इन दिनों झारखंड में ऐसी आहट सुनाई दे रही है जो आने वाले समय में ईसाई मिशनरियों की कमर तोड़ने वाली सिद्ध हो सकती है। इस समय झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में जनजातीय समाज द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें ईसाई मिशनरियों और बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति आक्रोश दिखाई दे रहा है। इन कार्यक्रमों का सबसे सकारात्मक परिणाम यह है कि छल-कपट से ईसाई बने लोग अब अपनी मूल संस्कृति की ओर लौट रहे हैं।
इसी क्रम में, 11 अप्रैल को पश्चिमी सिंहभूम के जगन्नाथपुर अनुमंडल के बड़ापासेया गाँव में ईसाई बने छह परिवारों के 29 लोग अपनी मूल संस्कृति में लौट आए। इन ग्रामीणों को छह वर्ष पहले मिशनरी संस्थाओं ने बहला-फुसलाकर ईसाई बनाया था। इनकी घरवापसी में ‘आदिवासी हो समाज युवा महासभा’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही। संगठन के नोवामुंडी प्रखंड अध्यक्ष माटा बोबोंगा ने बताया कि उन्हें मिशनरी संस्थाओं की सच्चाई समझाई गई और समझा-बुझाकर उनकी घरवापसी कराई गई।
‘हो समाज युवा महासभा’ के राष्ट्रीय महासचिव गब्बर सिंह हेंब्रम का कहना है, ” ईसाई मिशनरियां पहले सेवा और शिक्षा के नाम पर सुदूर जनजातीय क्षेत्रों में पहुँचती हैं। फिर वहाँ चर्च की स्थापना करती हैं और गाँव में गरीब, कर्ज में डूबे लोगों को चिह्नित करती हैं। इसके बाद वे इन लोगों को अपनी समस्याओं से छुटकारा दिलाने का लालच देकर अपने जाल में फंसाती हैं। पिछले 15 वर्षों से हमारा संगठन जनजागरण में जुटा है। इसका परिणाम यह है कि अब हमें कई अन्य संगठनों और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन का भी समर्थन मिल रहा है। लोग जागरूक हो रहे हैं और हमारा समाज, जो अपनी परंपराओं को छोड़ चुका था, अब वापस अपनी मूल परंपराओं की ओर लौट रहा है।”
इस मामले पर पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन कहते हैं, “जनजाति समाज में घर वापसी कर रहे इस परिवार का स्वागत है। यह देख कर खुशी हो रही है कि लोग धर्मांतरण का सच जान कर, वापस लौट रहे हैं। हजारों साल पुरानी हमारी रूढ़िवादी व्यवस्था तथा जनजाति भाषाओं, कला-संस्कृति एवं परंपराओं को संरक्षित करना आवश्यक है। अगर हम ऐसा नहीं कर पाए तो आने वाले समय में हमारे सरना स्थलों, देशाउली एवं जाहेर स्थान में पूजा करने वाला कोई नहीं बचेगा।”
इसी तरह, 31 मार्च को जगन्नाथपुर के नोवामुंडी प्रखंड में एक वर्ष पहले ईसाई बनी 40 वर्षीया तिली कुई अपने सात बच्चों के साथ अपने मूल धर्म में लौट आईं। उनकी घरवापसी में हो समाज युवा महासभा के जगन्नाथपुर अनुमंडल अध्यक्ष दियुरी बलराम लागुरी और सहायक दियुरी बुधराम अंगरिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही। तिली ने बताया कि उनके पति स्वर्गीय सोनू हेंब्रम लंबे समय तक बीमार रहे और इलाज के अभाव में उनकी मृत्यु हो गई। ग्रामीणों के अनुसार, वे टीबी से पीड़ित थे। इसके बाद मिशनरी लोगों ने तिली को यह कहकर भ्रमित किया कि चर्च में प्रार्थना से सब ठीक हो जाएगा। इस तरह उन्हें ईसाई बनाया गया। तिली हर रविवार मालुका के संत पॉल स्कूल स्थित चर्च में प्रार्थना के लिए जाती थीं। अब अपने मूल धर्म में लौटने के बाद उन्होंने यीशु-मसीह की तस्वीरें और चर्च की सभी सामग्री धर्म-प्रचारकों को लौटा दी।
सबसे सकारात्मक बात यह है कि इस आंदोलन को मजबूती देने में पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन पूर्ण रूप से समर्पित हैं। ये वही चंपई हैं, जिन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा में लंबा समय बिताया और हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बने। संभवतः उस दौरान उन्होंने कुछ ऐसी वास्तविकताएं देखीं, जो जनजातीय समाज के हितैषियों को भी समझनी चाहिए। यह सुखद है कि इस कार्य में उन्हें जनजातीय समाज के उन प्रमुख लोगों का समर्थन मिल रहा है, जिन्हें समाज अपने ‘पुरोहित’ के रूप में देखता है।
11 अप्रैल को स्वतंत्रता सेनानी सिदो-कान्हू की जयंती पर सरायकेला-खरसावां के राजनगर में आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा द्वारा एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें हजारों की संख्या में जनजातीय लोग शामिल हुए। मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा नेता चंपई सोरेन उपस्थित थे। जनजातीय समाज के ग्राम प्रधानों, धर्मगुरुओं और आम लोगों ने उनका खुलकर समर्थन किया। अपने संबोधन में चंपई ने कहा कि जब हमारे पूर्वजों ने अपने अस्तित्व की लड़ाई में कभी समझौता नहीं किया, तो हम कैसे हार मान सकते हैं। उन्होंने बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों और कन्वर्जन के खिलाफ अपने आंदोलन का उल्लेख करते हुए बताया कि बोकारो, हजारीबाग, चाकुलिया और ओडिशा में भी उनके कार्यक्रम होने वाले हैं। कुछ महीनों बाद वे संथाल परगना से इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाएँगे, जिसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई देगी।
धन्यवाद राजनगर !
इस स्नेह, सहयोग एवं समर्थन के लिए…अभी तो यह सिर्फ शुरुआत है। शीघ्र ही धर्मांतरण एवं बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ आदिवासी समाज के लाखों लोग सड़कों पर होंगे, जिसकी गूँज पूरे देश में सुनाई देगी।
बहुत ही स्पष्ट शब्दों में बताना चाहेंगे कि जिस किसी भी व्यक्ति… pic.twitter.com/QGQNTnHoN9
— Champai Soren (@ChampaiSoren) April 11, 2025
यदि यह अभियान इसी तरह चलता रहा, तो आने वाला समय न केवल झारखंड के जनजातीय समाज, बल्कि अन्य समुदायों के लिए भी सुखदायी होगा। आज झारखंड में जो समस्याएं हैं, उनके पीछे अक्सर मिशनरी तत्वों का हाथ होता है। यदि जनजातीय समाज स्वयं इनके खिलाफ जागरूक हो रहा है, तो यह एक सकारात्मक संकेत है। निश्चित रूप से, झारखंड के सनातनियों के लिए भविष्य उज्जवल होगा।
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