आज के सूचना और तकनीकी युग में डेटा एक नए संसाधन के रूप में उभरा है। इंटरनेट, स्मार्टफोन, क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे आधुनिक तकनीकी नवाचारों से डेटा की मांग कई गुना बढ़ गई है। डेटा को सुरक्षित रूप से संग्रहीत, प्रोसेस और ट्रांसफर करने के लिए जिस आधारभूत संरचना की आवश्यकता होती है, वह है–डेटा सेंटर।

परियोजना प्रबंधक, टीएसएससी
(कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय, भारत सरकार)
भारत जैसे विशाल और तेजी से डिजिटल होते देश में डेटा सेंटर उद्योग एक तकनीकी आवश्यकता से इतर आर्थिक इंजन का रूप ले रहा है। इसमें डिजिटल इंडिया अभियान, 5G तकनीक का आगमन और डेटा-संचालित सेवाओं की बढ़ती मांग इसे गति प्रदान कर रही है। सरकार और निजी कंपनियां डिजिटल अवसंरचना को जहां सशक्त बना रही हैं, वही डेटा सुरक्षा और स्थानीयकरण के नियमों ने भी डेटा सेंटर के महत्व को बढ़ा दिया है। डेटा सेंटर एक ऐसी संरचना है, जहां इंटरनेट सेवाओं, वेबसाइट्स, क्लाउड एप्लिकेशन, डिजिटल बैंकिंग, सोशल मीडिया और विभिन्न तकनीकी प्रणालियों से जुड़े डेटा की संग्रहीत और प्रबंधित किया जाता है। यह अत्याधुनिक सर्वर, नेटवर्क डिवाइसेज़, स्टोरेज सिस्टम, बिजली आपूर्ति, सुरक्षा उपकरण और बैकअप सेवाओं से युक्त होता है। इसे हम डिजिटल युग का ‘डिजिटल गोदाम’ भी कह सकते हैं।
डेटा सेंटर का वर्तमान परिदृश्य
देश में गत 5 वर्ष में डेटा सेंटर उद्योग का अभूतपूर्व विकास हुआ है। कोविड-19 महामारी के बाद डिजिटल सेवाओं की मांग में तेजी आई है। 2023 में देश की डेटा सेंटर क्षमता लगभग 1.5 गीगावाट थी, जिसके 2030 तक 17 गीगावाट तक पहुंचने की संभावना है। यह 12 गुना वृद्धि को दर्शाता है। पिछले 3 वर्ष में इस क्षेत्र में 27 अरब डॉलर से अधिक का निवेश हुआ है, जो 2027 तक 100 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। 2020 में देश की कुल डेटा सेंटर क्षमता करीब 350 मेगावाट थी।
माइक्रोसॉफ्ट ने एआई और क्लाउड अवसंरचना के लिए 3 अरब डॉलर निवेश की घोषणा की है, जबकि रिलायंस, अडाणी, एयरटेल (Nxtra) और CtrlS जैसी भारतीय कंपनियां भी बड़े पैमाने पर डेटा सेंटर बना रही हैं। अडाणी समूह ने एक गीगावाट के दो डेटा सेंटर के लिए 10 अरब डॉलर के निवेश की योजना बनाई है, जिससे 2030 तक इनकी कुल क्षमता 10 गीगावाट तक पहुंच सकती है। हाल ही में मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने दुनिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर बनाने की योजना की घोषणा की है, जो वर्तमान प्रमुख सुविधाओं की क्षमता से संभवतः तीन गुना अधिक होगा और इसमें 20-30 अरब डॉलर का अनुमानित निवेश होगा।
कैपिटल लैंड इनवेस्टमेंट ने देश में डेटा सेंटर निर्माण के लिए 20-25 करोड़ डॉलर की निधि के लिए खाड़ी देशों के निवेशकों को लक्षित किया है, जो भारत को एआई शक्ति के रूप में उभरने में मदद करेगा। देश में अभी 121 कोलोकेशन डेटा सेंटर हैं और 87 नए केंद्रों की योजना बनाई गई है, जो महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में केंद्रित हैं। मुंबई, पुणे, चेन्नै, बेंगलुरु, हैदराबाद और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र डेटा सेंटर के प्रमुख केंद्र बनते जा रहे हैं। मुंबई विशेष रूप से फाइबर केबल लैंडिंग स्टेशन और समुद्री संपर्क के कारण डेटा सेंटर के क्षेत्र में अगुआ बन कर उभरी है। मुंबई में डेटा सेंटर निर्माण की लागत तोक्यो और सिडनी की तुलना में कम है, जो निवेश के लिए इसे आकर्षक बनाता है।
सरकार की भूमिका और निजी क्षेत्र
केंद्र सरकार ने डेटा सेंटर को इन्फ्रास्ट्रक्चर स्टेटस देने की घोषणा की है, जिससे इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाएं भी इस क्षेत्र को गति प्रदान कर रही हैं। 2020 में प्रस्तावित डेटा सेंटर नीति के तहत सरकार ने एक रूपरेखा प्रस्तुत की थी, जिसमें भूमि आवंटन, बिजली की उपलब्धता, क्लियरेंस प्रक्रिया में सरलता और वित्तीय प्रोत्साहन जैसे बिंदुओं पर जोर दिया गया था। देश में कई प्रमुख कंपनियां जैसे एनटीटी, रिलायंस जिओ, भारती एयरटेल, अडाणी कॉनेक्स, जीडीसी इंडिया और हीरानंदानी समूह डेटा सेंटर सेक्टर में निवेश कर रही हैं। वैश्विक कंपनियां जैसे अमेजन वेब सर्विसेस ,माइक्रोसॉफ्ट अजुरे और गूगल क्लाउड भी भारत में डेटा सेंटर स्थापित कर रही हैं। शहरी क्षेत्रों में उपयुक्त भूमि की कमी एक चुनौती है, जिसे विशेष आर्थिक क्षेत्रों और डेटा सेंटर पार्क के विकास से हल किया जा रहा है।
डेटा स्थानीयकरण और कानून
डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम-2023 के तहत डेटा स्थानीयकरण को अनिवार्य है, यानी विदेशी कंपनियों को भारतीयों का डेटा देश में संग्रहित करना होगा। इससे भी डेटा सेंटर की मांग बढ़ी है।
हालांकि भारत में डेटा सेंटर के लिए उपयुक्त बाजार मौजूद है, परंतु इस क्षेत्र में कई चुनौतियां भी हैं। जैस-डेटा सेंटर में अत्यधिक बिजली की आवश्यकता पड़ती है। देश के हर क्षेत्र में सस्ती और निरंतर ऊर्जा उपलब्ध नहीं है। डेटा सेंटर से काफी मात्रा में गर्मी व कार्बन उत्सर्जन होता है, जिससे पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। अत्याधुनिक तकनीक को संचालित करने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है, जो अभी भी सीमित संख्या में उपलब्ध हैं। कई राज्यों में मंजूरी प्रक्रिया में देरी और नियामकीय अस्पष्टता बनी हुई है।
भविष्य की संभावनाएं
भारत के लिए डेटा सेंटर वैश्विक केंद्र बनने की अपार संभावनाएं हैं। एशिया के मध्य में स्थित होने के कारण यह डेटा रूटिंग के लिए रणनीतिक रूप से लाभप्रद है। इंटरनेट व स्मार्टफोन का तेजी से प्रसार भी भारत को डेटा खपत का सबसे बड़ा बाजार बना रहा है। पश्चिमी देशों की तुलना में यहां निर्माण व संचालन लागत कम है। कई कंपनियां सौर व पवन ऊर्जा से ग्रीन डेटा सेंटर विकसित कर रही हैं, जो भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत है। एआई और आईओटी जैसी उभरती तकनीकों के लिए डेटा सेंटर की मांग और बढ़ेगी।
कुल मिलाकर भारत में तेजी से विकसित होता डेटा सेंटर उद्योग डिजिटल अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभ बन सकता है। उचित नीतियों, पर्याप्त निवेश और तकनीकी नवाचार के साथ घरेलू मांग पूरी करने के साथ भारत में एशिया-प्रशांत क्षेत्र का डेटा स्टोरेज और प्रोसेसिंग का प्रमुख केंद्र बनने की क्षमता है। इसमें सरकार, उद्योग जगत और तकनीकी संस्थानों के बीच समन्वय आवश्यक है। सरकार की डेटा स्थानीयकरण नीति, डिजिटल इंडिया अभियान और क्लाउड सेवाओं की बढ़ती मांग ने डेटा सेंटर उद्योग को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। भारत को डेटा सेंटर का वैश्विक केंद्र बनाने में उचित नीति, निजी और सार्वजनिक निवेश तथा तकनीकी नवाचार के समुचित समन्वय के अलावा आईटी प्रतिभा, रणनीतिक स्थान, प्रतिस्पर्धी लागत और सरकारी समर्थन इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
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