सक और पनुन कश्मीर के नेता श्री के.एल. चौधरी ने विभिन्न शिविरों में अनेक सर्वेक्षण किए हैं। उनका कहना है कि पिछले दशक के दौरान शिविरार्थियों में हृदय, गुर्दे, अल्सर, गंभीर मनोवैज्ञानिक और मानसिक असंतुलन जैसी बीमारियों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। 1991 में उन्होंने टायफाइड के पांच हजार मामले, 1993 में डेंगू बुखार के 15 हजार मामले और 1997 में हेपेटाइटिस के तीन हजार मामले दर्ज किए थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार जम्मू, उधमपुर और कठुआ में ग्यारह शिविरों में 17 हजार 621 व्यक्ति रह रहे हैं। इनके अतिरिक्त 981 व्यक्ति जम्मू में सात स्थानों पर शिविरों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर रह रहे हैं।।पनुन कश्मीर द्वारा प्रकाशित पुस्तिका के अनुसार जम्मू के विभिन्न शिविरोंे तथा अन्य स्थानों पर पिछले चार सालों में पांच हजार से भी ज्यादा कश्मीरी पंडित मारे गए हैं।जिसकी लाठी, उसकी …अगर सत्ता का आतंक देखना हो तो बिहार से उपयुक्त स्थान नहीं मिलेगा। लालू प्रसाद यादव के रिश्तेदारों का आतंक पटना ही नहीं पूरे राज्य में व्याप्त है। हाल ही में लालू के भाई सुखदेव राय और उनके पुत्रों ने पटना के राजाबाजार में जो हरकत की, उससे यह साफ हो जाता है कि अगर सत्ता का डंडा हाथ में हो तो कोई भी कुछ भी कर सकता है। दरअसल हुआ यूं कि इस क्षेत्र में सुखदेव राय ने एक मकान किराए पर ले रखा है जिसमें वे शराब की दुकान चलाते हैं। मकान के मालिक रामे·श्वर चौरसिया ने किराया मांगा तो 24 जून की रात सुखदेव अपने बेटे, दामाद और कुछ गुंडों को लेकर वहां पहुंच गए। इन लोगों ने चौरसिया को मारा-पीटा और हवा में गोलियां दाग कर क्षेत्र में दहशत का वातावरण बना दिया। रामे·श्वर चौरसिया का कहना था कि वे रंगदारी के रूप में पचास हजार रुपए की मांग कर रहे थे तथा उसका मकान हथियाने की भी धमकी दे रहे थे। हालांकि बाद में स्थानीय व्यवसायियों ने गुंडों की एक गाड़ी जला दी। जनता के भारी दबाव के बाद पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया, किन्तु किसी भी पुलिस अधिकारी में इतना साहस नहीं है कि वह अभियुक्तों को गिरफ्तार कर सके। आखिरकार वे सत्तापोषित गुंडे जो ठहरे! प्राथमिकी दर्ज करवाने के बाद भी प्रशासन अभियुक्तों के विरुद्ध कार्रवाई करने से हिचक रहा है। लोगों का यह भी कहना है कि पटना की अधिकांश शराब की दुकानों पर लालू-राबड़ी के रिश्तेदारों का आधिपत्य है।9
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