आपरेशन सिंदूर के शुरू होने के साथ ही दक्षिण एशिया के इस पाले में भूराजनीतिक समीकरणों में लगातार बदलाव देखने में आ रहा है। पाकिस्तान के साथ खड़े होने वाले तुर्किए और चीन की असली मंशा से पर्दा पहले ही उठ चुका है। संयुक्त राष्ट्र भी आतंकवाद के विरुद्ध भारत की जीरो टॉलरेस नीति के पक्ष में आया है तो यूरोपीय देश और अमेरिका ने खुलकर भारत की आतंक विरोधी लड़ाई को वैचारिक संबल प्रदान किया है। इस सबमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल के विशेष कूटनीतिक और सामरिक प्रयास दुनिया ने देखे हैं और इसलिए विश्व के लगभग सभी सभ्य लोकतंत्र भारत के पक्ष में आ खड़े हुए हैं। लेकिन इस संबंध में गत दिनों का एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम मीडिया में उतनी प्रमुखता से नहीं आया जितनी से आना चाहिए था। यह घटनाक्रम था जयशंकर का तालिबान सरकार के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी को फोन लगाना और द्विपक्षीय महत्व के अनेक आयामों पर सकारात्मक बात करना।
जिन्ना के देश की ओर से पहलगाम जिहादी हमले और उसके बाद, आपरेशन सिंदूर को लेकर दुनिया भर में फैलाए जा रहे झूठ के दौरान भारत के विदेश मंत्री की अफगानी विदेश मंत्री से सीधी बात कई मायनों में अहम है। जयशंकर की इस फोन वार्ता ने एक बार फिर पुष्टि की है कि भारत और अफगानिस्तान अपने संबंधों को फिर से मजबूती देने के उद्देश्य से बात कर रहे हैं। जयशंकर ने अफगानी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी से विशेष तौर पर पहलगाम हमले और इतर आपसी सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर विशद चर्चा की। खबर है कि भारत अफगानिस्तान में मानवीय सहायता में बढ़ोतरी कर रहा है। अफगानिस्तान की ओर से वीसा और कैदियों के विषय में भारत की मदद की मांग की गई है। इसके साथ ही, दोनों देश चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए काम करने को तैयार हैं।

भारतीय विदेश मंत्री ने अफगानी विदेश मंत्री से अपनी इस चर्चा की जो जानकारी एक्स पर साझा की है, उसमें है कि “पहलगाम आतंकवादी हमले की मुत्तकी ने जिस प्रकार निंदा की है उसकी दिल की गहराई से सराहना करता हूं। फर्जी और निराधार रिपोर्टों के माध्यम से भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने के पिछले दिनों चले प्रयासों को उनके दृढ़ता से अस्वीकार करने का स्वागत किया। अफगानिस्तान के लोगों के साथ हमारी पारंपरिक मित्रता और उनकी विकास आवश्यकताओं के लिए निरंतर समर्थन को रेखांकित किया। सहयोग को आगे बढ़ाने के तरीकों और साधनों पर चर्चा की।”
यहां यह भी ध्यान रहे कि पहलगाम जिहादी हमले के कुछ दिनों बाद ही भारत के विदेश मंत्रालय का एक प्रतिनिधिमंडल मुत्तकी और वहां के अन्य वरिष्ठ मंत्रियों से मिलने काबुल गया था। वहां उसने अफगानिस्तान में भारतीय विकास सहायता और निवेश के अवसरों पर विस्तार से बात की थी। भारत ने अफगानिस्तान के लिए अपनी मानवीय सहायता भी बढ़ाई है, इसमें उन अफगानियों के लिए विशेष सहायता भी शामिल है जिन्हें कुछ माह पूर्व जिन्ना के देश ने ‘घुसपैठिए’ कहकर निकाल दिया था। कारण यह कि पहचान और सीमाई मुद्दों को लेकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच फिलहाल छत्तीस का आंकड़ा है।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल से चर्चा करते हुए मुत्तकी ने भारत को एक प्रमुख क्षेत्रीय देश बताया था और अफगानिस्तान-भारत संबंधों की ऐतिहासिकता का उल्लेख करते हुए संबंधों के और मजबूत होने की उम्मीद जताई थी। बातचीत के क्रम में, अफगानी विदेश मंत्री ने अफगानी कारोबारियों और मरीजों के लिए वीसा सुविधा की अपील की थी। उन्होंने वर्तमान में भारत में कैद अफगान कैदियों की रिहाई और वापसी की बात भी उठाई थी।
भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने भी फोन पर हुई चर्चा में दोहराया कि भारत—अफगानिस्तान संबंध ऐतिहासिक आयाम लिए हुए हैं। जयशंकर ने कहा कि भारत अफगानिस्तान को अपना सहयोग देना जारी रखेगा। उन्होंने राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। जयशंकर ने आश्वासन दिया कि अफगान कैदियों का मुद्दा भी जल्दी ही देखा जाएगा।
इस चर्चा के बाद उसका असर भी दिखा। भारत ने पाकिस्तान के साथ लगती अटारी सीमा से सूखे मेवे आदि ले जाने वाले 160 अफगान ट्रकों के प्रवेश करने की मंजूरी देकर विशेष संकेत दिया है। ध्यान रहे भारत ने तालिबान सरकार को अभी औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन तब भी तालिबान के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर तेजी से काम हो रहा है। भारत ने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद 23 अप्रैल को अटारी-वाघा सीमा को बंद करने का फैसला किया था। जैसा पहले बताया, व्यापार संबंधों का विस्तार उन मुद्दों में से एक था जिस पर भारतीय विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री के साथ 15 मई को पहली राजनीतिक बातचीत की थी।
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