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जान हथेली पर रख जिन स्वयंसेवकों ने सिखों को दंगाई भीड़ से बचाया उन पर झूठा आरोप लगाने वाले किसके हित साध रहे हैं?
1984 के सिख विरोधी दंगों के संबंध में रा.स्व. संघ की भूमिका को लेकर कुछ निहित स्वार्थी तत्व गलत बयानी द्वारा भ्रम फैला रहे हैं। इस संदर्भ में रा.स्व. संघ के सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत ने एक वक्तव्य में कहा है कि “जम्मू से प्रकाशित एक समाचार पत्र की कुछ कतरनों में यह पढ़कर हमें गहरा धक्का लगा है कि रा.स्व. संघ ने श्रीमती गांधी की हत्या के संदर्भ में 1984 में सिखों के नरसंहार को उचित ठहराया था। हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि इस प्रकार के घृणित झूठ और अफवाहें इस निम्न श्रेणी की गहराई तक गिर सकती हैं। हमें यह देखकर बहुत दुख हुआ है कि जम्मू के एक समाचार पत्र में छपे एक समाचार की सत्यता की जांच किए बिना जम्मू-कश्मीर गुरुद्वारा प्रबंधक बोर्ड के पदाधिकारियों और कुछ अन्य सिख संगठनों द्वारा रा.स्व. संघ की निंदा करने में इतनी जल्दबाजी की गई। हम उस समाचार पत्र की एक प्रति भी मंगवा रहे हैं ताकि उसके विरुद्ध मानहानि का मुकदमा किया जा सके। क्या हम यह कहें कि ये पदाधिकारी रा.स्व. संघ द्वारा इतनी निष्ठा और परिश्रम से परिपक्व और मजबूत की गई हिन्दू-सिख एकता के दुश्मनों के हाथों में खेल रहे हैं? चाहे 1947 में देश के विभाजन के समय की दुखद घटनाएं हों या कश्मीर में छत्तीसिंह पुरा हत्याकांड, रा.स्व. संघ हमेशा सिख बन्धुओं की कठिनाइयों और परीक्षा की घड़ी में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर अग्रिम पंक्ति में खड़ा रहा है।
जहां तक राजधानी दिल्ली और अन्य स्थानों पर 1984 के सिख विरोधी दंगों का प्रश्न है तो रा.स्व. संघ ने सिख बन्धुओं की सहायता, रक्षा और राहत पहुंचाने के कार्यों में प्रमुख भूमिका निभाई थी। दिल्ली में सैकड़ों सिख परिवारों को संघ के स्वयंसेवकों के घरों में संरक्षण दिया गया तथा राहत शिविर स्थापित किए गए। स्वयंसेवकों ने अपनी जान पर खेलकर भी सिख परिवारों को अपने घरों में शरण और आवश्यक सहायता दी थी। पटना, भरतपुर, रांची और कोयम्बटूर जैसे अनेक स्थानों पर संघ के स्वयंसेवकों ने भीड़ के उन्माद से गुरुद्वारों और सिख परिवारों को बचाने में निर्णायक भूमिका अदा की थी। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में देवबंद नामक स्थान पर संघ के तहसील संघचालक ने वहां के गुरुद्वारे के प्रवेश द्वार पर चट्टान की तरह खड़े होकर उस भीड़ को रोका था जो गुरुद्वारे को क्षति पहुंचाने के लिए आ रही थी। कानपुर में स्वयंसेवकों को पागल भीड़ से लड़ना पड़ा जो विनाशलीला फैला रही थी। अनेक सिख परिवारों को हमारे प्रांत संघचालक के घर में शरण दी गई। कोयम्बटूर में आर्य वैद्यशाला के मालिक, जो वि·श्व हिन्दू परिषद् के पदाधिकारी हैं, ने उन सिख परिवारों को 15 दिनों तक अपने यहां शरण दी थी जिनके घरों पर हमले किए गए थे और दुकानें जला दी गई थीं। वास्तव में संघ के नेताओं ने सिखों के नरसंहार के संबंध में राजीव गांधी की उस प्रतिक्रिया की भत्र्सना की थी जिसमें उन्होंने उसे इंदिरा गांधी की हत्या की स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में उचित ठहराया था। हमें आश्चर्य है कि ये तथाकथित सेकुलर सिख रा.स्व. संघ के विरुद्ध ऐसे शरारतपूर्ण और झूठे आरोप लगाकर उसे बदनाम करने में किसके हितों को साध रहे हैं?
अंत में हम इस प्रकार का बयान देने वाले सिख नेताओं से अपील करते हैं कि वे इन तथ्यों के प्रकाश में अपने बयान के विवेक पर पुनर्विचार करें और सच्चाई, न्याय तथा देश के व्यापक हित, विशेषकर सिखों के हित में अपने बयान को वापस ले लें।
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