ये एक सर्वविदित सत्य है कि भारत की बढ़ती ताकत, फिर चाहे वो अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में हो, विकास हो या फिर रक्षा के क्षेत्र, से पूरी दुनिया अचंभित है। जिन देशों ने कभी भारत पर उपनिवेश स्थापित किया था वो भारत की नई ताकत को पचा नही पा रहे हैं। यही कारण है कि पश्चिमी मीडिया भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब करने की साजिशें कर रहा है। ऐसा ही कुत्सित प्रयास यूके से चलने वाले द गॉर्जियन ने किया है। इसमें एक लेख भारत के एंटी नक्सल अभियान को लेकिर छपा है। जिसके जरिए भारत सरकार को बदनाम करते हुए उसे हत्यारा घोषित करने की कोशिश हुई है।
इस लेख को हन्नाह एलिस पीटर्सन और आकाश हसन नाम के दो रिपोर्टर्स ने ‘Eradicating India’s jungle insurgency – can it be done and at what human cost?’ शीर्षक से लिखा है। लेख की शुरुआत में ही लिखा गया है कि भारत में गुरिल्ला कम्युनिस्ट युद्ध जंगलों की गहराई में व्याप्त है, जो कि 1960 में पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ। शुरुआत में ही इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान को हाईलाइट किया जाता है, जिसमें उन्होंने मार्च 2026 तक नक्सलवाद को भारत से उखाड़ फेंकने की बात कही है।
भारत सरकार को हत्यारा घोषित करने का नरैटिव
पश्चिमी मीडिया इस लेख के जरिए भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हत्यारा घोषित करने का नरैटिव चला रहा है। लेख में द गॉर्जियन लिखता है कि नक्सलवादियों का खात्मा करने के लिए 2024 में सरकार की ओर से ऑपरेशन कगार शुरू किया गया, जिसके तहत छत्तीसगढ़ के विशाल वन क्षेत्रों में 60,000 सुरक्षाबलों को उतार दिया गया। 2024 को सबसे खूनी साल बताया गया। साउथ टेररिज्म पोर्टल के हवाले से दावा किया कि 2024 में 344 लोगों की हत्या की गई। अखबार इन्हें नक्सली नहीं मानता है।
एक एखबार के संपादक एन वेणुगोपाल के हवाले से द गॉर्जियन लिखता है कि 2024 की शुरुआत में उग्रवाद विरोधी अभियान के बढ़ने के बाद से मारे गए लगभग 500 लोगों में से लगभग आधे गैर-लड़ाकू वनवासी थे, जिनमें बच्चे भी शामिल थे।
अखबार एंटी नक्सल अभियान को व्यवस्थित हत्याओं का सिलसिला कहता है। ईनाम के लालच में सुरक्षा बल हत्या करने वाले ईनामी शिकारी हो गए हैं।
किसी मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया के हवाले से अखबार लिखता है कि जब से ऑपरेशन कगार शुरू किया गया है तो सुरक्षा बलों को “दुर्व्यवहार, उत्पीड़न और मुठभेड़ में हत्या करने के लिए दंड से मुक्ति मिली है, अब यह बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है।” बेला भाटिया के हवाले से गॉर्जियन लिखता है कि कगार अभियान एक नई क्रूरता है, जिसमें सरकार नक्सलियों को पकड़ने और उन्हें गिरफ्तार करने की जगह सीधे उनकी हत्या करने पर जोर दे रही है। आम लोगों को नक्सली बताकर मारा जा रहा है।
नक्सली अभियान को उद्योगपतियों से जोड़कर भारत को बदनाम करने की साजिश
अखबार लिखता है कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों के हवाले से एंटी नक्सल अभियान को उद्योपतियों के लिए खनिजों के लिए रास्ता साफ करने से जोड़ रहा है। लेख में लिखा गया कि झारखंड और छत्तीसगढ़ लौह, अयस्क जैसे कई अन्य खनिजों से संपन्न हैं। भारत के कुछ बड़े उद्योगपतियों ने वहां खनन भी शुरू किया। इसका वहां के स्थानीय वनवासी विरोध करते हैं।
वनवासियों के लिए काम करने वाली सोनी सोरी के हवाले से अखबार ने इसे एकतरफा युद्ध करार दिया। एंटी नक्सल कार्रवाई को इस क्षेत्र के लोगों के खिलाफ सरकार के द्वारा छेड़ा गया युद्ध करार दिया, जो कि इलाके के खनिजों पर कब्जा करने की नीयत लिए बैठे उद्योपतियों के लिए रास्ता साफ करने के लिए है।
टिप्पणियाँ