दिंनाक: 11 Mar 2002 00:00:00 |
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द विनोद मेहतासंपादक, आउटलुक (अंग्रेजी)हिन्दू धर्म तत्वत: एक वैश्विक दृष्टि है: दैवीय मान्यताओं का सार है, मानव की स्थिति को दर्शाने वाले धर्म की सैद्धान्तिकी है, जो समाज को उस नैतिकता और संस्कारों का भान कराती है और दैनिक जीवन के क्रियाकलापों- शुद्धता, प्रदूषण, मृत्यु और विवाह से- संबंधित है। हिन्दू धर्म निराकार और कई मार्गों का मिश्रित रूप है और इसका न तो कोई मठ रहा, न इसके धर्म सिद्धान्तों का निश्चित स्वरूप। स्मरण रहे हिन्दू शब्द सिन्धु से बना है और सिन्धु वह नदी है जिसका धर्म है सागर तक पहुंचना और मार्ग में जिस भूमि से यह गुजरती है, उसको पोषित करना। अत: हिन्दू धर्म विचार के स्वरूप से बढ़कर एक जीवनशैली है।निश्चित ही, हिन्दुत्व ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक जीवन को प्रभावित किया है। हिन्दुत्व यह स्वीकारने से मना करता है कि समन्वय हिन्दू धर्म की प्राकृतिक व प्राचीन अन्त:प्रेरणा है। लेकिन रा.स्व.संघ- विश्व हिन्दू परिषद – भाजपा बांटने की जो भाषा बोलते हैं, उसके चलते हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व समानार्थक हो गए हैं। आखिर- एक आधुनिक, तीखी राष्ट्रवादी विचारधारा, जो पुनर्कल्पित वैभव के चहुंओर गढ़ी गई है, हिन्दू धर्म की समानार्थक कब से हो गई? हिन्दुत्व के अनुयायियों द्वारा हिन्दू धर्म को ओढ़ लेने का आस्तिक और राजनीतिक रूप से उदार हिन्दुओं पर कठोरतम असर हुआ है। आज हिन्दू धर्म पर समाज के दक्षिणपंथियों का कब्जा होने का खतरा मंडरा रहा है। यह हिन्दुत्व ही है जिसके कारण हिन्दू धर्म के प्रखर, गहन और चिरन्तन गुणों पर अब चर्चा ही नहीं होती। इसके परिणामस्वरूप हिन्दू समाज कष्ट में है।साथ ही, हिन्दुत्व के आग्रही हमसे यह बात मनवाना चाहते हैं कि हिन्दू धर्म खतरे में है। परन्तु इन थोड़े से लोगों को न तो हिन्दू धर्म में कोई दिलचस्पी है, न समाज में, जहां हिन्दू आस्था फल-फूल रही है जो भारत में निर्मित हो रहे मंदिरों की संख्या और बढ़ती धार्मिक प्रवृत्ति से परिलक्षित होती है। इस प्रकार संकट हिन्दू राष्ट्रवाद का है न कि हिन्दू धर्म का। एक ओर तो हिन्दुत्व उदार हिन्दुओं (जिनकी संख्या ज्यादा है) को गुमराह कर रहा है तथा दूसरी ओर देश में साम्प्रदायिक भावनाएं भड़का रहा है।28
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