गत दिनों नई दिल्ली में ‘स्वदेशी ज्ञान परंपरा और धारणक्षम विकास’ विषय पर दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित हुआ। इसमें 27 राज्यों से 711 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसका उद्घाटन केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किया। भारत की बौद्धिक विरासत के महत्व पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हर भाषा एक राष्ट्रीय भाषा है और प्रत्येक भाषा भारतीय ज्ञान प्रणाली को देशभर में प्रभावी ढंग से लागू करने का माध्यम है।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. नारायण लाल गुप्ता ने अध्यक्षीय भाषण देते हुए परंपरागत ज्ञान प्रणालियों को शिक्षा प्रणाली में शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया। सम्मेलन के समापन सत्र में केंद्रीय पर्यावरण, जल और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि यदि हम प्रकृति की रक्षा करेंगे, तो प्रकृति हमारी रक्षा करेगी। इस अवसर पर विभिन्न शिक्षाविदों और विशेषज्ञों ने धारणक्षम विकास में स्वदेशी ज्ञान की भूमिका पर विचार-विमर्श किया।
सम्मेलन में विभिन्न शैक्षिक सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं ने भाग लिया। प्रमुख वक्ताओं में दिल्ली स्किल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. अशोक के. नागावत और बाबासाहब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलपति प्रो. आर.के. मित्तल शामिल थे।
सम्मेलन में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने देशभर के शोधार्थियों द्वारा प्रस्तुत शोध पत्रों का संकलन जारी किया। यह दस्तावेज स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों और धारणक्षम विकास पर किए गए शोधों का विस्तृत संकलन है, जो इस क्षेत्र में हो रहे नवाचारों और अध्ययन को दर्शाता है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने राष्ट्रीय सिंधी भाषा संवर्धन परिषद और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान द्वारा कक्षा 1 से 12 तक की सिंधी भाषा की पाठ्यपुस्तकों का लोकार्पण भी किया। सम्मेलन का आयोजन शैक्षिक फाउंडेशन द्वारा शिवाजी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय सिंधी भाषा संवर्धन परिषद के सहयोग से हुआ था।
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