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अर्थव्यवस्था सुधारने का

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Jul 4, 2002, 12:00 am IST
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दिंनाक: 04 Jul 2002 00:00:00

एकमात्र उपाय विनिवेश ही तो नहीं-हसमुख भाई दवेराष्ट्रीय महामंत्री, भारतीय मजदूर संघविनिवेश मामले में सरकार द्वारा की जा रही जल्दबाजी ठीक नहीं है। बजट पूर्व हुई बैठक में भी हमने कहा कि लाभ देने वाले सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश नहीं करना चाहिए। और यदि सरकार इस दिशा में आगे बढ़ना ही चाहती है तो एक त्रिपक्षीय समिति इस पर फैसला करे, जिसमें केन्द्र सरकार, प्रबंधन और कर्मचारियों की भागीदारी हो। मार्डन फूड्स या बाल्को के विनिवेश में जो गलती हुई, वह गलती नहीं दोहराई जानी चाहिए। बीमार और घाटा देने वाली कम्पनियों का विनिवेश ठीक है। राष्ट्रीय कपड़ा निगम (एन.टी.सी.) जैसे अनेक बीमार सार्वजनिक उपक्रम हैं, हैदराबाद की कई दवा निर्माता कम्पनियां हैं। उनका विनिवेश तो ठीक है लेकिन लाभ देने वाले सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश गलत है। आज विनिवेश से आ रहे धन को वित्तीय घाटे को पूरा करने में उपयोग करने की बजाय औद्योगिक विकास में लगाना चाहिए।निजी हाथों को सौंपने के बजाय पहले सार्वजनिक उपक्रमों को चलाने का मौका कर्मचारियों को देना चाहिए। इन उपक्रमों में घाटे का कारण कर्मचारी तो नहीं हैं फिर विनिवेश करके उनका भविष्य अधर में क्यों लटकाया जा रहा है? रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार इन उपक्रमों में 57 प्रतिशत घाटा कुप्रबन्धन के कारण हुआ सिर्फ 3 प्रतिशत के लिए कर्मचारी दोषी हैं। फिर इसकी क्या गारंटी कि उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपने से बेरोजगारी नहीं बढ़ेगी। वैसे तो इन संस्थानों को स्वायत्तशासी संस्थान कहा जाता है, लेकिन एक भी निर्णय मंत्रालयों और नौकरशाहों के बिना नहीं होता इस कारण भी इनमें काम की गति और मात्रा में कमी आती है।सरकार को लगता था कि उदारीकरण के बाद विदेशी निवेश बढ़ेगा लेकिन वह बढ़ा नहीं, सकल घरेलू उत्पाद का लक्ष्य भी हासिल नहीं हुआ। पहले 5 था अब 4 पर आ गया। रोजगार भी घटा है। कारखाने बंद होने से बेरोजगारी बढ़ रही है। सरकार वि·श्व व्यापार संगठन, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, वि·श्व बैंक और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दबाव के कारण तेजी से विनिवेश कर रही है। लगता है हमारी नीतियां अमरीकोन्मुखी हैं। सरकार के भीतर भी नौकरशाहों के रूप में अमरीकी एजेन्ट बैठे हैं। सरकार ने तय कर लिया है कि सार्वजनिक उपक्रम हम नहीं चलाएंगे और उस पैसे से बजट घाटा पूरा करेंगे इसलिए आनन-फानन में विनिवेश किया जा रहा है। अर्थव्यवस्था सुधारने का एकमात्र उपाय विनिवेश ही नहीं है। विनिवेश के कारण निजीकरण होगा और निजी हाथों में आने के कारण कर्मचारियों का शोषण बढ़ेगा, उनकी संख्या कम होगी। अस्थायी कर्मचारियों की संख्या और ठेकेदारी प्रथा बढ़ेगी। और फिर यह भी जरूरी नहीं कि निजी उद्योग समूह उन संस्थानों को कायदे से चला भी पाएं। विदेश संचार जैसे संवेदनशील क्षेत्र निजी हाथों में दिए जाने से वहां गोपनीयता जैसी चीज नहीं रह जाएगी जबकि कुछ क्षेत्रों में गोपनीयता बहुत आवश्यक है,जैसे रक्षा क्षेत्र में। रक्षा प्रतिष्ठानों का विनिवेश करेंगे तो उसका क्या परिणाम होंगे? कुछ क्षेत्र सरकार के पास ही रहने चाहिए। वहां लाभ-हानि का प्रश्न नहीं है। हमारी कार्य-संस्कृति सुधर जाएगी तो स्थितियां भी सुधर जाएंगी और यह कार्य संस्कृति उच्च अधिकारियों से लेकर साधारण कर्मचारियों तक में होनी चाहिए। सार्वजनिक उपक्रमों को चलाने की जिम्मेदारी सिर्फ कर्मचारी की नहीं, सभी की है।29

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