हमारी सनातन हिन्दू संस्कृति में चार धाम यात्रा की सर्वाधिक महत्ता है। मान्यता है कि चार धाम यात्रा करने वाला व्यक्ति जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। शिव महापुराण में कहा गया है कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का पूजन कर जल ग्रहण करने वाले व्यक्ति को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। जो व्यक्ति अपने जीवन में एक बार भी बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुनः माँ के उदर में नहीं आना पड़ता। ज्ञात हो कि हिंदू धर्म में दो प्रकार की चार धाम यात्रा प्रचलित है। पहली जगदगुरु आचार्य शंकर प्रणीत देश को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोने के लिए देश के चारो कोनों में स्थापित बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम और द्वारका धाम की यात्रा और दूसरी बसंत और ग्रीष्म के संधिकाल में से शुरू होने वाली देवभूमि उत्तराखण्ड की यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ की छोटी चारधाम यात्रा। सनातन धर्मावलम्बियों की प्रगाढ़ आस्था है कि हर हिन्दू को अपने जीवनकाल में कम से कम एक चार धाम की यात्रा जरूर करनी चाहिए क्योंकि इस यात्रा के दौरान होने वाली विलक्षण अनुभूतियाँ तीर्थयात्री के मन बुद्धि व आचार विचार को गहराई से परिवर्तित कर सहज मानव जीवन के मूल लक्ष्य ‘’मोक्ष’’ का द्वार खोल देती हैं। आइए जानते हैं स्वयंसिद्ध ईश्वरीय तिथि ‘’अक्षय तृतीया’’ से शुरू होने वाली देवभूमि की छोटी चार धाम यात्रा से जुड़ी विभिन्न रोचक जानकारियां-
यमुनोत्री धाम
देवभूमि की इस चारधाम यात्रा का प्रवेश द्वार है- यमुनोत्री धाम। समुद्र तल से 3164 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह यमुनोत्री धाम पवित्र यमुना नदी का मूल स्रोत है। इस पवित्र धाम से जुड़े पौराणिक कथानक के अनुसार मृत्यु के देवता यमराज ने भाई दूज के पर्व पर अपनी बहन यमुना को वचन दिया था कि जो कोई भी ‘’अक्षय तृतीया’’ के पावन पर्व पर सच्ची श्रद्धा से यमुनोत्री धाम में डुबकी लगाएगा उसे कभी यमलोक नहीं जाना होगा।
गंगोत्री धाम
इस यात्रा का अगला गंतव्य है गंगोत्री धाम। 3200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस गंगोत्री धाम का प्रमुख आकर्षण है पतितपावनी माँ गंगा का उद्गम स्थल गोमुख है। पौराणिक मान्यता है कि माँ गंगा को धरती पर लाने के लिए इसी गंगोत्री धाम में प्रभु श्री राम के पूर्वज राजा भागीरथ ने कठोर तपस्या की थी, वह भागीरथ शिला आज भी गंगोत्री में गंगा मंदिर के पास स्थित है। यहां, गंगा नदी की विशेष ‘पूजा’ का आयोजन मंदिर के भीतर और नदी के किनारे दोनों जगहों पर किया जाता है। देवी गंगा को समर्पित एक सुंदर मंदिर इस पवित्र क्षेत्र में स्थित है। तीर्थयात्री इस देवनदी में डुबकी लगाकर यात्रा के अगले पड़ाव श्री केदारनाथ धाम की ओर आगे बढ़ते हैं।
केदारनाथ धाम
चारधाम यात्रा का तीसरा पड़ाव श्री केदारनाथ धाम हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। 3,584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस दिव्य तीर्थ की गर्णना देवाधिदेव शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में होती है। केदारनाथ, कल्पेश्वर, तुंगनाथ, मदमहेश्वर और रुद्रनाथ तीर्थों को मिलाकर पंच केदार के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित भगवान शिव से जुड़े इन पवित्र स्थलों की उत्पत्ति का रोचक कथानक ‘’महाभारत’’ में विस्तार से वर्णित है। इस कथानक के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद महादेव के आराधना के लिए जब जब पांडवों ने इस देवभूमि की यात्रा की तो भगवान शिव उनसे छिपने के लिए गुप्तकाशी में एक बैल के रूप में छिप गये किन्तु पांडवों ने भगवान शिव को बैल के रूप में पहचान लिया। भीम ने बैल को पकड़ने की कोशिश की लेकिन वह जमीन में धंस गया। पांडवों से छिपने के क्रम में भगवान शिव गढ़वाल के विभिन्न हिस्सों में भागों में फिर से प्रकट हुए। वे केदारनाथ में कूबड़, मध्य-महेश्वर में नाभि, रुद्रनाथ में चेहरा, तुंगनाथ में भुजाएं और कल्पेश्वर में बाल के रूप में प्रकट हुए। पांडवों ने उन पांच स्थानों में से प्रत्येक पर मंदिरों का निर्माण किया जहां भगवान इस तरह प्रकट हुए थे। इन पांच स्थानों को पंच केदार के नाम से जाना जाता है। केदारनाथ धाम का एक अन्य प्रमुख आकर्षण भगवान विष्णु के 24 अवतारों में गिने जाने वाले नर और नारायण पर्वत हैं। माना यह भी जाता है कि इन पर्वतों की यात्रा कर केदारनाथ धाम के दर्शन के बाद ही बद्रीनाथ धाम के दर्शन किए जाते हैं। ऐसा करने से ही पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
बद्रीनाथ धाम
चार धाम यात्रा के अंतिम पड़ाव श्री बद्रीनाथ धाम के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि इसे चारों धामों में सबसे पवित्र माना जाता है। समुद्र तल से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित धाम अलकनंदा नदी के बाएं किनारे पर है। यह धाम भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवान विष्णु के इन पवित्र मंदिरों को विशाल बद्री के नाम से भी जाना जाता है। जिस तरह पंच केदार केदारनाथ यात्रा को पूर्ण बनाते हैं, वैसे ही पंच प्रयाग श्री बद्रीनाथ धाम की यात्रा के प्रमुख पड़ाव माने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, जब गंगा पृथ्वी पर अवतरित हो रही थी, तो भगवान शिव ने इसे विभिन्न धाराओं में विभाजित करके इसकी विशाल शक्ति को समाहित कर लिया। पांच प्रमुख संगमों से गुजरने के बाद, गंगा नदी फिर से पूर्ण हो जाती है और मानवता को शुद्ध करने के लिए नीचे आती है। बद्रीनाथ के रास्ते में, देवप्रयाग पहला संगम है जिसके बाद रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग आते हैं। ये पांच नदियाँ भागीरथी, मंदाकिनी, पिंडर, नंदाकिनी, धौलीगंगा अलग-अलग स्थानों पर अलकनंदा में गिरती हैं।
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