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गुयाना के राष्ट्रपति भरत जगदेव ने पाञ्चजन्य से विशेष बातचीत में कहा-

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May 12, 1999, 12:00 am IST
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दिंनाक: 12 May 1999 00:00:00

विश्व व्यापार संगठन में औद्योगिक देशों की मनमर्जी के विरुद्ध

विकासशील देशों की एकजुटता जरूरी है

गुयाना के युवा राष्ट्रपति भरत जगदेव 35 वर्षीय हैं और उन्हें वि·श्व के सबसे कम उम्र का राष्ट्राध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है। वे पहले गुयाना सरकार में वित्त मंत्री थे। पिछले दिनों डरबन में राष्ट्रमंडल सम्मेलन में उनसे बात हुई। बात करते-करते श्री भरत जगदेव पुरानी यादों में खो जाते हैं और बताते हैं कि छात्र जीवन में वे गुयाना के एक स्वामी जी के पास उनके आश्रम में रहे थे। गुयाना में शिवरात्रि बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में वि·श्वहिन्दू परिषद् के अधिकारी श्री क्रिस गोकुल से कहा भी कि वे शिवरात्रि पर दक्षिण अफ्रीका से एक प्रतिनिधिमंडल लेकर गुयाना आएं। इस चर्चा में एक रोचक बात यह भी निकली कि उस क्षेत्र के तमाम देशों में रहने वाले हिन्दू तीर्थयात्रा के लिए भारत आना यदि सुगम नहीं पाते तो वे अपने ही क्षेत्रों में विभिन्न देशों में तीर्थ स्थानों की रचना कर रहे हैं। जैसे मारिशस का गंगा तालाब अफ्रीकी और यूरोपीय देशों के हिन्दुओं में काफी लोकप्रिय हो गया है और वे उसी श्रद्धा और भक्ति से आने लगे हैं जैसे भारत में वे हरिद्वार आते हैं। इसी प्रकार त्रिनीदाद में त्रिनीदादे·श्वर महादेव और गंगा धारा तथा गुयाना में शिवरात्रि का मेला काफी प्रसिद्ध हो गया है।

द तरुण विजय

थ् यह देखकर भारत के लोगों को बहुत आनंद होगा कि वि·श्व में सबसे कम आयु के राष्ट्रपति के रुप में एक हिन्दू और भारतीय मूल के व्यक्ति ने दायित्व संभाला है।

दृभारत के साथ हम भी अपने संबंधों के बारे में खुशी महसूस करते हैं। लेकिन हम कई पीढ़ियों से गुयाना वासी हैं और मेरी पहली तथा सम्पूर्ण निष्ठा गुयाना के प्रति है। गुयाना एक छोटा सुंदर देश है जहां के लोग बहुत मेहनती और प्रगतिशील हैं। हम उसे दुनिया में उसका उचित स्थान दिलाने के लिए राजनीति में आए हैं।

थ् राष्ट्रमंडल देशों की बैठक में पाकिस्तान के बारे में अन्य देशों ने चर्चा में पहल की। विशेष कर उन देशों ने जिन्हें अश्वेत या विकासशील कहा जाता है। इसका क्या कारण है?

दृयह ठीक ही हुआ क्योंकि पाकिस्तान में लोकतंत्र का विषय भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला नहीं बनना चाहिए था। उससे अच्छे संकेत नहीं जाते। राष्ट्रमंडल में सभी देश लोकतंत्र के प्रति काफी आग्रही हैं। इसलिए इस बारे में विशेष चर्चा होना स्वाभाविक ही था।

थ् राष्ट्रमंडल सम्मेलन की और क्या उपलब्धि रही?

दृ वै·श्वीकरण और व्यापार संबंधों पर काफी बातचीत हुई। वै·श्वीकरण आज दुनिया का एक बड़ा सच बन गया है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।

थ् लेकिन भारत सहित कुछ देशों में इस प्रकार का विचार चल रहा है कि वै·श्वीकरण से पहले अपने देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाना जरुरी है। आपके देश में क्या स्थिति है और इस बारे में आप क्या सोचते हैं?

दृहम विभिन्न स्तरों पर एक विभिन्न परिस्थिति में काम कर रहे हैं। लेकिन इतना जरूर है कि हम चाहते हैं कि विकसित देश छोटे देशों की सहायता करें।

थ् क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष काफी हद तक सफल रहा है लेकिन आज भी वि·श्व में राजनीतिक स्तर पर वैचारिक अस्पृश्यता और भेदभाव काफी हद तक चल रहा है?

दृयह सच है। हालांकि वि·श्व समुदाय ने लोकतंत्र, समान अधिकार आदि सिद्धांतों पर एकमत जाहिर किया है और इन्हें स्वीकार किया है। लेकिन जहां नस्लीय रंगभेद समाप्त हुआ है वहीं आर्थिक भेदभाव अभी भी जारी है और यह इसलिए है क्योंकि विकसित देश इस सिद्धांत को मान्य नहीं करते कि छोटे देशों को भी वि·श्व व्यापार में समान भागीदार के रुप में शामिल होना चाहिए। वे आज भी अपने लिए विशेष व्यवहार और छोटे देशों के लिए एक दूसरे किस्म का व्यवहार अपनाते हैं।

थ् इस प्रकार के भेदभाव को किस प्रकार समाप्त किया जा सकता है?

दृयह तो विभिन्न देशों की संगठित शक्ति द्वारा ही संभव है। परंतु मैंने यह पाया है कि अनेक विकासशील देशों में इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है। इस कार्य के लिए गुटनिरपेक्ष देशों का आन्दोलन एक बहुत अच्छा एवं प्रभावशाली मंच हो सकता था। लेकिन दुर्भाग्य से वह मंच भी सक्रिय नहीं रह गया है। हम इस बात के पक्षधर है कि दक्षिणी देशों (विकासशील देश, विकसित देशों उत्तरी देश कहा जाता है- सं.) को आर्थिक विषयों पर सर्वसम्मति से इन मुद्दों पर एकजुटता कायम करनी चाहिए। यदि छोटे और विकासशील देश आर्थिक मुद्दों पर एकता प्रदर्शित करें तो वि·श्व व्यापार संगठन में औद्योगिक तथा विकसित देशों के लिए अपनी मनमर्जी चलाना कठिन हो जाएगा तथा आर्थिक आधार पर वि·श्व में किए जा रहे पक्षपात को असफल करने की दिशा में हम महत्त्वपूर्ण कदम उठा सकेंगे।

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