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विश्व व्यापार संगठन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का ही चेहरा है

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Dec 12, 1999, 12:00 am IST
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दिंनाक: 12 Dec 1999 00:00:00

-डा. जय दुबाशी, आर्थिक विशेषज्ञ

सिएटल में वि·श्व व्यापार संगठन की वार्ता का असफल रहना एक प्रकार से अच्छा ही रहा। भारत पर इस वार्ता के असफल होने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

1 जनवरी, 1994 में वि·श्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई थी, तब से लेकर आज तक भारत को इससे कोई लाभ नहीं मिला। भारत ही नहीं, किसी भी विकासशील देश की वृद्धि दर और निर्यात में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई, बल्कि निर्यात में कमी ही हुई है।

सिएटल में वार्ता के असफल रहने का यही कारण रहा कि संगठन में रहते हुए भी विकासशील देशों की स्थिति यथावत रही और इसके साथ ही विकसित देशों द्वारा उन पर आधिपत्य जमाने की मंशा भी सामने आई। अमरीका जैसे विकसित देशों की अर्थव्यवस्था आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में है। उन्हीं के लाभ के लिए, उन्हीं के इशारे पर संगठन के एजेंडे में श्रम मानक संबंधी मुद्दों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है। यह हमारे एजेन्डे के विरुद्ध है।

हमारे दिमाग में एक बेवजह की खुशफहमी पलती रही कि हम वि·श्व व्यापार संगठन जैसे अंतराष्ट्रीय संगठन के सदस्य हैं। दरअसल, वि·श्व व्यापार संगठन बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ही एक चेहरा है। हमें इस भुलावे से बाहर आना चाहिए कि इस संगठन का सदस्य होने से हमारी आर्थिक उन्नति होगी। इसके सदस्य होकर हम वि·श्व व्यापार का लाभ उठा पाएंगे, यह सोचना गलत है।

जहां तक चीन के इस संगठन में शामिल होने की आकुलता की बात है तो चीन के जुड़ने की इच्छा के पीछे कारण आर्थिक नहीं, कुछ और ही हैं। चीन गत 20 वर्ष से विदेशी निवेश के बल पर एशिया में शक्तिशाली देश बन कर उभरा है। पर उसे विदेशी प्रौद्योगिकी भी चाहिए, जिसके लिए उसे वि·श्व व्यापार संगठन से जुड़ने की जरूरत महसूस हो रही है। उसे तब तक विदेशी तकनीक नहीं मिल सकती जब तक वह इस संगठन का अंग नहीं बन जाता।

इधर कुछ समय से यह आभास हुआ कि अमरीका भारत का पक्ष ले रहा है, उसे दोस्त की तरह देख रहा है। इसके पीछे कारण है-पाकिस्तान। पाकिस्तान आर्थिक दृष्टि से जर्जर हो चुका है। इसलिए अमरीका को चीन के विरुद्ध एशिया महाद्वीप में एक अन्य देश को अपने साथ करने की जरूरत महसूस हो रही है। भारत के नीति-निर्धारक इस बात को समझ पा रहे हैं अथवा नहीं, कहा नहीं जा सकता।

वि·श्व व्यापार संगठन से भविष्य में भारत को कोई लाभ होने वाला नहीं है। इसका कारण है कि वैश्विक व्यापार में भारत का विदेश व्यापार एक प्रतिशत से भी कम है। इसे देखते हुए भारत की संगठन में कोई विशेष भूमिका नहीं दिखाई देती। ठीक वैसे, जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का विशेष महत्व नहीं माना जाता। भारत अभी भी गरीब देशों की पंक्ति में है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की कोई आर्थिक भूमिका नहीं है। यदि आगामी 10-15 वर्षों में भारत का विदेश व्यापार बढ़ जाता है, तभी भारत की कोई भूमिका होगी। किन्तु अभी तक भारत की ऐसी कोई नीति दिखाई नहीं देती। (बातचीत पर आधारित)

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