इंस्टाग्राम पर रील्स या यूट्यूब पर शॉर्ट्स देखते समय अक्सर हम एक के बाद एक वीडियो स्क्रॉल करते रहते हैं, और यह सिलसिला कब घंटों में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता। इसके पीछे एक खास वजह होती है- सोशल मीडिया का एल्गोरिद्म। एल्गोरिद्म एक ऐसा सिस्टम होता है, जो यह तय करता है कि किस यूजर को क्या कंटेंट दिखाया जाए। इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म हर यूजर को अलग-अलग वीडियो दिखाते हैं। ये वीडियो यूजर की रुचि, एक्टिविटी और पसंद पर आधारित होते हैं। मतलब, आपकी फीड पर जो वीडियो दिखते हैं, वो खासतौर पर आपके लिए चुने गए होते हैं।
इन प्लेटफॉर्म्स को आपकी पसंद-नापसंद का अंदाजा आपके व्यवहार से लगता है। जैसे आपने कौन-सी वीडियो लाइक की, किसे शेयर किया, क्या सर्च किया, किन अकाउंट्स को फॉलो किया और कौन-से वीडियो आपने अंत तक देखे। यहां तक कि आपने किसी वीडियो को “नॉट इंटरेस्टेड” या “रिपोर्ट” भी किया है या नहीं – इस सब पर नजर रखी जाती है। इसके अलावा, आपकी भाषा, लोकेशन, डिवाइस की सेटिंग्स और अकाउंट बनाते समय आपने जो कैटेगरी पसंद की थी, वो भी एल्गोरिद्म के लिए अहम होती हैं। वीडियो के कैप्शन, हैशटैग, म्यूजिक और उसमें इस्तेमाल हुए इफेक्ट भी इस प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
रील्स और शॉर्ट्स की एक और खासियत है- इनकी लंबाई। आमतौर पर ये वीडियो 15 से 30 सेकंड के होते हैं। इतने छोटे वीडियो देखने में समय का अंदाजा नहीं लगता और हम लगातार एक के बाद एक वीडियो स्क्रॉल करते चले जाते हैं। इसलिए अगली बार जब आप सोचें कि आपको रील्स देखने की इतनी आदत क्यों हो गई है, तो याद रखिए- यह सब सोच-समझकर डिज़ाइन किया गया है। एल्गोरिद्म आपकी हर एक्टिविटी को ट्रैक करता है और आपको वही दिखाता है, जो आपको पसंद है। यही वजह है कि रील्स और शॉर्ट्स इतनी तेजी से हमारे समय और ध्यान पर कब्जा कर लेते हैं।
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