दादाराव परमार्थ
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दादाराव परमार्थ

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Jul 11, 1999, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Jul 1999 00:00:00

उनसे ही शुरू हुई प्रचारक परम्पराअपना संपूर्ण जीवन समाज कार्य में व्यतीत करने के निश्चय के साथ संघ का प्रचारक बनने की परंपरा अब रा.स्व.संघ की कार्यप्रणाली का महत्वपूर्ण और अविभाज्य अंग बन गयी है। इस परंपरा का आरंभ ही श्री दादाराव परमार्थ के प्रचारक बनने से हुआ। गोविन्द सीताराम परमार्थ उपाख्य दादा परमार्थ का जन्म नागपुर में 1904 में हुआ था। उत्कट देशभक्ति और पारतंत्र्य के बारे में तीव्र वेदना उनमें प्रारम्भ से ही रही। दसवीं की परीक्षा में उन्होंने ब्रिटिश शासन पर अत्यंत आक्रमक शब्द लिखे थे जिसके फलस्वरूप वे परीक्षा में अनुत्तीर्ण कर दिए गए। सशस्त्र क्रान्ति तथा वीर सावरकर के विचारों से वे बहुत प्रभावित थे। 1925 में डाक्टर जी के संपर्क में आकर श्री परमार्थ स्वयंसेवक बने थे। उन्होंने 1930 तक नागपुर में ही डाक्टर जी के प्रमुख सहयोगी के रूप में संघ कार्य किया। 1930 में जंगल सत्याग्रह में उन्होंने डाक्टर जी के साथ सत्याग्रह किया। जब कारागृह में वह बीमार पड़े तब स्वयं डाक्टर जी ने उनकी शुश्रुषा की थी। अपने प्रचारक बनने के प्रारंभिक काल में उन्होंने संघ कार्यार्थ देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवास किया। वे 1946 से असम, पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा उत्तर भारत में कार्यरत रहे। चेन्नै के वयोवृद्ध कार्यकर्ता श्री टी.वी.आर. वेंकटराम शास्त्री जी से संघ कार्य का परिचय कराया। श्री वेंकटराम शास्त्री ने 1947 के प्रतिबंध को हटाने के लिए तीव्र प्रयास किए थे। प्रतिबंध के समय दादाराव पांडिचेरी स्थित अरविंद अाश्रम तथा ऋषिकेष में अध्यात्मसाधनारत रहे। अनुशासन के विषय में अत्यंत कठोर दादाराव मन से अत्यंत भावुक तथा कवि ह्मदय थे। अरविंद अाश्रम तथा तिरुअण्णामलई के रमणाश्रम में अध्यात्म साधना के पश्चात् अप्पाजी जोशी, जो डाक्टर जी के वरिष्ठ सहयोगी रहे थे, के प्रयासों से वे पुन: संघ कार्य में लौटे और देहरादून में सघन कार्य में जुट गए। 1963 में दादाराव अचानक बीमार हुए और उनका देहावसान हो गया। श्री माधवराव जी मूले ने उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया।द अरुण करमरकर43

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