2025 का G-7 सम्मेलन भारत के लिए सिर्फ एक कूटनीतिक बैठक नहीं थी, यह ऐसा अवसर था जब दुनिया ने आत्मनिर्भर, स्पष्ट और आत्मविश्वासी भारत को देखा-सुना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति ने इस सम्मेलन को भारत के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ बना दिया। कनाडा के कैननास्किस में जब वैश्विक नेताओं की चर्चा चल रही थी, तब भारत न सिर्फ एक सहभागी था, बल्कि कई मुद्दों पर नेतृत्व करते हुए नजर आया।

प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिमी देशों को आतंकवाद पर दोहरा रवैया अपनाने के लिए आड़े हाथ लिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों को पुरस्कृत किया जा रहा है, जबकि कुछ मामलों में मनमाने ढंग से प्रतिबंध लगाए जाते हैं। उनका संकेत पाकिस्तान को विश्व मुद्रा कोष व विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से मिली आर्थिक मदद की ओर था। भारत के प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन बंद करने की चेतावनी देते हुए आतंकवाद के विरुद्ध भविष्य में भी ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम उठाने की बात कही। उन्होंने कहा, “वैश्विक शांति व समृद्धि के लिए सोच व नीति स्पष्ट होनी चाहिए। यदि कोई भी देश आतंकवाद का समर्थन करता है तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी।”
निश्चित ही ऑपरेशन सिंदूर इस सम्मेलन की पृष्ठभूमि में एक अप्रत्यक्ष, किन्तु शक्तिशाली संदेश के रूप में उपस्थित था। इस सैन्य कार्रवाई ने दुनिया को यह बताया कि भारत अब अपनी सुरक्षा को लेकर किसी पर निर्भर नहीं है, आवश्यक होने पर वह त्वरित और निर्णायक कार्रवाई कर सकता है। हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसका श्रेय लेने की कोशिश की, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने शालीनता और स्पष्टता से यह बात दुनिया के सामने रखी कि यह ऑपरेशन सिंदूर भारत की जमीन, नीति और जिम्मेदारी का हिस्सा था, किसी तीसरे देश की भूमिका इसमें नहीं थी।
G-7 सम्मेलन में मोदी की बातों में वह भारत बोल रहा था, जो आज आकार ले रहा है, वह भारत जिसने विकासशील देशों की पीड़ा भी जी है। जब उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे पर दोहरे मापदंड अपनाने वालों को ललकारा, तो यह सिर्फ एक कूटनीतिक टिप्पणी नहीं थी, यह एक स्पष्ट चेतावनी थी, खासतौर पर पाकिस्तान जैसे देशों के लिए। मोदी ने साफ कहा कि आतंकवाद के खिलाफ अब दुनिया को एकजुट और निष्पक्ष होना होगा, वरना उसका फैलाव सबके लिए घातक होगा।
उन्होंने पर्यावरण, आधुनिक तकनीक, ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक असमानता जैसे विषयों पर भी भारत की सोच दुनिया के सामने रखी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि डीप फेक एक बहुत बड़ी चिंता का कारण है। इसलिए ‘एआई जेनेरेटेड कंटेट’ पर वाटर मार्किंग या उसको लेकर स्पष्ट घोषणा की व्यवस्था होनी चाहिए। एआई खुद एक बहुत ही ऊर्जा खपत करने वाली प्रौद्योगिकी है। प्रौद्योगिकी आधारित समाज की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अगर कोई उपाय है तो वह नवीनीकरणीय ऊर्जा ही है। यह भारत की ऐसी सोच है जो गहरी व संतुलित है, यह व्यावहारिक है और दीर्घकालिक समाधान पर केंद्रित है।
वैसे, इस सम्मेलन की सबसे दिलचस्प बात वह थी, जब सम्मेलन को बीच में छोड़कर लौटे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को वापसी में अमेरिका आने निमंत्रण दिया। किन्तु भारतीय प्रधानमंत्री ने शालीनता से मना करते हुए कहा कि वे अपनी पूर्व नियोजित क्रोएशिया यात्रा पर जाएंगे। यह एक प्रतीक था कि भारत अब संबंधों में बराबरी चाहता है, न कोई झुकाव, न अतिरिक्त दबाव। इसके बाद मोदी ने ट्रंप को भारत में होने वाली अगली क्वाड बैठक के लिए आमंत्रित किया और ट्रंप ने यह निमंत्रण स्वीकार भी किया। यह भारत-अमेरिका रिश्तों के बदलते आयामों का प्रतीक था-अब भारत सिर्फ एक सहयोगी नहीं, एक नीति-निर्माता साझेदार भी है।
इस G-7 सम्मेलन ने यह बात साफ कर दी है कि भारत अब केवल अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क नहीं है, वह अब वैश्विक शांति, स्थायित्व और न्याय के लिए भी जिम्मेदार भूमिका निभाने को तैयार है। एक ऐसा भारत, जो अपनी बात निर्भीकता से कहता है, जो अपना सम्मान और स्थान जानता है और जिसपर पिछलग्गू का ठप्पा लगाना असंभव है।
X@hiteshshankar
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