बलूचिस्तान उबल रहा है। आजादी की उम्मीद में हर वह कदम उठा रहा है जो उसे आतताई इस्लामाबादी राज से मुक्ति दिलाए। पिछले लंबे समय से पाकिस्तान की सत्ता के विरुद्ध जनाक्रोश उबाल पर है। सशस्त्र बलूच विद्रोही गुटों ने पाकिस्तान सेना को निशाने पर लिया हुआ है। इलाके में विरोध स्वरूप भयंकर हिंसा और आगजनी से पाकिस्तानी फौज घबराई हुई है और नेता कुछ बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। पिछले दिनों बीएलए गुट ने एक ट्रेन ही अगवा कर ली थी जिसमें पाकिस्तानी सैनिक सफर कर रहे थे। इस कार्रवाई में अनेक सैनिकों को हलाक कर दिया गया था। बलूचिस्तान के सियासी नेता भी पाकिस्तान को उसकी मर्यादाएं याद दिलाते रहते हैं। ताजा बयान बलूच नेशनल पार्टी के नेता अख्तर मेंगल का है। उन्होंने पाकिस्तान को 1971 के युद्ध में उसकी बुरी तरह हुई हार की याद दिलाई। उस युद्ध में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था। मेंगल ने उस दिन की याद दिलाते हुए कहा कि पाकिस्तान की सेना होश में आए क्योंकि बलोच अवाम इस सेना के जुल्मों कभी नहीं भूल सकती।

अख्तर मेंगल ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को परोक्ष रूप से सुनाते हुए कहा कि ‘बंगालियों ने जो आपके साथ किया, उसे आपकी आने वाली कितनी ही नस्लें याद रखेंगी।’ मेंगल ने कटाक्ष भरे लहजे में कहा कि पाकिस्तानी सेना की पैंटें और हथियार आज भी टंगे हुए हैं। जैसा पहले बताया, बलूचिस्तान में असंतोष बढ़ रहा है। वहां पाकिस्तानी सेना को विलेन मानते हुए उसके विरुद्ध विद्रोह भड़का हुआ है। बलूच अलगाववादी गुटों ने पाकिस्तानी सेना पर कई हमले किए हैं, जिससे सेना को अपने ही देश में संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।

अख्तर मेंगल ने साफ कहा कि 1971 युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) की हार पाकिस्तान के इतिहास का एक काला अध्याय है। बलूच नेता ने इस हार की याद दिलाकर पाकिस्तानी सेना के चाल—चलन को चुनौती दी है। पाकिस्तान की सेना बलूचिस्तान में जो क्रूरता कर रही है उससे भड़के अलगाववादी आंदोलन ने एक बार फिर से नई अंगड़ाई ली है और इस बार इसे आर पार की लड़ाई कहा है। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या पाकिस्तान एक और बंटवारे की ओर बढ़ रहा है?
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