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गंगा की निर्मलता और हिमालय की विशालता है हिन्दू धर्म में मैं हिन्दू क्यों हूं?

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Mar 11, 2002, 12:00 am IST
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दिंनाक: 11 Mar 2002 00:00:00

द राजेन्द्र अवस्थी,वरिष्ठ साहित्यकारमैं हिन्दू हूं और इस पर मुझे गर्व है। हिन्दू धर्म एक जीवन शैली है। हिन्दू होने का मतलब है एक संस्कारयुक्त, अच्छी जीवन शैली में जन्म लेना, पनपना और बढ़ना। जो व्यक्ति हिन्दू होगा, वह धर्म-मत-पंथों का आदर करेगा लेकिन साथ ही अपने अस्तित्व एवं व्यक्तित्व को भी सुरक्षित रखेगा।मैं हिन्दू हूं, इसलिए अपनी आदतों और संस्कारों को उसी तरह निर्मल रखना चाहता हूं जैसे गंगा का पानी तथा उसी आदर के साथ जीना चाहता हूं जैसे हिमालय पर्वत। मैं हिन्दू हूं, इसलिए किसी एक धर्म या जाति नहीं बल्कि दुनिया की हर जाति व पंथ का स्वागत करते हुए अपने परिवेश के धर्म को मानता हूं।स्वतंत्रता से पूर्व जब गांधी जी संघर्ष कर रहे थे या फिर गांधी जी से पहले भी जिन महापुरुषों ने संघर्ष किया था, उस समय भी वह लड़ाई न तो मुसलमानों के विरोध में थी और न ही किसी अन्य के विरोध में। वह लड़ाई इसलिए भी नहीं थी कि अपने देश से अंग्रेजों को भगाकर सत्ता हासिल की जाए। असल में वह लड़ाई थी- हमारे संस्कारों, प्राचीन सभ्यता व उस सभ्यता के शिखरखण्डों की सुरक्षा करने की। जो देश अपनी प्राचीनता को सुरक्षित नहीं रख सकता, उस देश का कोई अर्थ नहीं है और उस देश के समान निम्नस्तरीय देश भी कोई नहीं है।स्वतंत्रता की लड़ाई किसी एक या कई व्यक्तियों को बाहर करने के लिए नहीं थी बल्कि अपनी संस्कृति और सभ्यता के केन्द्रों की रक्षा के लिए लड़ी गई थी। यही वह सभ्यता है जो सदियों से हमें सींचती और पल्लवित करती आई है।हिन्दुत्व ने राजनीति और समाज को काफी गहरे तक प्रभावित किया है। सवाल केवल ग्रहणशीलता का है कि किस व्यक्ति ने उसे किस तरह ग्रहण किया है। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति की ग्रहणशीलता ही इस बात को तय करती है कि वह किस रास्ते पर जाना चाहता है। यदि उसके विचार और चेतना शक्ति बिल्कुल गलत हैं तो यह भी उसकी ग्रहणशीलता है जिसके आधार पर वह अपनी दिशा तय करता है। भारत का मुस्लिम या ईसाई समाज कहीं बाहर से नहीं आया था। वे यहीं हमारे भीतर से जन्मे हैं। उन्होंने कुछ पैसों के लिए अपना धर्म बदला लेकिन बाद में उन्हें पछताना ही पड़ा। किन्तु कुछ लोग ऐसे भी थे जो प्रतिकूल परिस्थतियों में भी अपने धर्म से जुड़े रहे। अपने धर्म के प्रति उनकी दृढ़ आसक्ति के पीछे दर्शन यही था कि जब हमें अपनी जीवन-मृत्यु के निश्चित समय का ही पता नहीं है तो जो शेष जिंदगी है, वही हमारी है, इसलिए उसे ही सम्मान से जिया जाए। यही सोच और दृढ़ता हिन्दू धर्म का आधार है और यही हिन्दुत्व है।26

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