भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने पश्चिमी घाट से लाइकेन की नई प्रजाति एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका (Allographa effusosoredica) की खोज की है। पुणे स्थित एमएसीएस-अघारकर अनुसंधान संस्थान द्वारा किए गए अध्ययन में क्लासिकल टैक्सोनॉमी को मॉडर्न मॉलिक्यूलर उपकरणों के साथ संयोजित किया और इस क्षेत्र में नई प्रजाति के लिए नए मॉलिक्यूलर (आणविक) मानक स्थापित किए।
क्लासिकल टैक्सोनॉमी को पारंपरिक वर्गीकरण भी कहा जाता है। यह जीवों के बीच प्राकृतिक संबंधों के आधार पर उन्हें वर्गीकृत करने की एक विधि है। इसमें जातियों की पहचान, नाम और संरचना के आधार पर उन्हें व्यवस्थित किया जाता है। वहीं, मॉडर्न मॉलिक्यूलर तकनीकों का उपयोग करके वैज्ञानिक जीवों के डीएनए और प्रोटीन अनुक्रमों का विश्लेषण कर सकते हैं। यह जानकारी जीवों के बीच आनुवंशिक समानता और उनके बीच के अंतर को उजागर करती है।
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पीआईबी ने एक्स पर तस्वीरें साझा कीं
पीआईबी ने शुक्रवार (18 जुलाई) को एक्स पर इसके बारे में जानकारी दी और कुछ तस्वीरें भी साझा कीं। तस्वीरों में कई जीव एक दूसरे से जुड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि नई प्रजाति क्रस्टोज लाइकेन में आकर्षक इफ्यूज सोरेडिया और तुलनात्मक रूप से दुर्लभ रासायनिक गुण (नॉरस्टिकटिक एसिड नामक रसायन होता है, जिसे एलोग्राफा प्रजाति की अन्य समान आकृति वाली प्रजातियों की तुलना में दुर्लभ माना जाता है) है।
New Lichen species reveals ancient symbiosis in the Western Ghats
The study by MACS-Agharkar Research Institute, Pune, combined classical taxonomy with modern molecular tools, setting new molecular benchmarks for the genus in the region
The newly identified species, a crustose… pic.twitter.com/h3Tyd7yZ1x
— PIB India (@PIB_India) July 18, 2025
लाइकेन केवल एक जीव नहीं, बल्कि दो (कभी-कभी ज्यादा) जीव होते हैं, जो एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं और एक-दूसरे को लाभ पहुंचाते हैं। इसे सहजीवी संबंध भी कहा जाता है। एक कवक जो संरचना और सुरक्षा प्रदान करता है और दूसरा फोटोबायोन्ट (आमतौर पर एक हरा शैवाल या सायनोबैक्टीरियम) जो सूर्य के प्रकाश को ग्रहण करता है व भोजन बनाता है। अपने साधारण रूप के बावजूद, लाइकेन पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये मिट्टी बनाते हैं, कीड़ों को भोजन देते हैं और प्रकृति के जैव-संकेतक के रूप में कार्य करते हैं, जिनका उपयोग पर्यावरण की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए किया जाता है।
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बता दें कि लाइकेन पहाड़ी और खाली चट्टानों पर पाई जाती है। यह सामान्य तौर पर सफेद रंग में पाई जाती है। लाइकेन कवक और शैवाल के मिश्रित रूप होते हैं। लाइकेन का उपयोग इत्र बनाने, जैविक रसायन बनाने इत्यादि में होता है।
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