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वनवासी आभूषण और गहने संस्कृति, परंपरा की अनमोल धरोहर

वनवासी आभूषण भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं, जो प्राकृतिक सामग्रियों से बने अद्वितीय डिजाइनों के साथ परंपरा और इतिहास को दर्शाते हैं। जानें इनके सांस्कृतिक महत्व और संरक्षण की आवश्यकता को।

by निलेश कटारा
Mar 28, 2025, 10:13 am IST
in धर्म-संस्कृति, मध्य प्रदेश
Vanvasi Abhushan

वनवाशी आभूषण

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वनवासी आभूषण भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा हैं, जो न केवल उनकी सुंदरता और कलात्मकता को दर्शाते हैं, बल्कि उनके इतिहास, परंपराओं और जीवनशैली का गहरा प्रतीक भी हैं। ये गहने हर वनवासी समुदाय की विशिष्ट पहचान और सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखते हैं। वनवासी आभूषण मुख्य रूप से प्राकृतिक सामग्रियों से बनाए जाते हैं, जैसे- चांदी, तांबा, कांच, लकड़ी, बीज, शंख, कौड़ी, हड्डी, पत्थर, बांस आदि।

हर समुदाय के आभूषणों में अद्वितीय डिजाइन होते हैं, जो उनके रीति-रिवाजों और विश्वासों को दर्शाते हैं। ज्यामितीय आकार, प्राकृतिक दृश्य (पत्तियां, फूल) और पौराणिक कथाओं से प्रेरित डिजाइन प्रमुख होते हैं। वनवासी गहनों में विविधता होती है। प्रमुख गहनों में शामिल हैं:- माथे का टीका: जिसे ‘सिरबंध’ या ‘खापा’ भी कहते हैं। – गले के हार: हसली, मोहाना माला, या सीप और कौड़ी से बने हार।

– कानों के झुमके: कर्णफूल, बाली, या लंबी झुमकियां।
– हाथ के गहने: कड़ा, चूड़ियां और बाजूबंद।
– कमर और पैरों के गहने: कमरबंद, पायल और बिछुए।
– गोंड और भील जनजाति: चांदी के भारी हार, बड़ी नथ और चूड़ियां।
– संथाल जनजाति: कौड़ी और शंख से बने गहने।
– नगालैंड के आदिवासी: पत्थरों और हड्डियों से बने हार।
– ओडिशा के सौर जनजाति: धातु से बने बड़े झुमके और हाथ के कड़े।

संस्कृति और परंपरा का प्रतीक

वनवासी गहने केवल सौंदर्य बढ़ाने के लिए नहीं होते, बल्कि वे समाज के विभिन्न पहलुओं को भी दर्शाते हैं आध्यात्मिक महत्व गहनों को शुभता और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में पहना जाता है। सामाजिक स्थिति गहनों की मात्रा और प्रकार से किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और आर्थिक समृद्धि का पता चलता है। त्यौहार और अनुष्ठान वनवासी गहनों का प्रमुख उपयोग विवाह, त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों में होता है।

वर्तमान समय में वनवासी गहनों का महत्व

आधुनिक फैशन और शहरीकरण के बावजूद, वनदिवासी आभूषणों की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। अब ये गहने न केवल पारंपरिक परिधानों के साथ, बल्कि पश्चिमी पोशाकों के साथ भी पहने जाते हैं। फैशन डिजाइनर और हस्तशिल्प बाजार अब इन गहनों को नई पहचान देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बना रहे हैं।

संरक्षण की आवश्यकता

आज शहरीकरण और मशीन-निर्मित गहनों के कारण पारंपरिक आदिवासी आभूषणों पर खतरा मंडरा रहा है। इन गहनों और उन्हें बनाने वाले कारीगरों को संरक्षित करने के लिए हस्तशिल्प मेलों का आयोजन किया जाना चाहिए। वनवासी कला को प्रोत्साहन और पहचान दी जानी चाहिए। सरकार और संगठनों को इनके प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास करने चाहिए। वनवासी आभूषण केवल सजावट के साधन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जीवंत धरोहर हैं। उनकी विविधता, कलात्मकता और सांस्कृतिक महत्व हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इन्हें संरक्षित करना न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि अपने इतिहास और परंपराओं को जीवित रखने का एक तरीका भी है।

झाबुआ अलीराजपुर के वनवासी इस समय पहनते है पारंपरिक गहने जो इस प्रकार हैं- गहने पारंपरिक त्योहारों, हाट, शादियों, बाबा गल, भगोरिया, राखी, दुल्हन जब मायके जाती है तो वह पहनती हैं। ऐसे अनेक बार पहनते हैं। महिलाओ के गले में ये गहने पहनती हैं- टागली, हाकली, चेन, गलहन, मंगलसूत्र, टोरणइयू आदि।

महिलाएं हाथ में पहनती हैं- बाहटिया, हटका, हतेलू, विटियो (अगुटिया), करमदियो, चूड़ियों, कंगन आदि। कमर में कांदोरा, छला, आंकड़ा पहनते हैं। पैरों में कड़ला, तोड़ा, विसुड़ियो और झांझरिया पहनती है। सिर में बोर और कानों में लोलिया, वेडला, पहनते है। नाक मे नतडी और वाली, काटो पहनते है इसमें काटा सोने का भी पहनते है। पुरुष हाथ में भोरिया पहनते हैं कड़ा भी पहनते हैं और गले में चेन पहनते हैं कानों में मोरखी और सीने में कंदोरा भी पहनते हैं।

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