सरकार युद्ध के
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सरकार युद्ध के

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Feb 6, 2002, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Feb 2002 00:00:00

स्पष्ट संकेत दे-कैप्टन भरत वर्मा (अवकाश प्राप्त) संपादक, इंडियन डिफेन्स रिव्यूजब तक जमीन पर लड़ाई नहीं होती तब यह नहीं कहा जा सकता कि युद्ध होगा या नहीं होगा। क्योंकि ऐसे जोशीले भाषण तो कई बार सुन चुके हैं। लेकिन यह सच है कि पाकिस्तान से निर्णायक लड़ाई हमें लड़नी ही पड़ेगी आज लड़ें, दो महीने बाद लड़ें या दो साल बाद लड़ें, यह सरकार लड़े या अगली सरकार लड़े। पाकिस्तान हमारे लिए एक बुरे दृश्य की तरह है, आंख बंद कर लेने से यह गायब होने वाला नहीं है। और अब तो स्पष्ट रूप से युद्ध की स्थिति दिखाई दे रही है। वैसे 13 दिसम्बर को संसद पर हमले के बाद ही युद्ध की स्थिति बन गई थी। हमें तभी युद्ध की तरफ बढ़ना चाहिए था। लेकिन पांच महीने हमारी फौजें वहां रहीं और दुश्मन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया, तो अब युद्ध होना ही चाहिए। क्योंकि सरकार बहुत दिन से ऐसी जोशीली बातें कर रही है और जमीन पर कोई कार्रवाई दिखाई नहीं दे रहा तो अब यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि सरकार के पास कोई ऐसी रणनीति है, जिससे लगे कि वह युद्ध करने को तैयार है। लगता है सरकार भी अपनी रणनीति में बहुत स्पष्ट नहीं है। फिर भी जिस तरह सैन्य गतिविधियां दिखाई दे रही हैं, हमारा नौ सैनिक बेड़ा अरब सागर की तरफ बढ़ रहा है, वह स्थिति युद्ध का संकेत है। देश निश्चित रूप से युद्ध की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन हमारी सरकार युद्ध लड़ेगी या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है। क्योंकि देश को स्पष्ट संकेत सरकार की तरफ से नहीं है, किसी भी लड़ाई को लड़ने के लिए देशवासियों को स्पष्ट संकेत देना बहुत जरूरी होते हैं, ताकि वे भी मानसिक रूप से तैयार रहें, उनका मनोबल बढ़े।युद्ध में भारत की स्थिति क्या होगी, यह हमारी रणनीति पर निर्भर करेगा कि हम क्या चाहते हैं। यदि हम नियंत्रण रेखा पार कर दुश्मन के कुछ आतंकवादी शिविरों को नष्ट करें तो हमें कुछ हासिल नहीं होगा, न आतंकवाद हटेगा, न स्थिति में कोई बदलाव आएगा। अगर हिन्दुस्थान की रणनीति पूर्ण युद्ध की है तो उस स्थिति में सरकार को युद्ध के हर पहलू पर ध्यान देते हुए तैयारी करनी चाहिए। इसमें मीडिया की तैयारी भी एक महत्वपूर्ण अंग है। क्योंकि युद्ध के समय मीडिया एक बहुत बड़ा शक्तिवद्र्धक हथियार का काम करता है। अगर हम अंतरराष्ट्रीय मीडिया को देखें तो साफ पता चल जाता है कि शीतकालीन युद्ध की स्थिति में वह हमारे विरुद्ध है। और वह पाकिस्तान से ऐसे वक्तव्य भी जारी करवा रहा है। उदाहरण के लिए बी.बी.सी. में रशीद कुरैशी को तीन बार दिखाया जा रहा है तो निरुपमा राव को सिर्फ एक बार दिखाया जा रहा है। हाल ही में ऐसी ही एक रपट छपी कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तान परमाणु अस्त्रों का प्रयोग करने के लिए तैयार था। वस्तुत: यह भारत के खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक युद्ध है भारत को डराने के लिए। हमारा मीडिया इसका जवाब नहीं दे पा रहा, बल्कि उसी बात को दोहरा रहा है,पाकिस्तानी समुद्री क्षेत्र में इस समय अमरीकी सेनाओं का जमावड़ा है, इसके दो उद्देश्य हैं-एक, भविष्य में तेल भंडार पर निगाह रखना, दूसरा, इस्लामी परमाणु बम को जिहादियों के हाथ में जाने से रोकना। इस समय भारत और पाकिस्तान की सीमा पर 4 अमरीकी उपग्रह निगरानी कर रहे हैं। चौबीस घंटे ये हम पर नजर रखे हुए हैं। दरअसल पश्चिम नहीं चाहता कि भारत युद्ध लड़े। न ही पाकिस्तान युद्ध लड़ना चाहता है। पाकिस्तान की हैसियत युद्ध लड़ने की नहीं है, क्योंकि छद्म युद्ध से वह अपना लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर रहा है।परमाणु युद्ध की बात करके पाकिस्तान भारत को ब्लैकमेल कर रहा है और अमरीका उसका साथ दे रहा है। लेकिन अमरीका पाकिस्तान को परमाणु शस्त्रों का प्रयोग नहीं करने देगा।जब पूर्ण युद्ध की तैयारी की बात करें तो उसमें निचले स्तर से लेकर परमाणु अस्त्रों तक हमारी तैयारी होनी चाहिए। क्योंकि जब दो देश परमाणु शक्ति-सम्पन्न होते हैं तो उनके बीच युद्ध सीमित युद्ध नहीं हो सकता। सीमित युद्ध कोई चीज नहीं है। सीमित युद्ध तब होता है, जब इस्रायल और फिलस्तीन जैसी स्थिति हो। इस्रायल शक्ति सम्पन्न है और फिलस्तीन निहत्था है। लेकिन यहां तो दोनों देश शक्ति- सम्पन्न हैं।हम युद्ध लड़ें तो हर पहलू से युद्ध लड़ें। हर दिशा में युद्ध लड़ें, हर सीमा पर युद्ध लड़ें, इसमें छद्म युद्ध भी हो और गुरिल्ला युद्ध भी, इसमें गुप्तचर संस्थाओं का भी उतना ही योगदान है, जितना सीधी पारम्परिक सेनाओं का, इसके साथ ही मीडिया के माध्यम से मनोवैज्ञानिक युद्ध भी लड़ा जाना चाहिए और कूटनीतिक युद्ध भी होना चाहिए कि हम सिंधु जल संधि को रद्द कर दें जिससे शत्रु खेमे में दहशत का माहौल बन जाए। सिंधु का पानी रोक देंगे तो वहां त्राहि-त्राहि मच जाएगी, वह घुटने टेक देगा।मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। यह युद्ध का माहौल है मीडिया को समझना चाहिए। यदि मीडिया इस तरह देश के विरुद्ध गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाएगा तो इससे देश को नुकसान होगा। जब पश्चिमी मीडिया आपके खिलाफ है, तब आपका अपना मीडिया भी आपके खिलाफ खड़ा हो जाए तो उसमें देश का बहुत नुकसान होगा। इसमें गलती सरकार की भी है। कारगिल युद्ध के दौरान शुरू में मीडिया को सही समय पर सही जानकारी नहीं दी गई न उनके पास प्रवक्ता थे, न पूरी जानकारी। इस बार युद्ध में मीडिया प्रबंधन भी कुशलता से होना चाहिए। सरकार एक संयुक्त मीडिया प्रकोष्ठ बनाए जिसमें रक्षा विशेषज्ञों, सेना के अवकाशप्राप्त अधिकारियों, विदेश सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारियों को रखा जाए जो बारी-बारी से प्रकोष्ठ में उपलब्ध रहें। ये हर पल, हर टेलिविजन चैनल, हर अखबार और रेडियो प्रसारणों पर नजर रखें। अगर कोई गलत वक्तव्य आता है तो उसकी जानकारी तुरन्त प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री को दें और उसका जवाब भी तैयार करके दें, जिससे सब एक ही आवाज में उसका जवाब दें। सरकार इन विशेषज्ञों को अपनी राय बताती रहे और वे मीडिया को आगे बताते रहें, जिससे एक आपसी समझ बने। हिन्दुस्थान का मीडिया कम से हिन्दुस्थान की तरफदारी करे।ये बिंदु पूर्ण युद्ध की रणनीति का हिस्सा होने चाहिए। यदि युद्ध होता है तो पिछले 54 साल की तरह अब कोई उदारता दिखाने की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान की अपेक्षा हमारी सैन्य क्षमता बहुत अधिक है। हमारी नौसेना का लक्ष्य पाकिस्तान की सैन्य और औद्योगिक क्षमता पर वार करना होना चाहिए, वह कराची बंदरगाह पर उनकी नौसेना को तो रोके ही उसे वायुसेना के माध्यम से पूरे देश में उनके औद्योगिक ठिकानों पर वार करना चाहिए, जिससे आगामी 20-25 साल तक वह हमारी तरफ आंख उठाकर न देख सके।सैन्य क्षमता देखें तो पाकिस्तान के पास 350 युद्धक विमान हैं, जबकि भारत के पास 700 युद्धक विमान हैं। उनके पास 2400 टैंक हैं हमारे पास 3,400 टैंक हैं, लेकिन ये आंकड़े तक कोई मायने नहीं रखते, जब तक कि सैन्य कार्रवाई को सम्बल देने के लिए भू राजनीतिक रणनीति न बने। पाकिस्तान में इस समय 20 लाख जिहादी बैठे हैं, और वहां सैनिकों की संख्या 6 लाख है और 2004-2005 तक इन जिहादियों की संख्या पांच गुना बढ़ जाएगी। फिर इन पर नियंत्रण करना मुश्किल होगा। इसलिए युद्ध अभी भी होना चाहिए। भले ही पेंटागन में बैठे अधिकारी भारत के खिलाफ हों पाकिस्तान के साथ दें, लेकिन हम युद्ध में जीत की पूरी तरह सक्षम हैं, सिर्फ जरूरत इस बात की है कि हमारे राजनेताओं के खून में उबाल हो। और भू-राजनीतिक रणनीति के बिना कोई युद्ध जीता नहीं जा सकता। (बातचीत पर आधारित) द20

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