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2000 स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण
तेरापंथ और संघ के कार्यों में समानता है
– आचार्य महाप्रज्ञ
–भगीरथ चौधरी
एक महत्वपूर्ण और भविष्य को प्रभावित करने वाले घटनाक्रम में जैन ·श्वेताम्बर तेरापंथ महासभा के मुख्य केन्द्र में गत दिनों करीब 2000 स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण हुआ। पूज्य सरसंघचालक श्री कूप्.सी.सुदर्शन और तेरापंथ समाज के आध्यात्मिक प्रमुख आचार्य महाप्रज्ञ की उपस्थिति में संघ की शाखा लगी।
उपस्थित स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा कि तेरापंथ और संघ के कार्यों में समानता है। उन्होंने आगे कहा कि आज जो लोग मात्र दो-तीन सौ वर्षों के ज्ञान को आधार बनाकर हिन्दुत्व की व्याख्या करते हैं, वे गलत हैं। राजस्थान के लाडनूं शहर में स्थित जैन वि·श्व भारती में 17 से 19 सितम्बर, 2000 को तेरापंथ की तीन शाखाओं- जैन ·श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, अखिल भारतीय तेरापंथी मंडल और अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् – के संयुक्त अधिवेशन के उद्घाटन समारोह के दौरान डीडवाना जिले के करीब 2000 स्वयंसेवक एकत्रित हुए। इस समारोह में श्री कुप्.सी. सुदर्शन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
उद्घाटन सत्र में आचार्य महाप्रज्ञ ने आगे कहा कि तेरापंथ और रा.स्व.संघ के बीच सम्बंध नए नहीं हैं अपितु आचार्य श्री तुलसी के समय से ही हैं। संघ समाज की चिन्ता करता है, उसे अनुशासन सिखाता है। संघ ग्राम विकास और आयुर्वेद जैसी प्राचीन विधाओं के संरक्षण और उत्थान में लगा है। तेरापंथ के उद्देश्य और लक्ष्य संघ-कार्यों से मेल खाते हैं।
सरसंघचालक के सम्बंध में आचार्य श्री ने कहा कि उनका व्यक्तित्व महान है और उनमें वि·श्व के सबसे बड़े संगठन को संचालित करने की अद्भुत क्षमता है। संयुक्त अधिवेशन के उद्घाटन समारोह को सम्बोधित करते हुए श्री सुदर्शन ने कहा कि किसी भी समाज का प्राण आपस की पूरकता ही होती है, इसका श्रेष्ठ उदाहरण है हमारी परिवार व्यवस्था। श्री सुदर्शन ने आगे कहा कि हमारी संस्कृति में निहित है व्यक्ति-परिवार से लेकर वि·श्व-परिवार तक जाना। यही हिन्दू धर्म की सीख है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को शिक्षित और जागृत होना चाहिए। तेरापंथ में विभिन्न स्तरों पर संस्कारों की व्यवस्था के प्रयास चल रहे हैं। इस प्रकार के प्रयासों के कारण ही हिन्दू समाज में तेजस्विता आ रही है। यही इस शताब्दी की आवश्यकता है।
उल्लेखनीय है कि इस समारोह में तेरापंथ समाज के युवाचार्य श्री महाश्रमण के अतिरिक्त अनेक जैन मुनि व प्रमुख व्यक्ति उपस्थित थे।
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