सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें एक अजीबोगरीब याचिका को खारिज किया गया था। यह याचिका एक ऐसे हिन्दू पर्व को लेकर थी, जो पति-पत्नी के प्रेम का प्रतीक है। इस याचिका को नरेंद्र कुमार मल्होत्रा ने दायर किया था। उन्होंने पहले पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की थी और जब वहाँ से यह निरस्त हुई थी, तो उसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था।
उन्होनें याचिका दायर की थी कि हिंदुओं में मनाया जाने वाला करवाचौथ का व्रत केवल सुहागिन महिलाओं के लिए ही क्यों है? इसमें कहा गया कि करवाचौथ का व्रत विधवा, तलाकशुदा या लिव इन संबंधों वाली महिलाएं नहीं कर पाती हैं।
मल्होत्रा की यह याचिका जब खारिज हुई तो उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से याचिका वापस लेकर उच्च न्यायालय में जाने की दोबारा मंशा जाहिर की। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका की तुच्छ प्रकृति को देखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया और मामले को सीधे खारिज कर दिया।
क्या थी याचिका?
अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह याचिका थी किस विषय पर? पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के सम्मुख दायर की गई मूल याचिका में दरअसल केंद्र और हरियाणा सरकारों को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि कानून में संशोधन किया जाए और करवाचौथ की पूजा को सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य बनाया जाए। फिर उनका वैवाहिक स्तर कुछ भी हो।
फिर चाहे वे तलाकशुदा हों, विधवा हों या फिर लिव इन में रहने वाली हों। याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया था कि विधवाओं और अन्य गैर-पारंपरिक रिश्तों वाली महिलाओं को प्रचलित सामाजिक मानदंडों के कारण उत्सव में भाग लेने से वंचित किया जा रहा है और इस तरह की भागीदारी की अनुमति देने से इनकार करना अपराध माना जाना चाहिए। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर दिया था और अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे खारिज कर दिया है।
क्यों मनाया जाता है करवाचौथ?
अब यह प्रश्न भी उभरता है कि करवाचौथ क्यों मनाया जाता है? करवाचौथ भारत का ऐसा अनूठा और सुंदर पर्व है, जिसमें पति और पत्नी के प्रेम और समर्पण को व्यक्त किया जाता है। एक पत्नी अपने पति के स्वास्थ्य, कल्याण और लंबी आयु के लिए व्रत रखती है और चंद्र दर्शन कर व्रत पूर्ण करती है। इसे लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं। जो भी कथाएं हैं, उनमें यह भी कथा सम्मिलित है कि द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से पांडवों के संकटों के मिटने के लिए उपाय पूछा था। ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने उन्हें कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी को व्रत रखने की सलाह दी थी। और द्रौपदी ने यह व्रत रखा था और पांडवों को संकट से छुटकारा प्राप्त हुआ था।
कई कथाएं लोक में हैं जो इसका निर्माण उस व्रत के रूप में करती हैं, जो पति एवं पत्नी का ही व्रत है। पत्नी अपने पति के कल्याण और लंबी आयु के लिए इस व्रत को रखती है और पूजा भी पति के लिए करती हैं।
स्वाभाविक है कि यह व्रत तलाकशुदा, विधवा या अन्य महिलाएं नहीं कर पाएंगी। यह केवल करवाचौथ की बात नहीं है, बल्कि यह देखा गया है कि अन्य हिन्दू पर्वों के प्रति भी ऐसी तमाम याचिकाएं दायर की जाती रही हैं। जैसे कि होली और दीवाली पर भी। हिन्दू पर्वों के प्रति दुराग्रह तो ऐसी याचिकाओं में दिखता ही है, साथ ही यह भी देखा गया है कि कुछ लोग सस्ती लोकप्रियता के कारण भी ऐसा कदम उठाते हैं।
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