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थ् वर्ष 7, अंक 10 थ् आ·श्विनी कृष्ण 6, सं. 2009 वि., 28 सितम्बर,1953 थ् मूल्य 3 आनेथ् सम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्रथ् प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊ——————————————————————————–विनोबा जी कांग्रेस के चक्कर मेंसरकार से झगड़ा : समझौता करना पड़ा(निज प्रतिनिधि द्वारा)पटना। भूदान यज्ञ के प्रणेता विनोबा जी ने स्वत: को कांग्रेस के चक्कर में जिस प्रकार फंसा लिया है, उसके दुष्परिणाम अब प्रकट हो रहे हैं। जिस बिहार में वे यह घोषणा करके आए थे कि प्रदेश की भू समस्या को सुलझाए बिना वे प्रदेश नहीं छोड़ेंगे, उसी बिहार को छोड़ने की धमकी उन्हें सरकार को देनी पड़ी है।सरकारी सहयोग पर आवश्यकता से अधिक विश्वास करने वाले विनोबा जी के पास अन्य कोई उपाय भी नहीं रह गया था। वे चाहते थे कि बिहार सरकार जो भूदान विधेयक बना रही है, उसमें उनकी इच्छानुसार परिवर्तन कर दें। इसके विपरीत बिहार सरकार ने विनोबाजी के समक्ष कुछ अपनी शर्तें रखीं और कहा कि उनका पालन होने पर ही राज्य का सहयोग मिलेगा। विनोबाजी ने इस सम्बंध में तो कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया और धमकी के जवाब में धमकी दी कि अगर मेरी इच्छानुसार विधेयक में परिवर्तन नहीं किया गया तो मैं सब जमीन उसके दाताओं को वापस कर दूंगा और बिहार छोड़ दूंगा।नेपाल में विस्फोट की संभावनाअन्तरिम संविधान के प्रश्न परनेपाल के महाराजाधिराज श्री त्रिभुवनवीर विक्रमशाह देव ने 21 सितम्बर को कलकत्ता के लिए प्रस्थान किया। उसके एक ही दिन पूर्व उन्होंने दोनों महारानियों एवं युवराजाधिराज की एक राज्य परिषद् की घोषणा की जो उनकी अनुपस्थिति में राजकाज चलाएगा। जनता के लिए उनके संदेश को प्रधानमंत्री श्री मातृका प्रसाद कोइराला ने रेडियो द्वारा प्रसारित किया जिसमें सरकार को सहयोग देने की अपील की गई।ठीक इसी समय नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष श्री विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला पर गृह विभाग के सहायक सचिव ने एक आदेश जारी कर काठमाण्डू घाटी से बाहर जाने पर रोक लगा दी। इसकी प्रतिक्रिया दूसरे दिन हुई। जब महाराजाधिराज हवाई अड्डे की ओर जाने लगे तो सरकार विरोधी नारे लगाए गए एवं काले झण्डे भी दिखलाए गए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पकड़ने की भी चेष्टा की एवं दो छात्र गिरफ्तार कर लिए गए। इस काण्ड को लेकर चारों ओर सनसनी फैल गई है।ऊ नू पाकिस्तान जा रहे हैंब्राह्मदेश की चिट्ठी(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)रंगून (विमान से)। प्रधानमंत्री ऊ नू ने एक पत्रकार सम्मेलन में इस बात को फिर से दुहराया कि भारत और पाकिस्तान के झगड़ों को हल करने में वह अपनी सेवाएं अर्पित करने के लिए सदैव तैयार हैं। इसे मध्यस्थता की संज्ञा देना उपयुक्त नहीं होगा। उनकी पाकिस्तान यात्रा प्रधानमंत्री श्री मुहम्मद अली के निमंत्रण पर हो रही है, उसका अन्य कोई मतलब नहीं है। वे शायद बोध गया (भारत) की भी यात्रा करें।नेशनल कांफ्रेंस का सम्मेलनजम्मू-कश्मीर की चिट्ठी(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)जम्मू (विमान)। क्षुब्ध वातावरण को तथा असामंजस्य के कुहरे को दूर हटाने, वास्तविकता से परिचित कराने तथा निश्चित पथ प्रदर्शन करने के लिए नेशनल कांफ्रेंस ने रियासत भर के कार्यकर्ताओं का विशेष अधिवेशन बुलाया। श्रीनगर में चार हजार के लगभग कार्यकर्ता एकत्रित हुए। 13 सितम्बर,1953 से 16 सितम्बर तक खूब उत्साह और जोश का कार्यक्रम रहा।बख्शी साहब ने अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए कहा कि शेख साहब से मित्रता और देश के प्रति कर्तव्य-भावना इन दो में से एक चीज को चुनने का समय आ गया था। हमने देश को व्यक्तिगत मित्रता पर बलिदान नहीं होने दिया और यह एक देशवासी का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए।9
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