नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज इन दिनों काफी प्रशंसा बटोर रही है। भारत में भी इस सीरीज के प्रशंसक बहुत हैं। यह सीरीज एक किशोर बच्चे को दिखाती है, जिसने अपनी ही क्लास की एक बच्ची की हत्या कर दी है। कहा जा रहा है कि यह कई घटनाओं पर आधारित है। Adolescence नाम की यह सीरीज पूरी दुनिया में तारीफ़ें बटोर रही है।
मगर अब इस सीरीज को लेकर कुछ बातें सामने आ रही हैं। कहा जा रहा है कि यह सीरीज एक असली घटना पर आधारित है।
बताया जा रहा है कि पश्चिम में जिस प्रकार से किशोरियों पर किशोरों द्वारा हमले किये जा रहे हैं, यह फिल्म उस पर है। सोशल मीडिया पर कुछ लोग यह दावा कर रहे हैं कि यह फिल्म एक ऐसी घटना पर बनी है जिसमें एलेने एंडम नामक किशोरी की हत्या एक टेडी बियर पर कर दी थी।
यह हत्या एक अश्वेत किशोर ने की थी। उसका नाम Hassan Sentamu है और उसे अभी हाल ही में अर्थात 13 मार्च को ही 23 वर्षों की सजा सुनाई गई है। सुनवाई के दौरान यह भी पाया गया कि हसन सेंतमु पहले भी लड़कियों पर हमला कर चुका था और वह चाकू भी साथ लेकर आता था। उसने स्कूल की सबसे लोकप्रिय लड़की को दूसरे बच्चों, दुकानदारों और आने जाने वाले लोगों के सामने ही मार डाला था।
इस घटना में अश्वेत दोषी पाया गया है, जबकि नेटफ्लिक्स पर जो सीरीज एडोलसेंस आ रही है, उसमें हत्यारे को एक श्वेत लड़का दिखाया गया है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों किया जा रहा है? एवेलीन नामक यूजर ने लिखा कि
एलिएन एंडम की हत्या से प्रेरित नई नेटफ्लिक्स सीरीज़ “एडोलसेंस” में एक श्वेत किशोर को हत्यारा दिखाया गया है। हालाँकि, असली हत्यारा हसन सेंटामू था।
इस तरह से वे हमें यह विश्वास दिलाते हैं कि समस्या श्वेत पुरुष हैं, जबकि वास्तव में समस्या अप्रवासी हैं।“
The new Netflix series ”Adolescence”, inspired by the murder of Elianne Andam, depicts a white teenager as the killer. However, the real murderer was Hassan Sentamu.
This is how they brainwash us into believing white men are the problem, when in fact, it’s immigrants. pic.twitter.com/1Sco5wymNa
— Evelina Hahne (@EvelinaHahne) March 20, 2025
इसी छल को एक नहीं कई लोगों ने उठाया। लोगों ने प्रश्न किया कि आखिर अपराधी की पहचान के साथ हेराफेरी क्यों की गई? एक यूजर ने लिखा कि नेटफ्लिक्स पर एडोलेसेंस नामक शो आ रहा है और वह एक ऐसे ब्रिटिश चाकूबाज पर है, जिसने एक बस में एक लड़की की चाकू मारकर हत्या कर दी थी।
इस पोस्ट में आगे लिखा है कि अनुमान लगाइए कि उन्होनें एक असली अश्वेत/अप्रवासी हत्यारे को एक श्वेत लड़के से बदल दिया। उन्होनें इसे श्वेत-विरोधी प्रोपोगैंडा बताया।
वहीं इस शो को बनाने वालों का कहना है कि उन्होनें कई घटनाओं के आधार पर इस सीरीज को बनाया है, कोई एक घटना इसका आधार नहीं है। दो घटनाओं की बात लोग कर रहे हैं। एक घटना में तो 13 मार्च को हसन को सजा सुनाई है। हसन एक अश्वेत है और वहीं दूसरी एक घटना 23 जनवरी 2025 को सामने आई थी जब पिछले वर्ष जुलाई में बच्चों की हत्या के आरोप में एक किशोर को दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई। इस किशोर ने तीन लड़कियों की हत्या कर दी थी और दस और बच्चों की हत्या का प्रयास किया था। साउथपोर्ट डांस क्लास में बच्चों पर हमला करने वाले को जेल हुई है और उसे कम से कम 52 साल तक की सजा हो सकती है।
इस हमलावर का नाम था Axel Rudakubana और वह भी अश्वेत था।
हालांकि यूके की सरकार ने इस फिल्म की सराहना की है और कहा है कि इस सीरीज को संसद में दिखाया जाना चाहिए। वहीं लोग इस बात का लगातार विरोध कर रहे हैं कि आखिर कैसे एक लिबरल एजेंडे के अंतर्गत युवा श्वेत लड़कों को स्त्री विरोधी, ऑनलाइन शिकारियों के रूप में दिखाया जा सकता है या ऐसा दिखाया जा सकता है कि जिसे सुधारने की सरकार को जरूरत हो। लोग कह रहे हैं कि सच्चाई एकदम अलग है। श्वेत लड़के महिलाओं के प्रति विनम्र होते हैं और उनकी रक्षा करने वाले होते हैं। यौन हिंसा उनकी ओर से नहीं की जा रही है बल्कि जो तीसरी दुनिया से शरणार्थी आ रहे हैं, यह हिंसा वे कर रहे हैं।
कथित लिबरल गैंग की कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हमेशा ही विरोधाभास पर चलती हैं। जहां यूके में अभी श्वेत-विरोधी एजेंडा कला के रूप में आ रहा है, तो भारत में भी सत्य घटनाओं के आधार पर बनने वाली फिल्मों और सीरीज में खलनायकों के नाम बदल दिए जाते हैं, नायकों के नाम बदल दिए जाते हैं। बदायूं बलात्कार कांड पर बनी फिल्म आर्टिकल 15 में हत्यारों की जाति को बदल दिया गया था और अपराध करने वाले ब्राह्मण दिखा दिए गए थे। और इस पर विवाद भी हुआ था।
चक दे इंडिया को कौन भूल सकता है? फिल्म में मीर रंजन नेगी को कबीर खान के रूप में दिखाकर पूरा का पूरा एजेंडा ही बदल दिया था। ऐसा नहीं है कि लोग जाति या धर्म या रंग के आधार पर अच्छे या बुरे होते हैं, परंतु जब यह कहा जाता है कि या दावा किया जाता है कि आप सत्य घटनाओं के आधार पर फिल्में बना रहे हैं, तो फिर तथ्यों को एजेंडे या कल्पना में न लपेटकर तथ्यों को ही जनता के सामने रखना चाहिए।
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