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समृद्धि की उड़ान
सुविख्यात अर्थशास्त्री एवं पूर्व कृषिमंत्री श्री सोमपाल शास्त्री राजनेताओं के उस वर्ग में हैं, जो बहुपठित और बहुआयामी व्यक्तित्व वाला है हैं। अत्यंत व्यस्त रहते हुए भी वे यज्ञ-परम्परा का निर्वहन करते हैं, आयुर्वेद एवं वानस्पतिक ज्ञान के विशेषज्ञ हैं, भारतीय परम्परा और दर्शन के अध्येता हैं। सम्प्रति वे योजना आयोग के वरिष्ठ सदस्य (कृषि) हैं। प्रस्तुत है वर्ष नए अर्थसंकल्प पर उनसे हुई बातचीत के संपादित अंश-
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सभी वर्गों को लाभ मिलेगा
-सोमपाल शास्त्री
वरिष्ठ सदस्य,योजना आयोग
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— दीपा गोसाईं
थ् यह अर्थसंकल्प गरीब जनता के लिए कैसा रहा? इससे गरीबों को क्या मिल पाएगा?
दृ सदैव यही सोचा जाता है कि गरीबों की सहायता करना सरकार का कर्तव्य है। किन्तु वस्तुत: उनकी सहायता उन्हें स्थायी रूप से उत्पादक कार्यों में लगाकर की जानी चाहिए जिससे कि वे सम्मानपूर्वक अपनी आजीविका कमा सकें और अपने भरोसे रह सकें। सरकार का कत्र्तव्य होता है, बाह्र आक्रमणों व आंतरिक कठिनाइयों से उनकी रक्षा करना तथा आजीविका कमाने में भी उनकी सहायता करना। जैसे, ग्रामीण क्षेत्रों में हुई अधिक पैदावर को सुरक्षित मण्डी तक पहुंचाने के लिए सड़क मार्ग आवश्यक है, और यह कार्य है सरकार का।
अब यह चिंतन पुराना और संदर्भहीन है कि सरकार सीधे-सीधे गरीबों को कुछ देकर उनकी गरीबी हटा दे। वस्तुत: सरकार को कुछ ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे उत्पादन का आधार बढ़े तथा प्रतिव्यक्ति की उत्पादकता बढ़े। इस प्रकार अन्य प्रकार के सभी विकास स्वत: ही हो जाएंगे। होना यह चाहिए कि सरकार द्वारा एकत्रित धन से सार्वजनिक क्षेत्रों में निवेश किया जाए और उसके माध्यम से गरीबों को लाभ मिले। यह कहना कि इस अर्थसंकल्प से गरीबों को लाभ नहीं मिलेगा, ठीक नहीं है। जब विकास दर बढ़ेगी तो निश्चित ही उन्हें लाभ होगा।
थ् क्या इस अर्थसंकल्प से वै·श्वीकरण को प्रोत्साहन मिलेगा?
दृ देखिए, वै·श्वीकरण में तो निश्चित रूप से वृद्धि होगी। हम यह क्यों भूल जाते हैं कि जब हम अपने बाजार व मंडियां दूसरों के लिए खोल रहे हैं तो दूसरों के बाजार व मंडियां भी तो हमारे लिए खुल जाएंगे। और जहां तक मात्रात्मक प्रतिबंध की बात है, वित्त मंत्री ने भी जोर देकर यह कहा है कि जब भी आवश्यकता होगी, त्वरित गति से आयात शुल्क बढ़ा दिया जाएगा। हमारे देश में खाद्य तेल जैसी कुछ वस्तुएं ऐसी हैं जिनकी कमी रहती है, उनके ऊपर उन्होंने एक उचित कीमत लगा दी है ताकि जब उन्हें आयात करने की आवश्यकता होगी तो सुविधानुसार उसे घटाया-बढ़ाया जा सके। इस क्षेत्र में यह लचीलापन रखा गया है। जहां तक वै·श्वीकरण की बात है तो पहला पक्ष यह कि यदि देश में विदेशी वस्तुएं आएंगी तो हमारे देश से वस्तुएं बाहर जाएंगी भी। दूसरे, हमें यह देखना है कि हमारी क्षमता किस क्षेत्र में अधिक है। वि·श्व व्यापार संगठन मात्र एक हौव्वा नहीं है। वि·श्व व्यापार संगठन चुनौती के अतिरिक्त एक अवसर भी प्रस्तुत करता है।
थ् विदेशी पूंजी निवेश, जितना कि उम्मीद की गई थी, नहीं हो रहा है। इसका क्या कारण है?
दृ जब तक राष्ट्र में आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक वातावरण अनुकूल नहीं होगा, तो विदेशी निवेश तो क्या देशी निवेश भी नहीं हो सकता। जैसे बिहार राज्य को ही लीजिए, एक ओर तो हम बिहार को गरीब राज्य कहते हैं, दूसरी तरफ वहां अधिक निवेश होने के स्थान पर वहां की कुल 23 प्रतिशत बचत ही विकास कार्यों में खर्च होती है और शेष 77 प्रतिशत धन दूसरे विकसित कहे जाने वाले राज्यों में निवेश किया जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बिहार में न उचित कानून व्यवस्था है और न ही प्रशासनिक वातावरण ही उद्योग-धन्धों और पूंजी निवेश के लिए अनुकूल है। साथ ही मूल सरंचना या आधारभूत ढांचे का भी घोर अभाव है। अर्थात् विदेशी पूंजी निवेश हो या स्वदेशी पूंजी निवेश, वह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपने निवेश हेतु राष्ट्र में उचित वातावरण उत्पन्न किया है या नहीं? हमने पिछले वर्षों के आंकड़ें देखे हैं, किसी भी वर्ष भारत में 2 या 3 अरब डालर से ज्यादा विदेशी पूंजी का निवेश नहीं हुआ है। जबकि चीन में इससे सैकड़ों गुना अधिक विदेशी निवेश हुआ है, क्योंकि उन्होंने अपने श्रम कानून व अन्य प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार किया है।
एक अन्य बात यहां विदेशी या देशी निवेश की अवधारणा में है। इस विषय में नियमावली बहुत अधिक जटिल है। अत: जब तक इस प्रकार की अव्यवस्थाएं नहीं सुधरतीं, विदेशी व देशी, किसी भी प्रकार का निवेश नहीं हो सकता। आज सारा ध्यान विदेशी पूंजी निवेश पर दिया जा रहा है, जैसे विदेशी पूंजी निवेश ही हमारी सभी समस्याओं का समाधान कर देगा। दूसरी ओर हमारे देशी निवेश का प्रश्न है, तो पूंजी का अभाव नहीं है। अभाव है उसके कुशलता से उपयोग का। इसलिए सारा ध्यान विदेशी पूंजी पर दिया जाना न तो व्यवाहारिक है, न आवश्यक।
थ् भारतीय अर्थव्यवस्था समृद्धि की ओर बढ़ रही है, यह ठीक है। पर क्या इस अर्थसंकल्प में दिनोंदिन गहराते अमीर व गरीब के बीच के अंतर को पाटा जा सकता है?
दृ यदि हम पूर्ववर्ती समाजवादी अवधारणा के अनुसार देखें तो जब भी आर्थिक प्रगति होती है, गरीब व अमीर के बीच का अंतर बढ़ता ही है। किन्तु गरीब वर्ग पर इसका अच्छा प्रभाव भी होता है, क्योंकि जब समृद्धि बढ़ेगी, उत्पादन बढ़ेगा तथा सेवाओं का क्षेत्र भी बढ़ेगा, उसमें सभी वर्गों की सहभागिता बढ़ती है। यह विकासोन्मुख अर्थसंकल्प है और जब प्रगति होती है तो सर्वांगीण प्रगति ही होती है। इस अर्थसंकल्प में समृद्धि की उड़ान स्पष्ट दिखाई देती है। प्रस्तुत अर्थसंकल्प में विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में, मूल ढांचागत संरचना के क्षेत्र में, निवेश को वृद्धि देने में, कराधान के ढांचे को सरलीकृत करने में आवश्यक कदम उठाए हैं। बैंकों में ब्याज की दरों को घटाया गया है, जो स्वागतयोग्य है।
थ् गरीबी रेखा से नीचे की जनसंख्या प्रतिशत के विषय में सरकारी आंकड़ों और निजी सर्वेक्षणों के बीच इतना अन्तर और विवाद क्यों हो रहा है?
दृ जहां तक निजी सर्वेक्षण का प्रश्न है, भारत में उनके आकलनों पर बहुत अधिक वि·श्वास नहीं किया जा सकता। वस्तुत: निजी सर्वेक्षण बहुत ही सीमित क्षेत्र और सीमित जनसंख्या को आधार बनाकर किया जाता है। जहां तक भारत सरकार का प्रश्न है, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन ने अभी अपने 55 वें चक्र का सर्वेक्षण प्रस्तुत किया, जो दो प्रकार की पद्धतियों पर आधारित था। एक वह जो पहले से चली आ रही थी तथा दूसरा जिनमें सप्ताहवार सर्वेक्षण किया जाता है। इसके अनुसार पहले गरीबी का जो आंकड़ा 35-36 प्रतिशत था, वह घटकर 26 प्रतिशत पाया गया। दूसरी ओर एक अन्य संशोधित पद्धति से करवाए गए सर्वेक्षण में गरीबी 33 प्रतिशत पाई गई। किन्तु स्वयं नमूना सर्वेक्षण संगठन भी अभी दूसरी पद्धति को ठीक नहीं मानता और वहां भी अभी विवाद चल रहा है कि कौन-सी पद्धति बेहतर है।
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