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राष्ट्रवादी राजनीतिक नेतृत्व…इस समय भारत में गैर कांग्रेसी और गैर वामपंथी सरकार है और इसी तरह मास्को में भी गैर-वामपंथी सरकार है। इस परिस्थिति में दोनों देशों के बीच किस तरह के सम्बंध आगे बनेंगे, इस पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मेरा मानना है कि जब 1977 में मोरारजी भाई की सरकार थी जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी मंत्री थे, वह परिस्थिति रूस को पसंद नहीं थी। उस सरकार को गिराने में विदेशी ताकतों की भी कुछ भूमिका रही, जिसमें रूस का भी कथित हाथ था। लेकिन अब वहां ऐसी स्थिति नहीं है। उस समय वहां जो कम्युनिस्ट नेता थे वे आज मोटे तौर पर राष्ट्रवादी बन चुके हैं। यहां भारत में भी राष्ट्रवादी दल सत्ता में हैं और वहां भी, अत: दोनों के सम्बंध अच्छे हैं और आगे भी अच्छे ही रहेंगे।भारत को यह ध्यान में रखना होगा कि रूस भी सहयोग के लिए अमरीका की ओर देख रहा है। रूस में एक गुट ऐसा है, जिसका रुझान अमरीका की ओर बहुत ज्यादा है, पर साथ ही वहां की युवा पीढ़ी में अपनी रूसी विशिष्टता बनाए रखने की चाह भी है। इन दो मतों का वहां संघर्ष है और आगे भी रहेगा।रणनीतिक दृष्टि से देखें तो जब तक किसी भी कारण से भारत और चीन के बीच समस्याएं हैं, तब तक रूस, भारत, चीन में किसी प्रकार का सहयोग स्थापित नहीं हो सकता। भविष्य में जब तनाव कम हो जाए तो इन तीनों देशों का आपसी समन्वय फलदायक हो सकता है। इनके साथ ईरान आदि खाड़ी देशों को भी मिला लें तो यह बहुत शक्तिशाली गुट बन सकता है। हमें चीन का पाकिस्तान की ओर जो भी झुकाव दिखाई देता है, उसका कारण भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव ही है। लेकिन अगर भारत और चीन के बीच सौहाद्र्र हो जाए तो फिर पाकिस्तान की ओर से चीन का ध्यान अपने आप ही हट जाएगा।सीमा-पार उग्रवाद भी आज एक प्रमुख समस्या बन चुका है, जिससे रूस भी पीड़ित है। मादक पदार्थों की तस्करी और उग्रवाद की जड़ें दुनिया भर में फैल रही हैं। हो सकता है कि राष्ट्रपति पुतिन इस संदर्भ में भारत में कुछ वक्तव्य दें।34
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