यूके में नर्सरी के बच्चे को “ट्रांसोफोबिक” बताकर स्कूल से निकाला
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यूके में नर्सरी के बच्चे को “ट्रांसोफोबिक” बताकर स्कूल से निकाला! विशेषज्ञों ने कहा “हद्द है!”

ब्रिटेन में ट्रांसफोबिया के आरोप में 5 वर्षीय नर्सरी छात्र के निष्कासन से उठा विवाद, जे के रोलिंग और शिक्षा विशेषज्ञों ने जताई चिंता। जानिए क्यों उठ रहे हैं छोटे बच्चों पर थोपे जा रहे लैंगिक एजेंडे पर सवाल।

by सोनाली मिश्रा
Apr 5, 2025, 11:26 pm IST
in विश्व
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यूके से एक बार फिर से चौंकाने वाली घटना सामने आ रही है। यूके में शिक्षा विभाग से “यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान के विरुद्ध दुर्व्यवहार” को लेकर एक नर्सरी के बच्चे को स्कूल से निकाल दिया गया है। यह आँकड़े वर्ष 2022-23 के हैं। बच्चे को वर्ष 2022-23 के शैक्षणिक सत्र में बाहर निकाल गया था।

हालांकि मीडिया में इस मामले की और डिटेल्स नहीं आई हैं। फिर भी यह बहुत ही भयावह तस्वीर है कि एक ऐसा बच्चा जिसे शायद खुद के विषय में भी कुछ न पता हो उसे ट्रांसोफोबिक होने के कारण स्कूल से निकाल दिया जाए। ट्रांसोफोबिक का अर्थ हुआ, लिंग बदलकर रहने वालों के प्रति घृणा का भाव। और नर्सरी में बच्चा मात्र 3-5 वर्ष तक का ही होता है, तो क्या एक इतनी कम आयु का बच्चा इस प्रकार की कोई भी हरकत कर सकता है? यह बहुत ही विचारणीय प्रश्न है।

इसे लेकर प्रश्न तो उठेंगे ही। भारत में भी ट्रांस पहचान को खारिज करने वालों पर इसी फोबिया के आरोप लगाए जाते हैं। मगर यह भी बात सच है कि इस पर भी प्रश्न है कि क्या ऐसा कोई शब्द होता है या नहीं? या फिर इस्लामोफोबिया की तरह यह भी अपने अपराधों को छिपाने का ही एक कृत्य है।

मगर ऐसा नहीं है कि केवल एक ही बच्चे को निष्कासित किया गया हो। उसी अकादमिक वर्ष में यूके में प्राइमरी स्कूल के 94 विद्यार्थियों को ट्रांसफोबिया और होमोफोबिया के कारण निलंबित या स्थायी रूप से बहिष्कृत कर दिया गया था।

जिनमें से दस प्रथम वर्ष के और तीन द्वितीय वर्ष के थे, जहाँ अधिकतम आयु सात वर्ष है। इन घटनाओं को लेकर वहाँ के शिक्षा जगत में हलचल मची हुई है और लोग आलोचना कर रहे हैं कि आखिर इस प्रकार के वयस्क कंटेन्ट को बच्चों को क्यों दिखाया जा रहा है?

सेक्स मैटर्स में एडवोकेसी की निदेशक हेलेन जॉयस ने एलबीसी से बात करते हुए कहा: “कभी-कभी, लिंग संबंधी विचारधारा के चरमपंथी लोग ऐसी कहानियां सामने लाते हैं, जिन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है, और तथाकथित ‘ट्रांसफोबिया’ या होमोफोबिया के कारण नर्सरी से एक बच्चे को निलंबित कर दिया जाना इसका एक उदाहरण है।

उन्होनें यह भी कहा कि ये सब अकेले मामले नहीं हैं। उन्होनें यह भी कहा कि “इस पागलपन में शामिल शिक्षकों और स्कूल नेताओं को खुद पर शर्म आनी चाहिए कि वे ऐसे छोटे बच्चों पर वयस्क अवधारणाओं और विश्वासों को थोप रहे हैं।“

जहां वर्ष 2021-22 में सभी राज्य प्राइमरी स्कूल के 164 विद्यार्थी ट्रांसोफोबिक या होमोफोबिक होने के कारण स्कूल्स से निकाले गए थे। तो वहीं 2022-23 में यह संख्या 178 रही।

वहीं फ्री स्पीच यूनियन के निदेशक लॉर्ड यंग ने कहा कि यह बहुत ही डरावनी बात है कि छोटे बच्चों को भी कथित ट्रांसोफोबिया नीति का उल्लंघन करने के लिए निष्कासित किया जा रहा है और वह भी पाँच साल तक के बच्चों को। उन्होनें आगे कहा कि “मैं सोचता हूं कि यदि आपकी विचारधारा इतनी कठोर है कि वह इसका पालन न करने पर छोटे बच्चों को दंडित करने को उचित ठहराती है, तो अब समय है कि आप इसे लचीला करें।“

इस खबर के सामने आने पर तमाम लोगों के बीच बहस के स्वर तेज हो गए हैं कि आखिर छोटे बच्चों के प्रति उनके द्वारा इस सीमा तक असहिष्णुता क्यों है, जो खुद को पीड़ित और सबसे ज्यादा सहिष्णु बताते हैं।

इस विचार का विरोध कर रही हैरी पॉटर की लेखिका जे के रोलिंग ने एक्स पर लिखा कि यह बहुत बड़ी बेवकूफी है। उन्होनें कहा कि यदि आप यह सोचते हैं कि छोटे बच्चों को लिंग निर्धारण करने में सक्षम होने के लिए दंडित किया जाना चाहिए, तो आप एक खतरनाक व्यक्ति हैं जिसे बच्चों के आसपास नहीं होना चाहिए या फिर उन पर किसी भी प्रकार से अधिकार की स्थिति में नहीं होना चाहिए।

जे के रोलिंग को उनकी इस स्पष्टता के लिए पसंद नहीं किया जाता है और रह-रह कर उनके खिलाफ अभियान चलाए जाते हैं।

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