वक्फ संशोधन अधिनियम बनने के बाद से ही कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी नेता व संगठन देश के मुसलमानों को भड़काने, बरगलाने व हिंसा के लिए उकसाने में सतत् रूप से सक्रिय हैं। झूठ फैलाकर दुष्प्रचार करने वाले इस गिरोह में अब कुछ कथित मुस्लिम बुद्धिजीवी भी कूद पड़े हैं जिन्होंने हाल ही में देश के मुस्लिम सांसदों को एक पत्र लिखा है।
यह पत्र मिथ्या प्रचार कर मुस्लिम समाज को हिंसा व देश विरोध के लिए प्रेरित करने के साथ संसदीय व्यवस्था तथा संविधान का सीधा-सीधा उल्लंघन है। इस पत्र के माध्यम से उनके ‘मुस्लिम इंडिया’ बनाने के मंसूबों की भी कलई खुल गई है, यह सपना कभी कट्टरपंथी नेता सैयद शहाबुद्दीन ने भी देखा था।
पत्र में अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा की तो बात की गई है किंतु उसमें नाम सिर्फ मुसलमानों का लिया गया है। इसमें ‘मुस्लिम समाज का गला घोटने’ और ‘मुसलमानों के गरिमापूर्ण अस्तित्व के लिए संघर्ष’ करने के लिए उकसाने की बात है। पत्र में ‘मुसलमानों की सामूहिक आवाज को बुलंद’ कर संसद के अंदर व बाहर प्रदर्शन व संसद के बहिष्कार की अपील भी है जिससे ‘देश-विदेश के मीडिया का रणनीतिक रूप से ध्यान आकृष्ट किया जा सके।’ कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ता सिर्फ कट्टरपंथी मुस्लिम नेता या जिहादी संगठन नहीं, अपितु उनके साथ भारत के संविधान में पंथनिरपेक्षता की शपथ लेकर विधायक, सांसद, आईएएस, आईपीएस, सैन्य अधिकारी आदि भी शामिल हैं।
इन सब के लिए देश से बड़ा मजहब है, जिसके लिए ये लोग किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। इन्हें पता है कि जब मुस्लिम कट्टरपंथी सड़कों पर उतरते हैं तो हिंसा उपद्रव व आगजनी के अलावा कुछ नहीं करते, फिर भी ये उन्हें इसके लिए उकसा रहे हैं।
ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि मजहबी आधार पर भारत के एक और विभाजन व ‘मुस्लिम इंडिया’ बनाने का इनका दिवास्वप्न तो कभी पूरा नहीं होगा, किंतु हां, इनके इस भड़कावे के परिणामस्वरूप देश भर में यदि कुछ उपद्रव हुआ तो उसकी जिम्मेदारी इन सभी हस्ताक्षरकर्ताओं को लेनी होगी और संपूर्ण देश के समक्ष ये अपराधी के रूप में खड़े होंगे।
यह स्मरण रखना चाहिए कि इन कथित मुसलमानों के अलावा देश के सभी अल्पसंख्यक इस नए कानून से प्रसन्न हैं, क्योंकि अधिकांश लोग वक्फ बोर्ड व उसके अवैध कब्जाधारियों के आतंक से त्रस्त हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि हम केंद्र सरकार और न्यायपालिका से अपेक्षा करते हैं कि इस पत्र प्रकरण को गंभीरता से लिया जाए, क्योंकि इसी मानसिकता ने पहले ही भारत का विभाजन कराया था। संविधान से ऊपर मजहब को रखने वाली सोच देश की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक समरसता के लिए भी घातक हो सकती है।
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