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क्रूर झंझा पर, प्रलय पर, धैर्य पर, अधिकार करके,
विद्ध पग के रक्त से साफल्य का इतिहास लिखकर,
बढ़ रहा पग-पग निरन्तर, आग पर हुंकार भर के,
बुझ चुके अंगार, टूटे कण्टकों के जाल पंथी,
हंस उठी ऊषा तिमिर अब नष्ट अपने आप होगा,
— श्री समीर
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क्रूर झंझा पर, प्रलय पर, धैर्य पर, अधिकार करके,
विद्ध पग के रक्त से साफल्य का इतिहास लिखकर,
बढ़ रहा पग-पग निरन्तर, आग पर हुंकार भर के,
बुझ चुके अंगार, टूटे कण्टकों के जाल पंथी,
हंस उठी ऊषा तिमिर अब नष्ट अपने आप होगा,
— श्री समीर
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