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वाममोर्चे को लाल झण्डी
— पिनाकपाणि घोष
कलकत्ता नगर निगम और विधाननगर नगरपालिका के चुनावों में राज्य में दो दशकों से ज्यादा समय से सत्तारूढ़ वाममोर्चे को कड़ी हार का सामना करना पड़ा है। वाममोर्चे के कई दिग्गज उम्मीदवारों को पराजय का मुंह देखना पड़ा है। इनमें सबसे उल्लेखनीय पराजय है दस वर्षों से कलकत्ता नगर निगम के महापौर प्रशान्त चट्टोपाध्याय तथा विधाननगर माकपा की स्थानीय समिति के सचिव नन्द गोपाल भट्टाचार्य की। इस बार तृणमूल कांग्रेस-भाजपा गठबंधन के महापौर पद के प्रत्याशी सुहास मुखर्जी विजयी हुए हैं। लेकिन नगर निगम परिणाम के त्रिशंकु हो जाने की वजह से कांग्रेस का महत्व फिलहाल बढ़ गया है। बोर्ड गठन की कुंजी अब एक तरह से उसी के हाथ में है।
पश्चिम बंगाल
नगरपालिका चुनाव
कुल सीटें – 141
तृणमूल-भाजपा गठबंधन…..64
वाममोर्चा……………………62
कांग्रेस……………………….15 कलकत्ता नगर निगम चुनाव को लेकर पिछले दो महीने से राजनीतिक उत्तेजना थी। राज्य की अन्य नगरपालिकाओं में वाममोर्चे के वोटों में कमी और पांसकुड़ा संसदीय सीट के उपचुनाव में वाममोर्चे की पराजय के बाद यह उत्तेजना चरम पर पहुंच गयी थी। मतदान के दिन व्यापक गुण्डागर्दी, बमबारी, धांधलियों के बावजूद कलकत्ता नगर निगम का चुनाव परिणाम आशानुरूप ही रहा। 15 वर्षों बाद राज्य की राजधानी वाममोर्चे के हाथों से निकल गयी। इससे विरोधी शिविर में काफी उत्साह व प्रसन्नता है। पश्चिम बंगाल का इतिहास गवाह है कि कलकत्ता नगर निगम जिसके पास होता है, विधानसभा भी उसकी होती है। इसलिए इस उलटफेर को विपक्षी दल आसन्न विधानसभा चुनाव के लिए एक शुभ संकेत मान रहे हैं।
निगम चुनाव के कुछ दिन पहले भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त श्री एम.एस. गिल कलकत्ता आए थे। दिल्ली वापस जाने पर उन्होंने कहा था कि पश्चिम बंगाल में हर चुनाव में ही धांधली होती है। हुआ भी यही था। जाली मतदान, बूथों पर कब्जा, सभी कुछ हुआ। यही नहीं, इसके साथ ही साथ पुलिस और प्रशासन की मदद से कार्यकर्ताओं ने अपना आतंक भी बरपाया था। कई मतदान केन्द्रों पर विद्युतचालित मतदान-यंत्रों से चुनाव हुए थे। राज्य के चुनाव आयुक्त अनीश मजुमदार की निष्पक्षता पर भी कई सवालिया निशान लगे थे। उन्होंने पत्रकारों व छायाकारों के मतदान केन्द्रों में प्रवेश पर रोक लगा दी थी। बाद में दबाव के कारण उन्हें अपना यह आदेश वापस लेना पड़ा। इतना सब करने के बाद भी यदि वाममोर्चे को कड़ी शिकस्त झेलनी पड़ रही है तो यदि स्वतंत्र, निष्पक्ष व शांतिपूर्ण चुनाव होते तो वाममोर्चे की क्या स्थिति होती?
इस परिणाम ने जनता के समक्ष एक और सवाल खड़ा किया है। तृणमूल नेता ने महाजुट का प्रस्ताव जरूर किया था, लेकिन सही मायने में यह महाजुट मूर्तरूप नहीं ले सका। कांग्रेस को उसमें शामिल नहीं किया जा सका। तृणमूल व भाजपा भी सारे वार्डों में मिलकर काम नहीं कर सकी। अनेक वार्डों में दोस्ताना प्रतिद्वन्द्विता हुई। इसलिए अनेक वार्डों में मतों की बन्दरबांट की वजह से वाममोर्चे के प्रत्याशी जीत गए। इसलिए यह सवाल उठता है कि शत-प्रतिशत सीटों के बंटवारे का समझौता हो जाता तो क्या कलकत्ता में वाममोर्चे का नामोनिशान बचता? क्या विधाननगर में माकपा का अस्तित्व रहता?
इस चुनाव परिणाम से भाजपा को भी सबक लेना पड़ेगा। मात्र दो सीट बढ़ाकर उसने कलकत्ता में कुल चार सीटें जीती हैं। कलकत्ता में दमदम लोकसभा क्षेत्र भाजपा के तपन सिकदर के पास है। इसी क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली विधान नगरपालिका में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली है। दरअसल तृणमूल और भाजपा में और ज्यादा समझ की जरूरत है। ऐसा होने पर ही पश्चिम बंगाल में वे वाम-शासन का अन्त कर सकेंगे।
इस चुनाव परिणाम से वाममोर्चा में भी अन्तद्र्वन्द्व शुरू होगा। यह पराजय बुद्धदेव, अनिल, विमान गुट की है। बुद्धदेव, ज्योति बसु से मुख्यमंत्री का पद छीन लेना चाहते हैं। अनिल वि·श्वास ने ऐसी झूठी घोषणा की थी कि ज्योति बसु सेवा-मुक्त होना चाहते हैं। पोलित ब्यूरो सदस्य विमान बसु ने ज्योति बसु के प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़ा अटकाया था। इसलिए इस पराजय से वाम-शिविर चाहे जितना ही दु:खी हो, ज्योति बसु मन ही मन प्रसन्न जरूर होंगे।
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