कंदकूर्ती में श्री बालासाहब देवरस का उद्बोधन
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कंदकूर्ती में श्री बालासाहब देवरस का उद्बोधन

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Feb 4, 2000, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Feb 2000 00:00:00

यहां मिला दासता से मुक्ति का अमृतकलशराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस 1995 की 17 सितंबर को कंदकूर्ती पधारे थे। उनके करकमलों से पूजनीय डा. हेडगेवार के कुलदेवता केशवराय की प्रतिमा का अभिषेक कराया गया था। बाद में वहां एक जनसभा आयोजित की गई। सभा में श्री बाला साहब देवरस, जो गंभीर रूप से अस्वस्थ थे, ने अपने विचार लिखित रूप में प्रस्तुत किए। उनके निजी सचिव श्री श्रीकांत जोशी ने उसे पढ़ कर सुनाया। उस संदेश का अविकल पाठ निम्नानुसार है-कंदकूर्ती गांव के बंधुओ, माताओं एवं उपस्थित स्वयंसेवक बंधुओ!आप सब से प्रत्यक्ष रूप में भेंट करने का सौभाग्य मुझे आज प्राप्त हुआ है, यह मेरे लिए अतीव आनन्द का विषय है। पिछले कुछ वर्षों से यहां आने की तीव्र इच्छा थी, पर स्वास्थ्य ने साथ नहीं दिया। अत: मैं कंदकूर्ती नहीं आ सका।संघ के प्रतिष्ठाता परमपूजनीय डा. केशव बलिराम हेडगेवार के पूर्वज इसी गांव में रहा करते थे। यह उनका पैतृक गांव है। वर्ष 1989 में देशभर में डा.हेडगेवार जी की जन्मशताब्दी हर्षोल्लास से मनाई गई थी। उसी समय से कंदकूर्ती आने व यहां के श्री राम मन्दिर जहां पूज्यनीय डाक्टर हेडगेवार जी के वंशज आनुवंशिक पुरोहित थे, का दर्शन करने की इच्छा थी। इतने दिनों की कामना आज पूर्ण हो रही है। इसीलिए मुझे अतीव आनन्द का अनुभव हो रहा है। पूज्य डाक्टर साहब को निकट से देखने व अनेक वर्ष तक उनके साथ मिलकर कार्य करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ है। उनके मार्गदर्शन में कार्य करना मेरे लिए अद्भुत अनुभव है।डा. हेडगेवार का जीवन पूर्ण रूप से राष्ट्र समर्पित जीवन था। उनके काल में भारत अंग्रेजों का गुलाम था, देश गरीबी व अज्ञान के अंधकार में डूबा हुआ था। देशभक्ति का अभाव था। समाज आत्मविस्मृत था। कई लोग अपने आप को हिन्दू बताने में लज्जा का अनुभव करते थे। हिन्दू समाज जाति, सम्प्रदाय, भाषा, प्रांत, सम्पन्न, सर्वहारा, दलित, शोषित, धनी, गरीब, साक्षर व निरक्षर आदि विभेदों से ग्रस्त था। हिन्दू समाज में एकता नहीं थी। ऐसे कठिन समय में डा. हेडगेवार जी ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। डाक्टर साहब ने इस देश के राष्ट्रीय समाज को जागृत कर, भारत के सर्वांगीण विकास के लिए नए पथ दिखाये थे। अनादि काल से इस देश में निवास करने वाले हिन्दू समाज के संगठन के लिए उन्होंने शाखा पद्धति का आविष्कार किया था। अपने पुराणों का एक आस्थान मुझे स्मरण आता है। भगवान विष्णु का वाहन गरुड़, मातृभक्त था। मैं उसी गरुड़ की कहानी बताने जा रहा हूं। गरुड़ ने अपनी माताश्री विनीता को सौतन कद्रु और उसके सौ पुत्रों की गुलामी से मुक्त कराया था। इस निमित्त उसने स्वर्ग में देवताओं से संघर्ष कर अमृत प्राप्त किया और उसे पृथ्वी पर लाया। उसने अमृत कलश को गोदावरी, हरिद्रा व मंजीरा नदियों के संगम स्थल पर दर्भासन पर रखा था। उसी से उन्होंने माता को गुलामी से मुक्त कराया था।मातृभक्त द्वारा स्वर्ग से लाए गए अमृत के स्पर्श से पुनीत इस संगम स्थल में स्थित कंदकूर्ती डा.हेडगेवार के पूर्वजों का गांव है।उसी कंदकूर्ती के हेडगेवार वंश के डा. हेडगेवार ने हमारी पवित्र मातृ भूमि भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रूपी अमृत कलश को अपने समाज को सौंपा। महापराक्रमी मातृभक्त गरुड़ ने पौराणिक युग में जिस तरह का कार्य सम्पन्न किया, इस युग में डा. हेडगेवार ने हिन्दू समाज को संगठित कर वही कार्य सम्पन्न किया। आज भारतवर्ष उग्रवाद ,घुसपैठ, भ्रष्टाचार, हिंसा, विदेशी आर्थिक आक्रमण आदि समस्याओं से ग्रस्त है। ऐसी स्थिति में साधारण जनता में स्वाभिमान, स्वावलम्बन का निर्माण कर उन्हें स्वदेश व स्वत्व की भावना से प्रेरित कर राजनीतिक विभेदों से परे एक एकात्म, समरस, संगठित राष्ट्र जीवन के गठन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा किए जा रहे इस महान कार्य में समस्त हिन्दू समाज को सहभागी बनाने के लिए मैं इस कार्यक्रम में उपस्थित माताओं व महानुभावों से सहयोग का आह्वान करता हूं। पूजनीय डाक्टर जी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य पर भारत के दलित व उपेक्षित समाज के सर्वांगीण विकास के लिए कई सेवा प्रकल्प चलाने का फैसला स्वयंसेवकों ने किया था। पूजनीय डा. हेडगेवार के पैतृक गांव में श्री केशव सेवा समिति के तत्वावधान में स्वयंसेवकों ने एक स्मृति मन्दिर का निर्माण किया। उसी के साथ श्री राम मन्दिर के जीर्णोद्धार कार्य भी चल रहा है। श्री केशव शिशु मन्दिर के नाम पर एक प्राथमिक विद्यालय का संचालन भी किया जा रहा है। मैं इसी मंच से यह घोषणा करता हूं कि शीघ्र ही इस ग्राम में चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी। सुदूर कंदकूर्ती में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने आप अनेक कठिनाइयों का सामना कर यहां आये हैं। पर खराब स्वास्थ्य के कारण मैं आप से प्रत्यक्ष रूप में बात करने में असमर्थ हूं, इसलिये मैं क्षमाप्रार्थी हूं। द7

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