ब्राजील की राजधानी रियो डि जिनेरियो में जारी 17वें ब्रिक्स सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित अन्य सदस्य देशों के शीर्ष नेता भाग ले रहे हैं। लेकिन पांच देशों के इस महत्वपूर्ण मंच पर नेताओं के विशेष वक्तव्यों से इतर एक अलग और बेहद हैरान करने वाली घटना को लेकर दबी आवाज में चर्चाएं जोरों से जारी हैं। ये चर्चाएं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से अनुपस्थिति को लेकर है। गत 10 वर्ष में ऐसा पहली बार हुआ है कि शी जिनपिंग इस विशेष सालाना बैठक में शामिल नहीं हुए हैं। वैसे इसका एक पहलू यह भी है कि गत करीब दो सप्ताह से वे किसी घरेलू सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं देखे गए हैं। चीन के राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर कई बातें सुनने में आ रही हैं। उनके स्वास्थ्य को लेकर लगाई जा रहीं अटकलों से इतर एक और खास मुद्दा बीजिंग में नुक्कड़ चर्चाओं का विषय बना हुआ है। यह मुद्दा अंतत: चीन की आंतरिक सत्ता संरचना को लेकर सवाल खड़े कर रहा है। आखिर क्या वजह है कि शी जिनपिंग यूं अचानक सबकी नजरों से बच रहे हैं!
राष्ट्रपति शी पिछले दो सप्ताह से सार्वजनिक रूप से कहीं नजर नहीं आए हैं। न कोई भाषण, न कोई आधिकारिक कार्यक्रम में भागीदारी। ब्राजील में चल रहे ब्रिक्स सम्मेलन में उनकी गैरमौजूदगी ने इन अटकलों को और बल दिया है कि कहीं चीन में सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया तो नहीं शुरू हो गई है यानी ‘राष्ट्रपति शी के बाद कौन?’ के सवाल पर सीपीसी यानी कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइना में मंथन तो नहीं शुरू हो गया है। इसके संकेत भी मिल रहे हैं।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा हाल ही में अपने संविधान में किए गए संशोधन ने सत्ता संरचना में संभावित बदलाव की अटकलों को हवा दी है। हालांकि आधिकारिक तौर पर यह संशोधन राष्ट्रपति शी जिनपिंग को और अधिक अधिकार देने के उद्देश्य से किया गया है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम नेतृत्व परिवर्तन की तैयारी का संकेत भी हो सकता है। पार्टी के भीतर नए अधिकारियों को शामिल करने की प्रक्रिया तेज हो गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह संशोधन न केवल शी की शक्ति को बढ़ाता है, बल्कि पार्टी के भीतर उत्तराधिकारी की खोज को भी गति देता है।
जैसा पहले बताया, यह पहली बार है जब शी जिनपिंग ने ब्रिक्स जैसे महत्वपूर्ण मंच से दूरी बनाई है। यह बेशक उनके नेतृत्व की स्थिरता पर सवाल उठाता ही है। तो क्या उनके उत्तराधिकारी की खोज को लेकर अटकलों में बल है! अगर है तो वह कौन नेता हो सकता है जो इस पद पर आने की काबिलियत रखता है! इसके कई दावेदार तो तुरंत ध्यान में आते हैं। इनमें से प्रत्येक की अपनी ताकत और सीमाएं हैं। जैसे, प्रधानमंत्री ली कियांग। वे शी के करीबी हैं और जी20 बैठक में चीन का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, उन्हें एक लंबा प्रशासनिक अनुभव भी है।
जनरल झांग यूशिया भी दावेदार हो सकते हैं जो फिलहाल सीएमसी के उपाध्यक्ष हैं चीनी सेना में प्रभावशाली कद रखते हैं और पार्टी में हू जिंताओ गुट का उन्हें समर्थन भी प्राप्त है। एनपीसी के चेयरमैन झाओ लेजी भी राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार हो सकते हैं। वे भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के प्रमुख रहे हैं और संविधान पर उनकी पकड़ मानी जाती है। उनके बाद वांग हुनिंग का कद भी बड़ा है। सीपीपीसीसी के अध्यक्ष हुनिंग पार्टी के विचारक हैं और तीन राष्ट्रपतियों के साथ काम करने का उन्हें अनुभव है। हालांकि उनका प्रशासनिक अनुभव उतना नहीं है।
एक अन्य नेता, दिंग श्वेइशियांग राष्ट्रपति शी के नेतृत्व में चीफ ऑफ स्टाफ रह चुके हैं। शी के सबसे भरोसेमंद सहयोगी माने जाते हैं, लेकिन उनके पास प्रांतीय प्रशासन का अनुभव नहीं है।
बीजिंग से मिल रहे सत्ता की संरचना में बदलाव के संकेत नकारे नहीं जा सकते। सेना में हाल में फेरबदल और जनरल झांग की बढ़ती भूमिका इस बात का संकेत देती है कि सत्ता का संतुलन सैन्य नेतृत्व की ओर झुक सकता है। इस मुद्दे पर वहां सर्वशक्तिमान कम्युनिस्ट पार्टी की चुप्पी और मीडिया में सीमित जानकारी यह इशारा करती है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अंदरखाने किसी बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है।
इसमें संदेह नहीं है कि ब्रिक्स जैसे महत्वपूर्ण मंचों से राष्ट्रपति शी जिनपिंग की गैरमौजूदगी से चीन की विदेश नीति में अस्थिरता आ सकती है, खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका और रूस अपनी रणनीतिक ताकत का नए सिरे से आकलन करते दिख रहे हैं। दूसरी ओर, भारत के संदर्भ में बात करें तो शी की पकड़ में ढीलापन आना ब्रिक्स और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर अपनी भूमिका को और मजबूत करने का मौका दे सकता है। लेकिन इतना तो तय है कि शी जिनपिंग की रहस्य से भरी इस अनुपस्थिति को केवल एक व्यक्तिगत या स्वास्थ्य संबंधी मामला नहीं माना जा सकता।
खबरों और सूत्रों के हवाले से मिल रहे संकेत चीन की सत्ता के शीर्ष पर बदलाव के संकेत तो दे ही रहे हैं। पार्टी सूत्रों की बातें भी उसी दिशा की ओर इशारा करती हैं। बीजिंग में राष्ट्रपति पद के उत्तराधिकारी की खोज में जो उक्त नाम हवा में तैर रहे हैं, उनमें अभी स्पष्टता नहीं दिख रही है। बेशक, आखिरी फैसला जब भी होगा, उस पर पार्टी के भीतर शक्ति संतुलन, सैन्य समर्थन और विचारधारा की भूमिका का वजन सबसे ज्यादा होगा।
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