दिंनाक: 06 Nov 2000 00:00:00 |
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फिलहाल ठोस परिणामों की आशा नहीं- वसन्त वासुदेव परांजपेकोरिया गणराज्य और इथियोपिया में भारत के पूर्व राजदूतभारत और चीन के साथ सम्बंध सुधार की प्रक्रिया पिछले एक दशक से चल रही है, लेकिन अभी तक इसमें कोई विशेष उल्लेखनीय प्रगति परिलक्षित नहीं हो रही। आठ साल पहले चीन ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा को आमंत्रित किया था, पर वे नहीं जा सके थे, अब राष्ट्रपति नारायणन् चीन गए हैं। वहां उनके भव्य स्वागत को देखते हुए ऊपर से भले ही यह लगे कि इससे भारत को बहुत लाभ होगा, लेकिन सत्य तो यह है कि राष्ट्रपति की इस यात्रा से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाना बेमानी होगा। चीन बहुत सोच-समझ कर अपने हित में निर्णय लेता है। भारत-चीन सीमा विवाद पर कोई सार्थक बातचीत का माहौल दूर-दराज तक नहीं दिखाई दे रहा। चीन और पाकिस्तान के प्रगाढ़ सम्बंध हमारे लिए खतरे की घंटी बन रहे हैं। चीन का पाकिस्तान को प्रक्षेपास्त्र और परमाणु प्रौद्योगिकी देना किसी से छुपा नहीं है। मुझे नहीं लगता कि हम चीन को इस दिशा में रोक पाएंगे। यह सच है कि पिछले दिनों भारत और चीन के अनेक प्रतिनिधिमण्डल एक-दूसरे के देश में आए, चीनी प्रतिनिधिमण्डल भाजपा अध्यक्ष से भी मिला, कुछ ठोस परिणाम सामने नहीं आया। मुझे लगता है कहीं न कहीं चीन के मानस में भाजपा या पूर्व जनसंघ की चीन विरोधी मान्यता अभी भी है। इस सरकार को चीन के प्रति अपनी नीतियों को और भी स्पष्ट करना होगा। इन्हीं नीतियों के तहत यदि श्री अटल बिहारी वाजपेयी चीन की यात्रा करें तो सम्भव है दोनों देशों के सम्बंधों में ठोस धरातल पर भारत के पक्ष में कुछ लाभ की स्थिति नजर आए। गृहमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी की चीन यात्रा भी परिणामदायक हो सकती है। बहरहाल! राष्ट्रपति की इस यात्रा से पृष्ठभूमि तो बनेगी, किन्तु परिणामदायी स्थिति तक पहुंचने में अभी समय लगेगा।22
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