प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फरवरी को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में वैश्विक निवेशक सम्मेलन (ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट) का उद्धाटन किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि ‘बीस साल पहले निवेशक मध्य प्रदेश आने से हिचकिचाते थे और आज यह प्रदेश निवेश के लिए उनकी पसंदीदा जगह बन गया है।’ यह सच है। इस सम्मेलन के समापन के बाद 30.77 लाख करोड़ के निवेश प्रस्तावों का आंकड़ा सामने आया। अनुमान है कि इससे 21 लाख रोजगार उत्पन्न होंगे। यह ऐतिहासिक सम्मेलन था। 2007 में शुरू होने के बाद यह आठवां सम्मेलन था और इसमें अब तक की अधिकतम राशि के निवेश प्रस्ताव आए।

वरिष्ठ पत्रकार
बीस साल पहले तो मध्य प्रदेश अन्य हिंदी राज्यों की तरह ही बुनियादी ढांचे के गंभीर संकट से गुजर रहा था। 2003 की स्थितियों से तुलना करें तो मध्य प्रदेश में सड़क, बिजली और पानी का अभूतपूर्व संकट था। यहां कोई विनिर्माण में निवेश करेगा, यह सोचना भी सपने की तरह लगता था। ज्यादातर लघु व मध्यम इकाइयां (एमएसएमई) जनरेटर से चला करती थीं। इसलिए आज जब केवल नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में ही 8.94 लाख करोड़ रु. के प्रस्ताव आ गए तो यह मानना पड़ेगा कि मध्य प्रदेश के बारे में निवेशकों की राय 360 डिग्री बदल चुकी है। हालांकि विपक्ष यह आरोप लगाता है कि सरकार ने अब तक जो निवेशक सम्मेलन किए हैं, वे धरातल पर नहीं उतरे और मात्र कागजी आंकड़े हैं, तो उसकी आलोचना को भी जनता ऐसे देखती है कि प्रयास तो किए जा रहे हैं, काफी कुछ बदल भी रहा है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव की मेहनत
- एक साल में 7 रीजनल समिट। उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा, सागर, नर्मदापुरम, शहडोल में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव।
- राष्ट्रीय स्तर पर मुंबई, बेंगलुरु, कोयंबतूर, पुणे और कोलकाता में इंटरएक्टिव सेशंस।
- यूके, जर्मनी और जापान में निवेशकों के साथ इंटरएक्टिव सेशंस।
- नई उद्योग नीति में कई रियायतें नई लॉजिस्टिक्स एंड वेयरहाउसिंग नीति।
वास्तव में ‘हिंदी पट्टी’ का पिछड़ापन आजादी के बाद से ही चली आ रही गलत आर्थिक नीतियों का परिणाम था। आर्थिक सुधार के कदम केवल तब उठाए गए जब कोई गंभीर संकट सिर पर आया। अब यह पहली बार हो रहा है कि बिना किसी बड़े संकट के आर्थिक उदारवाद की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। राजनीतिक दल आर्थिक सुधारों से बचते रहते हैं। हर कोई जानता है कि 1990 में देश के सामने बड़ा आर्थिक संकट आ गया था। अगर वह नहीं आया होता तो एक गैर राजनीतिक वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के प्रयासों से नेहरूवादी महालनोबिस मॉडल (अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए बनाई गई एक आर्थिक योजना) से छुटकारा नहीं मिला होता। नेहरूवादी मिश्रित अर्थव्यवस्था का वह मॉडल धीमी विकास दर के लिए जिम्मेदार था। डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी ही पार्टी की पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा बांधी गई बेड़ियां तब खोलना शुरू कर दीं, जब भारत असाधारण भुगतान संकट में फंस गया और पेट्रोलियम पदार्थ खरीदने के लिए उसके पास विदेशी मुद्रा नहीं बची। परिणामस्वरूप भारत को सोना गिरवी रखना पड़ा, जो हाल ही में नरेंद्र मोदी सरकार इंग्लैंड से वापस लेकर आई है।

पर्यटन में हुए करार
- ग्वालियर किले के उपयोग का करार।
मेक माई ट्रिप के साथ ओरछा में पिंक टायलेट का करार।
इंडिया हाइक्स और मध्य प्रदेश पर्यटन का करार। - मध्य प्रदेश पर्यटन और यूएन वूमन में समझौता।
- नॉलेज मैरीन करेगी नर्मदा क्रूज लाइन स्थापना में मदद।
- अलकेमी क्रूज लाइन करेगी कुक्षी में क्रूज संचालन।
- खजुराहो, ओरछा, मांडू, चंदेरी, गांधीसागर, उज्जैन, चित्रकूट मैहर, ग्वालियर, अमरकंटक पर ध्यान।
- नेशनल पार्क और बफर एरिया में ईको टूरिज्म।
- पीडब्ल्यूडी और जल संसाधन के गेस्ट हाउस का पीपीपी मॉडल पर विकास व उपयोग।
इस अवसर पर यह याद करना भी प्रासंगिक है कि संप्रग-2 में वही डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, लेकिन उनकी सरकार नीतिगत पंगुता का शिकार हो गई थी। आर्थिक सुधार ठप पड़ गए थे। उनकी सरकार ने अपने अंतिम दो वर्ष में विकास दर को 4 फीसदी तक पहुंचा दिया था। कारण वही था कि बैंकों ने जो कर्ज बांटे थे, वे किताबों में तो दिखते थे, लेकिन लौटकर नहीं आ रहे थे। सरकार के पास खपत और मांग बढ़ाने का कोई उपाय नहीं था। भारत इतनी बड़ी जनसंख्या का देश होने के बावजूद एक उपभोक्ता बाजार बनकर रह गया था। चीन बहुत ही सस्ते निर्यात के जरिए हमारे विनिर्माण क्षेत्र में जो भी कारखाने मौजूद थे, उन्हें निगल रहा था।
हम खिलौने, फर्नीचर और दीवाली का सामान तक चीन से आयात कर रहे थे। हमारे कारीगर बेरोजगार हो रहे थे, क्योंकि उदारीकरण के इन वर्षों में हमने सबसे ज्यादा ध्यान सेवा क्षेत्र पर दिया था। उसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय अर्थव्यवस्था में जो मध्य वर्ग उभरा वह सेवा क्षेत्र में चला गया। अर्थव्यवस्था की निर्भरता सेवा पर बढ़ती गई। कृषि और सेवा क्षेत्र ही अर्थव्यवस्था के आधार बन गए थे। मान लिया गया था कि उत्पादन के मामले में भारत चीन का मुकाबला नहीं कर सकता। यही कारण था कि डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कुछ वर्ष ऊंची प्रगति दर तो दिखाई देती रही, लेकिन रोजगार पैदा नहीं हुए। इसे ‘जॉबलेस ग्रोथ’ कहा गया।
यह अच्छा रहा कि नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद इन संकटों को तेजी से समझा और नीतिगत कदम उठाने शुरू किए। वास्तव में 2012 में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री के संभावित चेहरे के तौर पर सामने आने के बाद से ही नरेंद्र मोदी का पूरा अभियान इस आर्थिक संकट के इर्द-गिर्द था। वह समझ चुके थे कि बैंक एनपीए में फंस चुके हैं और विनिर्माण क्षेत्र काम नहीं कर रहा है, जबकि रोजगार पैदा करने के लिए जरूरी था कि श्रम प्रधान विनिर्माण को विभिन्न इलाकों की ताकत और संसाधनों के अनुसार आगे बढ़ाया जाए। इसके लिए एक समग्र नीति की आवश्यकता थी। यहां से नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे विचारों को आंदोलन के रूप में लोगों तक पहुंचाना शुरू किया।
रक्षा क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की बात करना, गंगा को हिमालय पर चढ़ाने जैसा था। अंतत: भारत ने दस साल में काफी कुछ कर दिखाया, भले ही वह विनिर्माण में अब भी उतना सफल नहीं हुआ है, जितनी उम्मीद की जा रही थी, लेकिन आज भारत हथियारों का निर्माण न केवल अपने लिए कर रहा है, बल्कि निर्यात भी कर रहा है। खिलौनों का निर्यात तेजी से बढ़ा। फार्मास्युटिकल्स निर्यात में भी भारत की प्रगति अच्छी रही। एपल का भारत आना भी एक ऐसी ही घटना है। जब विश्वस्तरीय कंपनियां अपने उत्पाद भारत में बनाएंगी तो ‘स्किल्ड मैनपावर’ तैयार होगा।
भोपाल सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने पूरी ताकत से कहा कि इतिहास में पहली बार दुनिया भारत के बारे में इतना सकारात्मक सोच रही है, इतनी ज्यादा उम्मीद कर रही है और भारत एक ‘सप्लाई चेन हब’ बन रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में सबसे बड़ी बात जो रेखांकित हुई, जिसे मध्य प्रदेश के संदर्भ में भी अहम समझा जाना चाहिए। वह 3-टी थी, यानी टेक्सटाइल, टूरिज्म और टेक्नोलाजी। मोदी-1 और मोदी-2 के दौरान जो नीतिगत निर्णय किए गए, उनसे जो निष्कर्ष और अनुभव सामने आए, उसका एक प्रतिबिंब हमें इस रणनीति में दिखाई देता है। ‘एक जिला, एक उत्पाद’ और उत्पादन से जुड़ी ‘इंसेंटिव’ नीतियों के परिणामस्वरूप सरकार को अपेक्षाकृत अच्छे नतीजे मिले हैं। लेकिन 3-टी का अर्थ है कि अब ग्लोबल और लोकल के साथ-साथ तीनों सेक्टर (प्राइमरी, सेकंडरी और टर्शरी) यानी कृषि व पशुपालन, सेवा और विनिर्माण के बीच एक संतुलन की ओर बढ़ रहे हैं, जो भविष्य में रोजगार की संख्या बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकता है।
निवेशक सम्मेलन में यह भी महसूस किया गया कि भारत के इस असाधारण आर्थिक संभावनाओं के अनुष्ठान में दुनिया की बदलती भू सामरिक और भू आर्थिक स्थितियों का भी बड़ा योगदान है। कोविड के बाद पूरी दुनिया ने, खासकर पश्चिमी देशों ने महसूस किया कि विनिर्मित वस्तुओं की आपूर्ति के लिए चीन पर निर्भरता एक बहुत बड़ा जोखिम है। इसलिए भारत और अन्य वैकल्पिक विनिर्माण स्थलों और मार्गों की तलाश की जानी चाहिए। वहीं रूस और यूक्रेन युद्ध ने एक बार गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत कीं। यूरोप को गैस की आपूर्ति बंद होने से अन्य वैकल्पिक सप्लाई चेन मार्गों के निर्माण में भारत प्रमुखता से उभर रहा है। चीन से निकलने वाली कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत का रुख किया है।
परंतु इन परिस्थितियों का लाभ भारत तभी उठा सकता था, जब माल परिवहन, संग्रहण और सप्लाई चेन को जोड़ने के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाए। मोदी-1 से ही बुनियादी ढांचे पर काम शुरू कर दिया गया था। इसमें पोर्ट, एयरपोर्ट, फ्रेट कॉरिडोर, एक्सप्रेस वे आदि के निर्माण किए जाने लगे थे। उसके परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं। मध्य प्रदेश में इन एक्सप्रेस वे और रेल कॉरिडोर के गुजरने का सबसे ज्यादा फायदा मिला। यह बात प्रधानमंत्री ने भी रेखांकित की है।
सम्मेलन में निवेश के जो सबसे बड़े क्षेत्र उभरकर आए, वे नवीकरणीय ऊर्जा, ढांचागत सुविधाएं, खनन और सुरक्षा ही थे। निवेशकों ने शहरी विकास को भी मध्य प्रदेश में बड़ी संभावना माना है। लेकिन प्रधानमंत्री ने जिन 3-टी का जिक्र किया है, उनमें अभी अंक भले ही ज्यादा दिखाई नहीं दे रहे हों, लेकिन असाधारण संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
आज मध्य प्रदेश के पास 31 गीगावाट बिजली है। इसमें से 30 प्रतिशत स्वच्छ ऊर्जा है। दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा विकास का बड़ा इंजन बनकर उभरी है। स्वाभाविक है कि मध्य प्रदेश सौर ऊर्जा के मामले में काफी तेजी से उभरा है। वहीं दिल्ली-मुंबई का एक्सप्रेस वे मध्य प्रदेश को एक तरफ मुंबई के पोर्ट तक ले जाता है, वहीं दिल्ली जैसे बड़े उत्तर भारतीय बाजारों तक पहुंच आसान बनाता है। तेजी से नए हवाई अड्डों का विकास भी निवेश को बढ़ाने में काफी मदद करेगा।
अब बात 3-टी की। सबसे पहले टेक्सटाइल की बात करें। खासतौर से पश्चिमी मध्य प्रदेश कपास और टेक्सटाइल का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां बड़ी-बड़ी कॉटन मिलें हुआ करती थीं। इंदौर गारमेंट सेक्टर का बड़ा केंद्र रहा है। चंदेरी और महेश्वरी साड़ियां बाजार का प्रमुख आकर्षण है। रेशम के वस्त्रों के निर्माण में मध्य प्रदेश का योगदान रहा है। लेकिन अब इसे बड़े और आधुनिक औद्योगिक गतिविधि में बदलने के लिए टेक्सटाइल में हो रहे टेक्नोलाजी, डिजाइन व फैशन के प्रयोग लागू करने की जरूरत है।
जैसा प्रधानमंत्री ने इशारा भी किया कि एग्रो टेक्सटाइल, जियो टेक्सटाइल, मेडिकल टेक्सटाइल और टेक्निकल टेक्सटाइल के क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं विकसित हो रही हैं, इन्हें देखते हुए ही मध्य प्रदेश को एक टेक्सटाइल पार्क भी मिला है। अब सरकार को कपास उत्पादकों के बीच लाभकारी संतुलन कायम करना होगा, ताकि रोजगार हासिल करने का जो सरकार का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, वह पूरा किया जा सके। इसमें कोई संदेह नहीं है कि टेक्सटाइल सेक्टर मध्य प्रदेश की आर्थिक स्थिति में काफी योगदान कर सकता है और रोजगार की समस्या भी हल कर सकता है।
हालांकि टेक्सटाइल के अलावा एग्रो प्रोसेसिंग या फूड प्रोसेसिंग में भी मध्य प्रदेश में बहुत संभावनाएं हैं। मध्य प्रदेश में कई जिले मसालों के लिए विख्यात हैं। इन संभावनाओं को भी ग्लोबल समिट में कई वक्ताओं ने रखा कि धनिया, लाल मिर्च, जीरा, लहसुन जैसे कई मसाले मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर होते हैं। यह किसानों को सीधे लाभ पहुंचा सकते हैं।
अब दूसरे टी यानी टूरिज्म (पर्यटन) पर आते हैं। इस पर एक पूरा सत्र था। इसमें मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मध्य प्रदेश के हरे-भरे जंगलों, नदियों, तालाबों और वन्य प्राणियों की प्रचुरता का अपने रोचक अंदाज में प्रस्तुतीकरण किया, लेकिन केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की यह बात एकदम सही थी कि जिस तरह से अर्थव्यवस्था बढ़ रही है और लोगों के पास अतिरिक्त आय आएगी, तो वे पर्यटन की ओर जाएंगे। आर्थिक संभावनाओं का विश्लेषण करने वाले अधिकांश लोग और नीति निर्माता प्रशासकों को भी इसमें शामिल कर लें तो सभी मानते हैं कि पर्यटन सरकार के लिए सबसे कम ऊंचाई पर मिलने वाला फल है। यानी ज्यादा खर्च किए बिना, आप तत्काल पर्यटकों को मध्य प्रदेश में आमंत्रित कर सकते हैं। हालांकि इसके लिए अच्छे होटलों के निर्माण, बेहतर हवाई सुविधा, पर्यटकों की सुरक्षा (टूरिस्ट पुलिस) पर ध्यान देना होगा।
प्रमुख सचिव शिव शेखर शुक्ला का यह कहना ठीक था कि जब मध्य प्रदेश अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बन जाएगा, तो स्थानीय अर्थव्यवस्था को सीधा लाभ होगा। यह सही है कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटक यदि ज्यादा संख्या में भारत के ग्रामीण इलाकों और वन्य इलाकों की सैर करते हैं तो स्थानीय समुदायों के भोजन, परिधान, हस्तशिल्प निर्माताओं और लोक कलाकारों के लिए बड़े आर्थिक लाभ की संभावनाएं खुल जाएंगी। मध्य प्रदेश गोल्फ टूरिज्म, क्रूज टूरिज्म, हैरिटेज होटल्स और फिल्म प्रोडक्शन फैसिलिटी को भी संवर्धित करने पर जोर दे रहा है। अभिनेता पंकज त्रिपाठी मध्य प्रदेश पर्यटन के ब्रांड एम्बेसेडर बने हैं।
तीसरे ‘टी’ यानी टेक्नोलाजी की बात की जाए तो यह पूरे देश पर ही लागू होती है। मध्य प्रदेश में भी तकनीकी मानव संसाधन (टेक्निकल वर्क फोर्स) तैयार करने वाले राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थान हैं। जैसे ट्रिपल आई टी, आईआईटी, आईआईएम, मैनिट, जीएसआईटीएस, आईसर जैसे संस्थान हर साल बड़ी संख्या में तकनीकी युवा तैयार कर रहा हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में बड़ी कंपनियां नहीं होने के कारण नौजवानों को बाहर जाना पड़ता है। अब चूंकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और ड्रोन टेक्नोलॉजी का तेजी से विकास हो रहा है, तो मध्य प्रदेश में भी इन संभावनाओं पर काफी बात निवेशक सम्मेलन के दौरान की गई है। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में निवेश आने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि आवास और अन्य सुविधाओं की मांग बढ़ेगी और खपत में सुधार के कारण अन्य क्षेत्रों में रोजगार विकसित होंगे।
निवेशक सम्मेलन से क्या मिला
- 30.77 लाख करोड़ रु. के निवेश प्रस्ताव।
- 21 लाख रोजगार के सृजन होने का अनुमान।
- 6 लाख रोजगार उद्योग क्षेत्र में और 2.3 लाख शहरी विकास में।
- कुल निवेश का 8.94 लाख करोड़ रुपए यानी 36.47 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा में आया।
- ढांचागत विकास में 3.37 लाख करोड़ रु के निवेश प्रस्ताव।
- खनन क्षेत्र में अडाणी जैसे समूह 3.25 लाख करोड़ रु लगाएंगे।
- रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया में 3.1 लाख करोड़ रु आएंगे।
- भोपाल में जीसीसी, डाटा सेंटर और एनिमेशन ग्राफिक्स में 4600 करोड़ निवेश।
अहम सवाल यह है कि क्या मध्य प्रदेश सरकार इन अवसरों का लाभ लेने के लिए प्रशासनिक मशीनरी को तेजी से निर्णय लेने वाला और निवेशकों की समस्याएं सुलझाने वाला तंत्र बना पाएगी। मुख्य सचिव अनुराग जैन का यह कहना महत्वपूर्ण है कि पहले उद्योगपति अधिकारियों के पीछे भागते थे, अब अधिकारी उद्योगपतियों के पीछे भागेंगे। उनका कहना था कि सरकार ने उद्योग लगाने के लिए आवश्यक अनुमतियों की संख्या 38 से घटाकर 10 कर दी है।
मुख्यमंत्री भी निवेशकों को लेकर पूरे सम्मेलन में काफी तत्पर दिखाई दिए। तेजी से फैसले करने वाले और विकास व रोजगार को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाले मुख्यमंत्री के रूप में काम करना चाहते हैं। यह ठीक भी है क्योंकि मध्य प्रदेश ने भाजपा को जिस तरह से असाधारण जीत लोकसभा और विधानसभा चुनावों में दी है, यह मतदाता की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति मानकर चलना चाहिए। यह वर्ग भाजपा के पीछे जिस मजबूती से खड़ा है, वह उम्मीद करता है कि मध्य प्रदेश की पहचान गुजरात और महाराष्ट्र जैसे अग्रणी औद्योगिक राज्यों की तरह हो।
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