भारत की राष्ट्रीयता के संबंध में कई विचार आए। क्या जो टूट गया वही भारत है? क्या भारत एक जमीन का टुकड़ा है? या संविधान से चलने वाला केवल एक भारत है? ऐसा नहीं है। भारत एक जीवन दर्शन है। विश्व को संदेश देने वाला विश्वगुरु है। महाकुंभ विमर्श ने एक महासमर खोल दिया है।

सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
महाकुंभ से निकले ऐसे कई विमर्श अलग-अलग दिशा में लोगों का मार्गदर्शन करेंगे। अब इंडिया नहीं, भारत कहना है। भारत के संबंध में बहुत भ्रामक बातें फैलाई गई। कहा गया कि भारत केवल एक कृषि प्रधान देश है, यहां किसी भी प्रकार का उद्योग नहीं है, जबकि यह सत्य नहीं है। 1,600 ईस्वी में भारत की विश्व व्यापार में लगभग 23 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी। प्रश्न उठता है कि यह हिस्सेदारी केवल कृषि की थी, ऐसा नहीं है। अगर हम वैश्विक दृष्टि से देखें तो प्राचीन समय से ही हम किसी भी क्षेत्र में कम नहीं थे। हमने अपने स्वाभिमान को खोया। हमारी शिक्षा पद्धति नष्ट हुई। जो बाहरी आक्रांता आए, उन्होंने हमारे देश का दमन किया।
आज भारत स्वतंत्र है, उसका मस्तिष्क स्वतंत्र है। पहले के दशकों में पढ़ाया जाता था कि भारत का गणित और विज्ञान के क्षेत्र में कोई योगदान नहीं है। भारत के इतिहास को तोड़ा और मरोड़ा गया है, जबकि भारत का इतिहास समृद्धि से भरा पड़ा है। आज यह महत्वपूर्ण है कि विश्व के बहुत से लोग भारत के बारे में एक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। The India, They Saw नामक पुस्तक के चार खंडों में विस्तार से इसका उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक में भारत को लेकर विश्व के लोगों ने क्या कहा है, उसे विस्तार से जानने, समझने और पढ़ने का अवसर मिलता है।
भारत का मूल परिचय संस्कृति है। आचरण के महान आदर्श हैं। व्यक्ति की दिशा ठीक होनी चाहिए। दिशा ठीक होने से लक्ष्य आसान हो जाता है। दिशा ठीक नहीं होने से व्यक्ति भ्रमित होता है वह जीवन में अपना लक्ष्य भी निश्चित नहीं कर पाता।
हमारे पूर्वजों ने यह निश्चय कर लिया था कि किसी भी स्थिति में अपनी संस्कृति की रक्षा करनी है और अपने विचार को बचा कर रखना है। यही कारण है कि काल के प्रवाह में भी इस देश की संस्कृति कभी नष्ट नहीं हुई। हमारे देश के मनीषियों ने इसे अलग-अलग रूप में प्रस्तुत किया है।
भारत को दुनिया में कौन-सी भूमिका निभानी चाहिए? इस पर हमारे ऋषियों ने कहा है-‘आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च’ यानी स्वयं के मोक्ष और जगत के हित के लिए जीना चाहिए, कार्य करना चाहिए। भारत का लक्ष्य ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया’ का है। हमारे देश के लोगों का भाव ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ का है। भारत पूरी मानवता के बारे में विचार करता है। गुरु रामदास जी बचपन में भी पूरे विश्व के बारे में चिंता करते थे। भारत उठेगा, विश्व का दीप स्तंभ बनने के लिए, भारत को अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा और मजबूत होना पड़ेगा। हमारा दायित्व बनता है कि हम पूरे भारत में शांति स्थापित करें। पूरी दुनिया में विमर्श की लड़ाई है। भारत में भी तरह-तरह के विमर्श चलाए जाते हैं। हमें सत्य लिखना है, सत्य बोलना है और सत्य ही दिखाना है। यह बौद्धिक संघर्ष की बात है। जब बौद्धिक संघर्ष की बात आती है तो हमारा ध्येय सत्य की स्थापना, खोज और जीना होना चाहिए।
‘विमर्श भारत का’ पुस्तक का विमोचन
गत 10 मार्च को नोएडा में सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘विमर्श भारत का’ का विमोचन हुआ। इसकी अध्यक्षता करते हुए न्यूज 24 की मुख्य संपादक अनुराधा प्रसाद ने कहा कि युवा पीढ़ी हमारे देश को आगे लेकर जाएगी। उसे समाज के साथ सरोकार रखना पड़ेगा। मंच पर प्रेरणा शोध संस्थान न्यास की अध्यक्ष प्रीति दादू, प्रेरणा विमर्श के अध्यक्ष अनिल त्यागी और सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली और राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सह क्षेत्र संघचालक प्रो. नरेंद्र तनेजा उपस्थित रहे। समारोह में इंडिया टीवी की वरिष्ठ पत्रकार मीनाक्षी जोशी को प्रेरणा सम्मान-2024 प्रदान किया गया। यह पुस्तक प्रेरणा संस्थान द्वारा पिछले चार वर्ष में आयोजित किए गए कार्यक्रमों के नवनीत का संकलन है।
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