पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर: वीरता और धर्म की अमर गाथा
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पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर: वीरता और धर्म की अमर गाथा

लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ, महिलाओं के अधिकार और कृषि के लिए 300 साल पहले ऐतिहासिक कार्य किए।

by सुनील राय
May 30, 2025, 08:47 am IST
in उत्तर प्रदेश
Ahilyabai Holkar janm trishtabdi

देवी अहिल्याबाई होल्कर के जन्म त्रिशताब्दी पर आय़ोजित कार्यक्रम में दीप प्रज्वलित करते सीएम योगी आदित्यनाथ

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महारानी अहिल्याबाई होल्कर अजेय रहीं। वे कभी कोई युद्ध नहीं हारीं। धर्म-संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए उन्होंने बहुत बड़ा योगदान दिया। काशी में यदि मंदिर है तो उसका एकमात्र कारण अहिल्याबाई होल्कर हैं। यदि वे नहीं होतीं तो काशी में मंदिर का यह रूप नहीं देख सकते थे। हालांकि मोदी-योगी के कार्यकाल में अभी बहुत कुछ मिलने वाला है। मणिकर्णिका घाट के निर्माण में उनका बड़ा योगदान है। हरिद्वार, प्रयाग, अयोध्या में सरयू घाट का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने किया। सोमनाथ, कांची, रामेश्वरम, भीमाशंकर, श्रीशैलम में इन्होंने धर्मशालाओं का निर्माण, पीने के पानी, भंडारा की व्यवस्था की। पुजारियों के पूजा की जो व्यवस्था की, वह आज भी चालू है।

यह बातें भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने कहीं। उन्होंने गुरुवार को डॉ. राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय में आयोजित ‘पुण्यश्लोक’ पूज्य देवी अहिल्याबाई होल्कर जन्म त्रिशताब्दी वर्ष स्मृति अभियान-2025 को संबोधित किया। बीएल संतोष ने अहिल्याबाई होल्कर के आदर्श को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने की अपील की। उन्होंने रामायण की चर्चा से बात की शुरुआत की, फिर अहिल्याबाई होल्कर के ‘पुण्यश्लोक’ उपाधि की चर्चा की। उन्होंने बताया कि अहिल्याबाई होल्कर का जीवन, साधना, कृतित्व, समाज, किसानों, महिलाओं, आर्थिक व्यवहार, पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर भी बहुत पुण्य का कार्य किया। अहिल्या बाई होल्कर के जीवन की हर पंक्ति पुण्यश्लोक जैसी है। उनकी कहानी सुनते-सुनते बड़े-बड़े इतिहासकारों ने अहिल्याबाई होल्कर को रानी, लोकमाता, लोकमंगल, प्रजावत्सला के बाद पुण्यश्लोक भी लिखा।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि हमने स्कूल-कॉलेज में अहिल्याबाई के बारे में नहीं पढ़ा। शासन करने वाले लोगों ने लंबे समय तक शिवाजी, महाराणा प्रताप, अहिल्याबाई होल्कर के बारे में पाठ्यक्रम में आने नहीं दिया। देश में 300 साल पहले जब महिला सशक्तिकरण का नाम ही नहीं था, तब एक रानी ने इतना बड़ा काम किया। उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर को आज मिजोरम, मेघालय से लेकर कर्नाटक, अंडमान निकोबार, केरल तक लोग याद कर रहे हैं। मुरादाबाद, उत्तराखंड, कर्नाटक में उनकी प्रतिमा स्थापित हुई। अहिल्याबाई होल्कर ने जीवन में दुख सहते हुए भी प्रजा की सेवा की।

भाजपा के संगठन महामंत्री ने कहा कि आठ वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। अल्पायु में ही पति, ससुर, बेटे, बेटी, दामाद को खोने के बाद उन्होंने खुद को संभाला। यदि अच्छे ढंग से राज्य को नहीं संभाला तो प्रदेश अनाथ हो जाएगा। फिर अपने आप को संभालते हुए नर्मदा तट पर महेश्वर को राजधानी बनाई।

उन्होंने कहा कि होल्कर ने महिलाओं, किसानों, सिंचाई, व्यापार, आर्थिकी बढ़ाने और कारीगरों के लिए बहुत कार्य किया। हजारों कारीगरों को एकत्र कर माहेश्वरी ब्रांड क्रिएट किया और माहेश्वरी साड़ी को विश्व प्रसिद्ध किया। सिंचाई, सेना, पड़ोसी राज्यों के संबंध में उनके द्वारा किए गए कार्य अतुलनीय रहे। जिनके पास जमीन नहीं थी, अहिल्याबाई होल्कर उन्हें अपने राज्य की जमीन देती थीं।

उन्होंने बताया कि हमारी सरकार यूपी में क्रॉप डायवर्टिफिकेशन की बात करती है, लेकिन अहिल्याबाई होल्कर ने 300 साल पहले इसकी बात की। उन्होंने किसानों की सुरक्षा, समृद्धि के लिए बहुत कार्य किया। ब्रिटिश वायसराय ने उनकी प्रशंसा की। वे पड़ोसी राज्यों के साथ अच्छे संबंध रखती थीं। संवाद के जरिए महिला कल्याण, विधवाओं के लिए उन्होंने अनेक प्रशंसनीय कार्य किया।

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर भारत की महान आदर्श शासिका थीं। उनका जन्म 31 मई 1725 को हुआ था। पति की मृत्यु के बाद 1767 में राज्य की बागडोर संभाली और 28 वर्ष तक राज्य का कुशल नेतृत्व किया। उनका दृष्टिकोण अखिल भारतीय था। उन्होंने राज्य, समाज, क्षेत्र के लिए बहुत कार्य किए। धार्मिक, प्रशासनिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विषयों पर उन्होंने वृहद सोच को प्रदर्शित कर अभियान को आगे बढ़ाया। होल्कर ने काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका, रामेश्वरम, जगन्नाथपुरी आदि तीर्थ स्थानों का जीर्णोद्धार और मंदिरों-धर्मशालाओं का भी निर्माण कराया। काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उन्होंने राज्य में प्रशासनिक सुधारों के साथ अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए व्यापक कदम उठाए। बिना कर बढ़ाए राज्य का राजस्व 75 लाख से बढ़ाकर सवा करोड़ तक पहुंचाया। युद्धकौशल के लिए अनेक कदम उठाए। विधवा महिलाओं को संपत्ति का अधिकार, गोद लेने की अनुमति दी गई, जिससे समाज में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा मिला। सांस्कृतिक क्षेत्र में भी उनका बड़ा योगदान है। 25 अगस्त 1996 में उनकी याद में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया। उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणास्रोत है।

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