RSS : We should not be dependent on anyone for security.
May 25, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम संघ

“सुरक्षा के मामले में हम किसी पर निर्भर ना हों…’’ : सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत

वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा आरंभ हुई थी, जो इस वर्ष विजयादशमी पर अपने शताब्दी के पड़ाव को प्राप्त करेगी। संघ आज विश्व का सबसे विलक्षण, विस्तृत और राष्ट्रव्यापी संगठन बन गया है।

by हितेश शंकर, प्रफुल्ल केतकर and अश्वनी मयेकर और एम . बालकृष्णन
May 25, 2025, 10:10 am IST
in संघ, साक्षात्कार
रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत

रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा आरंभ हुई थी, जो इस वर्ष विजयादशमी पर अपने शताब्दी के पड़ाव को प्राप्त करेगी। संघ आज विश्व का सबसे विलक्षण, विस्तृत और राष्ट्रव्यापी संगठन बन गया है। प्रतिनिधि सभा के बाद संघ का जो संकल्प, आह्वान सामने आया, जिसमें इस यात्रा के मूल्यांकन की बात हुई, आत्ममंथन की बात हुई और संघ का मूल विचार है, उसके लिए पुन: नवीन रूप से संकल्पित होने की बात हुई। संघ का काम, आयाम कैसा है? वे कौन से लोग थे, जिन्होंने इस संकल्प को गहराई तक पहुंचाया। कौन-सा मोड़ था, कौन-सी घटनाएं थीं, जिनसे गुजरकर आज संघ हमारे सामने इस रूप में खड़ा हुआ है। संघ के विरोधी क्या सोचते हैं और संघ अपने विरोधियों के बारे में क्या सोचता है? संघ आज क्या है और संघ कल क्या होगा, उसके भविष्य पथ पर भी दृष्टिपात करने के लिए पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर, ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर , विवेक की संपादक अश्वनी मयेकर और दैनिक जन्मभूमि के सहयोगी संपादक एम . बालकृष्णन ने रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के साथ विस्तार से बातचीत की। यह संवाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (22–24 मार्च, 2025) की पृष्ठभूमि में और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से पूर्व हुआ था। प्रस्तुत हैं वार्ता के संपादित अंश –

आप संघ के एक स्वयंसेवक एवं सरसंघचालक के नाते संघ की 100 वर्ष की यात्रा को कैसे देखते हैं?

डॉ. हेडगेवार जी ने संघ का कार्य बहुत सोच-समझकर शुरू किया। देश के सामने जो कठिनाइयां दिखती हैं, उनका क्या उपाय करना चाहिए यह प्रयोगों के आधार पर निश्चित किया गया और वह उपाय अचूक रहा। संघ की कार्य पद्धति से काम हो सकता है और मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को पार कर संघ आगे बढ़ सकता है, यह अनुभव से सिद्ध होने में 1950 तक का समय लग गया। उसके बाद संघ का देशव्यापी विस्तार और उसके स्वयंसेवकों का समाज में अभिसरण शुरू हुआ। आगे चार दशक तक संघ के स्वयंसेवकों ने समाज जीवन के अन्यान्य क्षेत्रों में उत्तम रीति से कार्य करते हुए अपने कर्तृत्व, अपनत्व तथा शील के आधार पर समाज का विश्वास अर्जित किया तथा 1990 के पश्चात इस विचार एवं गुण संपदा के आधार पर देश को चलाया जा सकता है, यह सिद्ध कर दिखाया। अब इसके आगे हमारे लिए करणीय कार्य यह है कि इसी गुणवत्ता का तथा विचार का अवलंबन कर पूरा समाज सब भेद भूलकर प्रामाणिकता व नि:स्वार्थ बुद्धि से देश के लिए स्वयं कार्य करने लगे, और देश को बड़ा बनाए।

100 वर्ष की इस यात्रा में महत्वपूर्ण पड़ाव क्या थे?
संघ के पास कुछ नहीं था। विचार की मान्यता नहीं थी, प्रचार का साधन नहीं था, समाज में उपेक्षा और विरोध ही था। कार्यकर्ता भी नहीं थे। संगणक (कंप्यूटर) में इस जानकारी को डालते तो, वह भविष्यवाणी करता कि यह जन्मते ही मर जाने वाला है। लेकिन देश विभाजन के समय हिंदुओं की रक्षा की चुनौती व संघ पर प्रतिबंध की कठिन विपत्तियों में से संघ सफल होकर निकला और 1950 तक यह सिद्ध हो गया कि संघ का काम चलेगा, बढ़ेगा। इस पद्धति से हिंदू समाज को संगठित किया जा सकता है। आगे संघ का पहले से भी अधिक विस्तार हो गया। इस संघ शक्ति का महत्व 1975 के आपातकाल में संघ की जो भूमिका रही, उसके कारण समाज के ध्यान में आया। आगे एकात्मता रथ यात्रा, कश्मीर के संबंध में समाज में जनजागरण तथा श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन व विवेकानंद सार्धशती जैसे अभियानों के माध्यमों से तथा सेवा कार्यों के प्रचंड विस्तार से संघ विचार तथा संघ के प्रति विश्वसनीयता का भाव समाज में अच्छी मात्रा में
विस्तारित हुआ।

1948 और 1975 में संघ पर जो संकट आए, संगठन ने उससे क्या सीखा?
यह दोनों प्रतिबंध लगने के पीछे राजनीति थी। प्रतिबंध लगाने वाले भी जानते थे कि संघ से नुकसान कुछ नहीं, अपितु संघ से लाभ ही है। इतने बड़े समाज में स्वाभाविक ही चलने वाली विचारों की प्रतिस्पर्धा में अपना राजनैतिक वर्चस्व बनाए रखने का प्रयास करने वाले सत्तारूढ़ लोगों ने संघ पर प्रतिबंध लगाया। पहले प्रतिबंध में सभी बातें संघ के विपरीत थीं। संघ को समाप्त हो जाना था। परन्तु सब विपरीतता के बावजूद संघ उस प्रतिबंध से बाहर आया और आगे 15-20 वर्ष में पूर्ववत् होकर पूर्व से भी आगे बढ़ गया। संघ के स्वयंसेवक जो केवल शाखाएं चलाते थे, समाज के क्रियाकलापों में बड़ी भूमिका नहीं रखते थे, वे समाज के अन्यान्य क्रियाकलापों में सहभागी होकर वहां अपनी भूमिका सुनिश्चित करने लगे।

1948 के प्रतिबंध से संघ को यह लाभ हुआ कि हमने अपने सामर्थ्य को जाना और समाज में और व्यवस्थाओं में परिवर्तन लाने की ओर स्वयंसेवक योजना बनाकर अग्रसर हुए। संघ के विचार में पहले से तय था कि संघ कार्य केवल एक घंटे की शाखा तक मर्यादित नहीं है, बल्कि शेष 23 घंटे के अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, सार्वजनिक तथा आजीविका के क्रियाकलापों में संघ के संस्कारों की अभिव्यक्ति भी करनी है। आगे चलकर 1975 के प्रतिबंध में समाज ने संघ के इस बढ़े हुए दायरे की शक्ति का अनुभव किया। जब अच्छे-अच्छे लोग निराश होकर बैठ गए थे, तब सामान्य स्वयंसेवक भी यह संकट जाएगा और इसमें से हम सब सही सलामत बाहर आएंगे, ऐसा विश्वासपूर्वक सोचता था। 1975 के आपातकाल के समय अपने प्रतिबंध को मुद्दा न बनाते हुए संघ ने प्रजातंत्र की रक्षा के लिए काम किया, संघ के ऊपर टीका-टिप्पणी करने वालों का भी साथ दिया। उस समय समाज में, विशेष कर समाज के विचारशील लोगों में एक विश्वासपात्र वैचारिक ध्रुव के नाते संघ का स्थान बना। आपातकाल के पश्चात संघ कई गुना अधिक बलशाली होकर बाहर आया।

भौगोलिक और संख्यात्मक दृष्टि से संघ बढ़ता गया है। इसके बावजूद गुणवत्तापूर्ण कार्य व स्वयंसेवकों का गुणवत्ता प्रशिक्षण करने में संघ सफल रहा है। इसके क्या कारण हैं?
गुणवत्ता और संख्या में आप केवल गुणवत्ता बढ़ाएंगे और संख्या नहीं बढ़ाएंगे अथवा केवल संख्या बढ़ाएंगे और गुणवत्ता नहीं बढ़ाएंगे तो गुणवत्ता का बढ़ना या संख्या का टिकना यह संभव नहीं। इसी बात को समझकर संघ ने पहले से इस पर ध्यान रखा है कि संघ को सम्पूर्ण समाज को संगठित करना है, लेकिन संगठित करना इसका एक अर्थ है। एक व्यक्ति को कैसे तैयार करना है, इन सब व्यक्तियों का गठबंधन या संगठन कैसा होना चाहिए, ‘हम’ भावना कैसी होनी चाहिए, इसके लिए पहले से कुछ मानक तय किए हैं। उन मानकों को तोड़े बिना संख्या बढ़ानी है और मानकों पर समझौता नहीं करना है, इसका अर्थ लोगों को संगठन के बाहर रखना नहीं। एक उदाहरण है, एक बड़े संगठन के प्रारंभ के दिनों का। उस संगठन में मूल समाजवादी विचारधारा के एक व्यक्ति कार्यकर्ता बने। उनको लगातार सिगरेट पीने की आदत थी। पहली बार वो अभ्यास वर्ग में आए। सिगरेट तो छोड़िए, वहां सुपारी खाने वाला भी कोई नहीं था। वे दिन भर तड़पते रहे। रात को बिस्तर पर लेटे तो नींद नहीं आ रही थी। इतने में संगठन मंत्री आए और कहा कि नींद नहीं आ रही है तो बाहर चलो। थोड़ा टहल आते हैं। बाहर ले जाकर उन्होंने उस नए व्यक्ति को यह भी कहा कि उधर चौक पर सिगरेट मिलेगी। मन भरकर पी लो और वापस आ जाओ। वर्ग के अंदर सिगरेट नहीं मिलेगी। वे नए कार्यकर्ता टिक गए, बहुत अच्छे कार्यकर्ता बने और सिगरेट भी छूट गई। उस संगठन को उन्होंने उस प्रदेश में बहुत ऊंचाई तक पहुंचाया। व्यक्ति जैसा है, वैसा स्वीकार करना है। यह लचीलापन हम रखते हैं। परन्तु हमें जैसा चाहिए, वैसा उसको बनाने वाली आत्मीयता की कला भी हम रखते हैं। यह हिम्मत और ताकत हम रखते हैं। इस कारण संख्या बढ़ाने के साथ ही गुणवत्ता कायम रही। हमें संगठन में गुणवत्ता चाहिए, लेकिन हमें पूरे समाज को ही गुणवत्तापूर्ण बनाना है, इसका भान हम रखते हैं।

संघ आज भी डॉ. हेडगेवार जी एवं श्रीगुरुजी के मूल विचारों के अनुरूप चल रहा है। परिस्थिति की आवश्यकता के अनुरूप इसमें कैसे रूपांतरण किया है?
डॉक्टर साहब, श्रीगुरुजी या बाळासाहब के विचार सनातन परम्परा या संस्कृति से अलग नहीं हैं। प्रगाढ़ चिंतन व कार्यकर्ताओं के प्रत्यक्ष प्रयोगों के अनुभव से संघ की पद्धति पक्की हुई और चल रही है। पहले से ही उसमें पोथी निष्ठा, व्यक्ति निष्ठा व अंधानुकरण की कोई जगह नहीं है। हम तत्वप्रधान हैं। महापुरुषों के गुणों का, उनकी बताई दिशा का अनुसरण करना है, परन्तु हर देश-काल-परिस्थिति में अपना मार्ग स्वयं बनाकर चलना है। इसलिए नित्यानित्य विवेक होना चाहिए। संघ में नित्य क्या है?

एक बार बाळासाहब ने कहा था कि ‘हिंदुस्थान हिंदू राष्ट्र है’, इस बात को छोड़कर बाकी सब कुछ संघ में बदल सकता है। सम्पूर्ण हिंदू समाज इस देश के प्रति उत्तरदायी समाज है। इस देश का स्वभाव व संस्कृति हिंदुओं की संस्कृति है। इसलिए यह हिंदू राष्ट्र है। इस बात को पक्का रखकर सब करना है। इसलिए स्वयंसेवक की प्रतिज्ञा में “अपना पवित्र हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति व हिंदू समाज का संरक्षण करते हुए हिंदू राष्ट्र के सर्वांगीण उन्नति” की बात कही गई है। हिंदू की अपनी व्याख्या भी व्यापक है। उसकी चौखट में अपनी दिशा कायम रखते हुए देश-काल-परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन करते हुए चलने का पर्याप्त अवसर है। प्रतिज्ञा में “मैं संघ का घटक हूं”, यह भी कहा जाता है। घटक यानी संघ को गढ़ने वाला, संघ का लघुरूप और संघ का अभिन्न अंग, इसलिए अलग-अलग मत होने पर भी चर्चा में उनकी अभिव्यक्ति का पूर्ण स्वातंत्र्य है। एक बार सहमति बनकर निर्णय होने पर सब लोग अपना-अपना मत उस निर्णय में विलीन कर एक दिशा में चलते हैं। जो निर्णय होता है उसको मानना है। इसलिए सबको कार्य करने की स्वतंत्रता भी है और सबकी दिशा भी एक है। नित्य को हम कायम रखते हैं और अनित्य को देश-काल-परिस्थिति के अनुसार बदलकर चलते हैं।

संघ को जो बाहर से देखते हैं, जिन्होंने अनुभव नहीं किया है, उन्हें संगठन का ढांचा समझ में आता है, लेकिन इतनी लंबी यात्रा में विचार-विमर्श और आत्मचिंतन की प्रक्रिया कैसी रहती है!
उसकी एक पद्धति बनाई है, जिसमें उद्देश्य और आशय निश्चित है। लेकिन उनको देने की पद्धति अलग-अलग हो सकती है। ढांचा तो बदल सकता है, लेकिन ढांचे के अंदर क्या है वह पक्का है। परिस्थिति के साथ-साथ मन:स्थिति का भी महत्व है। इसलिए हमारे प्रशिक्षणों में देश की स्थिति, चुनौतियां आदि बहुत सारा विचार रहता है। जिसके साथ-साथ ही उनके संदर्भ में स्वयंसेवक को कैसा होना चाहिए, संगठन किन गुणों के आधार पर बनता है, स्वयं में उन गुणों का विकास करने के लिए हम क्या करते हैं, आदि बातों का भी विचार होता है। प्रार्थना में हमारे सामूहिक संकल्प का और प्रतिज्ञा में प्रत्येक स्वयंसेवक का व्यक्तिगत संकल्प नित्य प्रतिदिन स्मरण किया जाता है। स्वयंसेवक का अर्थ ही है-स्वयं से प्रारम्भ करने वाला। संघ का घटक शब्द का अर्थ है ‘जैसा मैं हूं, वैसा संघ है और जैसा संघ है, वैसा मैं हूं’। जैसे समुद्र की हर बूंद समुद्र जैसी है और सब बूंदों से मिलकर ही समुद्र बनता है। यह ‘एक’ और ‘पूर्ण’ का संबंध संघ में प्रारम्भ से ही चल रहा है। स्वयंसेवक का आत्मचिंतन सतत चलता है। सफलता का श्रेय पूरे संघ का होता है। असफलता की स्थिति में ‘मैं कहां कम पड़ा’ इसको हर स्वयंसेवक सोचता है। यही प्रशिक्षण स्वयंसेवकों का होता है।

समाज बदला, जीवनशैली बदली, क्या आज की परिस्थिति में संघ की दैनिक शाखा का मॉडल उतना ही प्रभावी है या इसके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी है?
शाखा के कार्यक्रमों के विकल्प हो सकते हैं और उसको हम स्वीकार करते हैं। लेकिन शाखा जो तत्व है- इकट्ठा आना, सद्गुणों की सामूहिक उपासना करना और प्रतिदिन मन में इस संकल्प को जाग्रत करना कि हम मातृभूमि के लिए काम कर रहे हैं, परमवैभव के लिए काम कर रहे हैं। यह जो आधार है, मिलना-जुलना, एक-दूसरे का सहयोग, यह मूल है। इसका विकल्प नहीं है। सामान्य आदमी सामान्य है। वह असामान्य तब होता है, जब वह जुड़ा रहता है। और फिर सामान्य व्यक्ति भी असामान्य कार्य कर डालता है, असामान्य त्याग भी करता है। लेकिन उसके लिए एक वातावरण होना चाहिए और फिर उस वातावरण से जुड़ना।

उदाहरण और आत्मीयता, यह परिवर्तन के कारक हैं और कोई नहीं। दुनिया में कहीं भी जाओ, कभी भी परिवर्तन होता है तो कोई एक मॉडल रहता है, जिसमें पहले अपने आपको परिवर्तन करना पड़ता है, उसको देखकर लोगों में परिवर्तन होता है। यह दूर रहकर नहीं चलता, आप्त होना पड़ता है, पास होना पड़ता है। महापुरुष बहुत हैं, उन्हें जानते भी हैं। उनके प्रति हमारी श्रद्धा है, सम्मान है। लेकिन मैं जिसकी संगति में हूं, वह जैसा चलता है, मैं वैसा चलता हूं। करता मैं वही हूं, जिसकी संगति मुझे है। मेरा अपना मित्र, लेकिन मेरे से थोड़ा अच्छा है, उसी का अनुसरण करता हूं। यह परिवर्तन की सिद्ध पद्धति है। इसमें कहीं बदलाव नहीं हुआ है, तब तक तो शाखा का दूसरा मॉडल नहीं है। कार्यक्रम और बाकी सब बदल सकता है। शाखा का समय बदलता है, वेश बदलता है। शाखा में तरह-तरह के कार्यक्रम करने की अनुमति पहले से है, लेकिन शाखा का विकल्प नहीं है। शाखा कभी अप्रासंगिक नहीं होती। आज हमारे शाखा मॉडल के बारे में प्रगत देशों के लोग आकर अध्ययन कर रहे हैं, उसके बारे में पूछ रहे हैं। हर दस साल पर हम चिंतन करते हैं कि क्या दूसरा कोई विकल्प है? ऐसे चिंतनों में मैं आज तक 6-7 बार उपस्थित रहा हूं, लेकिन जो हमको करना है, उसको करने वाला कोई विकल्प अभी तक नहीं मिला है।

संघ वनवासी क्षेत्रों में कैसे बढ़ रहा है?
वनवासी क्षेत्रों में पहला काम है कि जनजातीय बंधुओं को सशक्त करना। उनकी सेवा करना। बाद में यह भी जुड़ गया कि उनके हितों की रक्षा के लिए प्रयास करना। हम चाहते हैं कि जनजातीय समाज में से ही उनका ऐसा नेतृत्व खड़ा हो जो अपने जनजातीय समाज की चिंता करे और सम्पूर्ण राष्ट्र जीवन का वह एक अंग है, यह समझकर उनको आगे बढ़ाए। इन क्षेत्रों में काम करने वाले स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ रही है। जनजाति क्या है, उनकी जड़ें कहां हैं, जनजातीय समाज से निकले महापुरुष, स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले जनजातीय समाज के नायक, इन सब बातों का स्मरण आवश्यक है। धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्वर में बोलने वाले, योगदान करने वाले कार्यकर्ता व नेतृत्व वहां खड़ा हो, इसका प्रयास चल रहा है। पूर्वोत्तर के साथ ही अन्य जनजातीय क्षेत्रों में संघ की शाखाएं बढ़ रही हैं।

भारत के पड़ोसी देशों में हिंदुओं का उत्पीड़न हो रहा है, उनके विरुद्ध हिंसा हो रही है। विश्व में मानवाधिकार की चिंता करने वाले क्या हिंदुओं की वैसी चिंता कर रहे हैं? संघ की प्रतिनिधि सभा में भी यह विषय उठा है। आपका इस पर क्या मत है?
हिंदू की चिंता तब होगी, जब हिंदू इतना सशक्त बनेगा; क्योंकि हिंदू समाज और भारत देश जुड़े हैं, हिंदू समाज का बहुत अच्छा स्वरूप भारत को भी बहुत अच्छा देश बनाएगा- जो अपने आप को भारत में हिंदू नहीं कहते उनको भी साथ लेकर चल सकेगा, क्योंकि वे भी हिंदू ही थे। भारत का हिंदू समाज सामर्थ्यवान होगा तो विश्व भर के हिंदुओं को अपने आप सामर्थ्य लाभ होगा। यह काम चल रहा है, परन्तु पूरा नहीं हुआ है। धीरे-धीरे वह स्थिति आ रही है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए अत्याचार पर आक्रोश का प्रकटीकरण इस बार जितना हुआ है, वैसा पहले नहीं होता था। यही नहीं, वहां के हिंदुओं ने यह भी कहा है कि वे भागेंगे नहीं, बल्कि वहीं रहकर अपने अधिकार प्राप्त करेंगे। अब हिंदू समाज का आतंरिक सामर्थ्य बढ़ रहा है। एक तरह से संगठन बढ़ रहा है, उसका परिणाम अपने आप आएगा। तब तक इसके लिए लड़ना पड़ेगा। दुनिया में जहां-जहां भी हिंदू हैं, उनके लिए हिंदू संगठन के नाते अपनी मर्यादा में रहकर जो कुछ कर सकते हैं, वो सब कुछ करेंगे, उसी के लिए संघ है। स्वयंसेवक की प्रतिज्ञा ही ‘धर्म, संस्कृति और समाज का संरक्षण कर राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति’ करना है।

वैश्विक व्यवस्था में सैन्य शक्ति, राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक ताकत का अपना एक महत्व है। संघ इसके बारे में क्या सोचता है?
बल संपन्न होना ही पड़ेगा। संघ प्रार्थना की पंक्ति ही है-अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम्। हमें कोई जीत न सके, इतना सामर्थ्य होना ही चाहिए। अपना स्वयं का बल ही वास्तविक बल है। सुरक्षा के मामले में हम किसी पर निर्भर न हों, हम अपनी सुरक्षा स्वयं कर लें, हमें कोई जीत न सके, सारी दुनिया मिलकर भी हमें जीत न सके, इतना सामर्थ्य संपन्न हमको होना ही है। क्योंकि विश्व में कुछ दुष्ट लोग हैं जो स्वभाव से आक्रामक हैं। सज्जन व्यक्ति केवल सज्जनता के कारण सुरक्षित नहीं रहता। सज्जनता के साथ शक्ति चाहिए। केवल अकेली शक्ति दिशाहीन होकर हिंसा का कारण बन सकती है। इसलिए उसके साथ ही सज्जनता चाहिए। इन दोनों की आराधना हमको करनी पड़ेगी। भारतवर्ष अजेय बने। ‘परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम्’ ऐसा सामर्थ्य हो। कोई उपाय नहीं चलेगा, तब दुष्टता को बलपूर्वक नष्ट करना ही पड़ेगा। परन्तु साथ में स्वभाव की सज्जनता है तो रावण को नष्ट कर उस जगह विभीषण को राजा बनाकर वापस आ जाएंगे। यह सारा, सारे विश्व के कारोबार पर हमारी छाया पड़े, इसलिए हम नहीं कर रहे। सभी का जीवन निरामय हो, समर्थ हो, इसलिए कर रहे हैं। हमें शक्ति संपन्न होना ही पड़ेगा, क्योंकि दुष्ट लोगों की दुष्टता का अनुभव हम अपनी सभी सीमाओं पर ले रहे हैं।

भारत की भाषिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को ध्यान में रखते हुए संघ समावेशता को कैसे बढ़ावा दे रहा है?
संघ में आकर देखिए। सब भाषाओं के, पंथ संप्रदायों के लोग बहुत आनंद के साथ मिलकर संघ में काम करते हैं। संघ के गीत केवल हिंदी में नहीं हैं, बल्कि अनेक भाषाओं में हैं। हर भाषा में संघ गीत गाने वाले गायक, गीतों की रचना करने वाले कवि, संगीत रचनाकार हैं। फिर भी सब लोग संघ शिक्षा वर्गों में जो तीन गीत दिए जाते हैं, वह भारत वर्ष में सर्वत्र गाते हैं। सभी लोग अपनी-अपनी विशिष्टताओं को कायम रखकर अपने एक राष्ट्रीयत्व का सम्मान तथा सम्पूर्ण समाज की एकता का भान सुरक्षित रखकर चल रहे हैं। यही संघ है। इतनी विविधताओं से भरे समाज को एक सूत्र में पिरोने वाला सूत्र ही हम देते हैं ।

संघ सामाजिक समरसता की बात करता है और उसके लिए काम भी करता है। मगर कुछ लोग हैं जो समानता की बात करते हैं। आप इन दोनों में भेद कैसे देखते हैं?
समानता आर्थिक है, राजनैतिक है और सामाजिक समानता आनी चाहिए। नहीं तो इनका कोई अर्थ नहीं रहेगा। बंधुभाव ही समरसता है। स्वातंत्र्य और समता दोनों का आधार बंधुता है। समता बिना स्वतंत्रता के संकोच लाती है और टिकाऊ होनी है तो बंधुभाव का आधार चाहिए। यह बंधुभाव ही समरसता है। वह समता की पूर्व शर्त है। जात-पात और छुआछूत के विरोध में कानून होने के पश्चात भी विषमता नहीं जाती, क्योंकि उसका निवास मन में रहता है। उसे मन से निकालना है। सब अपने हैं, इसलिए हम सब समान हैं, ये मानना है। दिखने में समान नहीं हैं तो भी हम एक-दूसरे के हैं, अपनत्व में बंधे हैं, इसी को समरसता कहते हैं। प्रेमभाव, बंधुभाव को ही समरसता कहते हैं।

संघ में महिलाओं की भागीदारी को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। उसके बारे में आप क्या कहेंगे?
संघ के प्रारम्भिक दिनों में, 1933 के आस पास, यह व्यवस्था बनी कि महिलाओं में व्यक्ति निर्माण और समाज संगठन का काम राष्ट्र सेविका समिति के द्वारा ही होगा। वह व्यवस्था चल रही है। जब राष्ट्र सेविका समिति कहेगी कि संघ भी महिलाओं में यह काम करे, तभी हम उसमें जाएंगे। दूसरी बात ये है कि संघ की शाखा का कार्यक्रम पुरुषों के लिए है। उन कार्यक्रमों को देखने के लिए महिलाएं आ सकती हैं और आती भी हैं। परन्तु संघ का कार्य केवल कार्यकर्ताओं के भरोसे नहीं चलता। हमारी माता-बहनों का हाथ लगता है, तभी संघ चलता है। संघ के स्वयंसेवक के घर में जितनी भी महिलाएं हैं, उतनी महिलाएं संघ में हैं। विभिन्न संगठनों में भी महिलाएं संघ के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर काम करती हैं। संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में भी उनका प्रतिनिधित्व और सक्रिय सहभागिता है। इन महिलाओं ने पहली बार भारत के महिला जगत का व्यापक सर्वेक्षण किया, जिसको शासन ने भी स्वीकारा है। उन्हीं के द्वारा पिछले वर्ष सारे देश में बहुत बड़े महिला सम्मलेन हुए, जिनमें लाखों महिलाओं ने भाग लिया। इन सब कार्यों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन व सहयोग रहा। हम यह मानते हैं कि महिलाओं का उद्धार पुरुष नहीं कर सकते। महिलाएं स्वयं अपना उद्धार करेंगी, उसमें सबका उद्धार हो जाएगा। इसलिए हम उन्हीं को प्रमुखता देते हैं और जो वे करना चाहती हैं, उसके लिए उनको सशक्त बनाते हैं।

संघ के शताब्दी वर्ष में ‘पंच परिवर्तन’ का संकल्प आया है। इसे लेकर कोई कार्य योजना बनाई है, इसके आधार पर आगे क्या कर सकते हैं?
आचरण के परिवर्तन के लिए आवश्यक बात है मन का भाव। जो काम करने से मन का भाव बदलता है, स्वभाव परिवर्तित हो जाता है, वह काम देना है। और जीवन भी ठीक हो जाता है। इसलिए पंच परिवर्तन की बात है। एक तो समरसता की बात है, अपने समाज में प्रेम उत्पन्न हो। विविध प्रकार का समाज है, विविध अवस्था में है, विविध भौगोलिक क्षेत्रों में है, समस्याएं हैं। एक नियम आपके लिए बना है, मेरे लिए ठीक होगा ही, ऐसा नहीं है। इतना बड़ा देश है। इसमें से अगर रास्ता निकालना है, तो जो भी प्रावधान करने पड़ेंगे, वे प्रावधान मन से होंगे तो सुरक्षित रहेंगे और प्रेम बढ़ेगा। सामाजिक समरसता का व्यवहार करना है। उसमें सामाजिक समरसता का प्रचार अभिप्रेत नहीं है। प्रत्यक्ष समाज के बाहर जितने प्रकार माने जाते हैं, हम तो एक मानते हैं, सब प्रकार के मेरे मित्र होने चाहिए, मेरे कुटुंब के मित्र होने चाहिए। जहां अपना प्रभाव है वहां मंदिर, पानी, श्मशान एक हों, यह प्रारंभ है, इसको बढ़ाते जाना है।

ऐसे ही कुटुंब प्रबोधन है। जो संसार को राहत देने वाली बातें हैं, जिन आवश्यक परंपरागत संस्कारों से आती हैं, हमारी कुल-रीति में हैं और देश की रीति-नीति में भी हैं। उन पर बैठ कर चर्चा करना और उस पर सहमति बनाकर परिवार के आचरण में लाना, यह कुटुंब प्रबोधन है।

पर्यावरण के लिए तो आंदोलन सहित बहुत सारी बातें चलती हैं। लेकिन अपने घर में पानी व्यर्थ जाता है, आदमी उसकी चिंता नहीं करता। पहले करो। पेड़ लगाओ, प्लास्टिक हटाओ, पानी बचाओ। यह करने से समझ विकसित होती है, तो वह सोचने लगता है।
ऐसे ही ‘स्व’ के आधार पर करो। अपने ‘स्व’ के आधार पर व्यवहार करना चाहिए। हमारा सबका जो राष्ट्रीय ‘स्व’ है, उसके आधार पर चलो। अपने घर के अंदर भाषा, भूषा, भोजन, भजन, भ्रमण यह अपना होना चाहिए। घर की चौखट के बाहर परिस्थिति के अनुसार करना पड़ता है। घर में तो हम हैं, वो रहेगा तो उसके कारण संस्कार भी बचेंगे। देश को स्व-निर्भर बनाना है तो अपने देश की वस्तुओं से काम चलाएं। इसकी आदत रखें। इसका अर्थ यह नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बंद करो। उसका एक संतुलन है, मेरा चल सकता है उसको चलाऊंगा। देश की आवश्यकता है, कोई जीवनावश्यक काम है और बाहर देश से लाना पड़ेगा तो लाओ, लेकिन अपनी शर्तों पर, किसी के दबाव में नहीं। यह सब बातें बनेंगी ‘स्व’ का आचरण।

कानून, संविधान, सामाजिक भद्रता का पालन। ये पांच बातें लेकर स्वयंसेवक उस पथ पर आगे बढ़ेंगे और शताब्दी वर्ष समाप्त होने के बाद इसको शाखाओं के द्वारा समाज में ले जाएंगे। यह आचरण बनेगा तो वातावरण बनेगा और वातावरण बनने से परिवर्तन आएगा। और बहुत सी बातें आगे की हैं, वो यहां से जाएंगी धीरे-धीरे शुरू होकर। ऐसा सोचा है। देखते हैं क्या होता है।

आने वाले 25 वर्ष के लिए क्या संकल्प है?
सम्पूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना और देश को परमवैभव संपन्न बनाना, उसके आगे एक अनकही बात है कि सम्पूर्ण विश्व को ऐसा बनाना है। डॉ. हेडगेवार के समय से ही यह दृष्टि है। उन्होंने 1920 में प्रस्ताव दिया था कि ‘भारत का सम्पूर्ण स्वातंत्र्य हमारा ध्येय है और स्वतन्त्र भारत दुनिया के देशों को पूंजीवाद के चंगुल से मुक्त करेगा’ ऐसा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कहना चाहिए ।

संघ के 100 वर्ष होना और देश की आजादी के 100 वर्ष 2047 में पूरे होंगे। भारत विश्व गुरु कैसे बनेगा! कुछ लोग तरह-तरह से भेद उत्पन्न करने का प्रयास करेंगे। इन सबको कैसे देखते हैं?
जो हमारी प्रक्रिया है, उसमें इन सब बातों की चिंता की गई है। आत्मविस्मृति, स्वार्थ और भेद इन तीन बातों से लड़ते-लड़ते हम बढ़ रहे हैं। आज समाज के विश्वासपात्र बने हैं। यही प्रक्रिया आगे चलेगी। अपनत्व के आधार पर समाज के सभी लोग एक मानसिकता में आ जाएंगे। एक और एक मिलकर दो होने के बजाय ग्यारह होगा। भारतवर्ष को संगठित और बल संपन्न बनाने का काम 2047 तक सर्वत्र व्याप्त हो जाएगा और चलते रहेगा। समरस, सामर्थ्य संपन्न भारत के विश्व जीवन में समृद्ध योगदान को देखकर सब लोग उसके उदाहरण का अनुकरण करने के लिए आगे बढ़ेंगे। 1992 में हमारे एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा था कि “इस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को देखकर दुनिया के अन्यान्य देशों के लोग उस देश का अपना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खड़ा करेंगे, जिससे पूरे विश्व के जीवन में परिवर्तन आएगा।” यह प्रक्रिया 2047 के बाद प्रारम्भ होगी और इसे पूरा होने में 100 वर्ष नहीं लगेंगे। अगले 20-30 वर्ष में यह पूरी हो जाएगी।

शताब्दी वर्ष में जो हिंदू- हितैषी वर्ग है, संघ का शुभचिंतक वर्ग है, इस राष्ट्र का हित चिंतक वर्ग है। उसके लिए आपका संदेश क्या होगा?
हिंदू समाज को अब जागृत होना ही पड़ेगा। अपने सारे भेद और स्वार्थ भूलकर हिंदुत्व के शाश्वत धर्म मूल्यों के आधार पर अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और आजीविका के जीवन को आकार देकर एक सामर्थ्य संपन्न, नीति संपन्न तथा सब प्रकार से वैभव संपन्न भारत खड़ा करना पड़ेगा; क्योंकि विश्व को नई राह की प्रतीक्षा है और उसको देना यह भारत का यानी हिंदू समाज का ईश्वर प्रदत्त कर्तव्य है। कृषि क्रांति हो गई, उद्योग क्रांति हो गई, विज्ञान और तकनीक की क्रांति हो गई, अब धर्म क्रांति की आवश्यकता है। मैं रिलीजन की बात नहीं कर रहा हूं। सत्य, शुचिता, करुणा व तपस के आधार पर मानव जीवन की पुनर्रचना हो, इसकी विश्व को आवश्यकता है और भारत उसका पथ प्रदर्शक हो, यह अपरिहार्य है। संघ कार्य के महत्व को हम समझें, ‘मैं और मेरा परिवार’ के दायरे से बाहर आकर और अपने जीवन को उदाहरण बनाकर सक्रिय होकर हम सबको साथ में आगे बढ़ना चाहिए, इसकी आवश्यकता है।

Topics: संघ का मूल विचारसंघहिंदुस्थान हिंदू राष्ट्रराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघहिंदू समाज को संगठित करनाश्रीगुरुजीदेश को परमवैभव संपन्न बनानाहिंदू समाजडॉ. हेडगेवारसंघ पर प्रतिबंधपाञ्चजन्य विशेषशताब्दी वर्षहिंदुओं का उत्पीड़नऑपरेशन सिंदूर
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

PM Narendra Modi Varanasi visit

‘ऑपरेशन सिंदूर हमारे संकल्प, हमारे साहस और बदलते भारत की तस्वीर है’, मन की बात में बोले PM मोदी

पीएम मोदी: ऑपरेशन सिंदूर की ताकत को जनांदोलन बनाकर हासिल होगा विकसित भारत का लक्ष्य

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजु से मुस्लिम बुद्धिजीवियों की भेंटवार्ता

वक्फ संशोधन : मुस्लिम समाज की तरक्की का रास्ता!

नक्‍सलियों के मारे जाने पर सीपीआईएम का दर्द हिंसा का राजनीतिक गठजोड़ बता रहा!

यात्रा में शामिल मातृशक्ति

सेना के सम्मान में, नारी शक्ति मैदान में

External affiares minister dr S Jaishankar to join oath taking ceremony of Donald Trump

ऑपरेशन सिंदूर को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयान पर अनावश्यक विवाद

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

यूनुस और शेख हसीना

शेख हसीना ने यूनुस के शासन को कहा आतंकियों का राज तो बीएनपी ने कहा “छात्र नेताओं को कैबिनेट से हटाया जाए”

Benefits of fennel water

क्या होता है अगर आप रोज सौंफ का पानी पीते हैं?

Acharya Premananda Ji Maharaj

आचार्य प्रेमानंद जी महाराज से जानिए भगवान को कैसे प्रसन्न करें?

India Exposes Pakistan

‘पाकिस्तान के आतंकी हमलों में 20,000 भारतीयों की हुई मौत’, UNSC में भारत ने गिनाए पड़ोसी के ‘पाप’

ghar wapsi

घर वापसी: सुंदरगढ़ में 14 आदिवासियों की घर वापसी, मिशनरियों के प्रलोभन से बने थे ईसाई

India has becomes fourth largest economy

जापान को पीछे छोड़ भारत बना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, 4.18 ट्रिलियन डॉलर का आकार

PM Narendra Modi Varanasi visit

‘ऑपरेशन सिंदूर हमारे संकल्प, हमारे साहस और बदलते भारत की तस्वीर है’, मन की बात में बोले PM मोदी

CM साय का आत्मनिर्भर बस्तर विजन, 75 लाख करोड़ की इकोनॉमी का लक्ष्य, बताया क्या है ‘3T मॉडल’

dr muhammad yunus

बांग्लादेश: मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में काउंसिल ने कहा-‘सुधार जरूरी!’, भड़काने वाले लोग विदेशी साजिशकर्ता

Defence deal among Israel And NIBE

रक्षा क्षेत्र में भारत की छलांग: NIB लिमिटेड को मिला इजरायल से ₹150 करोड़ का यूनिवर्सल रॉकेट लॉन्चर ऑर्डर

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies