प्रेमानंद जी महाराज अपने प्रवचन में बहुत ही सुंदर और गहरा संदेश दिए अच्छाई को कभी नहीं छोड़ना चाहिए, चाहे दुनिया कैसी भी बन जाए।वे एक प्रेरणादायक कथा के माध्यम से यह बात समझाते हैं। कथा इस प्रकार है-काशी नगरी में एक दिन गंगा जी में एक बिच्छू बहता जा रहा था। एक सज्जन व्यक्ति ने देखा कि बिच्छू डूब रहा है, तो उसने उसे बचाने के लिए हाथ बढ़ाया। लेकिन जैसे ही उसने बिच्छू को उठाया, बिच्छू ने डंक मार दिया। दर्द के बावजूद उस व्यक्ति ने फिर प्रयास किया और फिर से बिच्छू को बाहर निकालने की कोशिश की। बिच्छू ने फिर डंक मार दिया। तीसरी बार फिर वही हुआ। यह देखकर एक व्यक्ति जो पास में खड़ा था, उसने कहा, “क्या आप पागल हैं? वह बार-बार आपको डंक मार रहा है और आप फिर भी उसे बचा रहे हैं?”
उस सज्जन व्यक्ति ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया, “बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है बचाना। वह अपने स्वभाव से काम कर रहा है, तो मैं अपने स्वभाव को क्यों छोड़ूं? मैं अच्छाई करना नहीं छोड़ूंगा।” अर्थ यह है कि जैसे बिच्छू का स्वभाव है काटना, वैसे ही कुछ लोगों की आदत होती है बुरा बोलने या दूसरों को नीचा दिखाने की। लेकिन अगर हम उनके जैसे बन जाएँ और अपनी अच्छाई छोड़ दें, तो फिर हमारी अच्छाई का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
महाराज जी कहते हैं कि आज के समय में भी यही होता है। यदि आप किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, तो जरूरी नहीं कि वह भी आपके साथ वैसा ही व्यवहार करे। कई बार लोग आपकी अच्छाई का उत्तर बुराई से देते हैं। लेकिन तब हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वह उनका स्वभाव है, हमारा नहीं। हमें अपनी अच्छाई बनाए रखनी चाहिए। अगर कोई बुरा बर्ताव करे, तो सोचना चाहिए कि वह अज्ञान में है। हम बदला नहीं लेंगे, ताकि हमारा मन शांत रहे।
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हमें यह भी समझना चाहिए कि जब हम किसी से बदले की भावना रखते हैं, तो हम उनके जैसे बन जाते हैं। लेकिन जब हम अपनी अच्छाई पर टिके रहते हैं, तो हम ईश्वर के और निकट होते हैं। अच्छाई केवल तब तक अच्छाई है जब तक वह बिना किसी अपेक्षा के की जाए। यदि हमने किसी से अच्छे व्यवहार की अपेक्षा रखी और वह पूरी नहीं हुई तो हम दुखी हो जाते हैं। लेकिन जब हम केवल ईश्वर को समर्पित होकर अच्छा व्यवहार करते हैं, तो फिर हमें कोई दुख नहीं होता, चाहे सामने वाला कुछ भी करे।इसलिए महाराज जी कहते हैं कि अगर आप अपने जीवन में सच्चे अर्थों में भक्ति करना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपने व्यवहार को भगवान को समर्पित करें। दूसरों के व्यवहार से दुखी होने के बजाय यह समझें कि भगवान देख रहे हैं और वह हर अच्छे कर्म का फल देंगे- समय पर। हमेशा यह ध्यान रखें कि हमारे अच्छे कर्म, हमारा मधुर व्यवहार, हमारी विनम्रता – यह सब हमारी आत्मा की पूंजी है। इसे किसी और की बुराई से खोने मत दीजिए। कोई आपसे बुरा व्यवहार करे, कटु बोल बोले, आपके काम में बाधा डाले, फिर भी आप उसे ईश्वर का अंश समझकर क्षमा कर दीजिए। ऐसा करने से आपकी आत्मा हल्की हो जाएगी और आप परमात्मा के और करीब आ जाएंगे।
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