शरणार्थी संकट: यूरोप ने खुद ही खोद ली अपनी कब्र, जर्मनी की बदलती डेमोग्राफ्री
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शरणार्थी संकट: यूरोप ने खुद ही खोद ली अपनी कब्र, जर्मनी की बदलती डेमोग्राफ्री

यूरोप में शरणार्थी संकट ने जर्मनी सहित कई देशों को कट्टरपंथ और अपराध की आग में झोंक दिया है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली हो या हो स्वीडन जिसने भी इन शरणार्थियों को शरण दी आज वो जल रहा है।

by Kuldeep Singh
Feb 21, 2025, 07:03 am IST
in विश्व, विश्लेषण
Refugee crisis germany

बर्लिन मेट्रो से जर्मनी के लोगों को बाहर निकालते पुलिसकर्मी

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पश्चिमी देशों ने खुद को मसीहा बनाने के चक्कर में अपने लिए एक ऐसी कब्र तैयार कर ली है, जिससे बाहर आ पाना अब उनके लिए ही मुश्किल हो रहा है। वो कब्र हैं ‘शरणार्थी’। हर यूरोपीय देश शरणार्थियों के द्वारा इस्लाम के नाम पर फैलाई जा रही कट्टरता से जूझ रहा है। ये आपको अलग-अलग दिख सकता है, लेकिन इसकी असली तस्वीर बड़ी ही भयावह है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली हो या हो स्वीडन जिसने भी इन शरणार्थियों को शरण दी आज वो जल रहा है।

ऐसा ही हाल जर्मनी का है, जहां सीरिया में गृह युद्ध के समय वहां से भागे इन कट्टरपंथी मुस्लिमों को जर्मनी ने भी शरण दी थी। इसका खामियाजा उसे खुलेआम हत्या, आतंकवाद और देश के संसाधनों पर कब्जे के रूप में झेलना पड़ रहा है। खुद को सेक्युलर दिखाने के चक्कर में सबसे पहले जर्मनी ने ही सीरियाई शरणार्थियों के लिए देश की सीमाओं को खोला था। अब वही शरणार्थी कैंसर हो गए हैं।

रेडियो जेनोआ ने इसी तरह का एक वीडियो एक्स प्लेटफॉर्म पर शेयर किया। इसमें जर्मनी के एक मेट्रो सबवे का वीडियो दिखाया गया, जिसमें जर्मन पुलिस ट्रेन के अंदर से जर्मनी के मूल नागरिकों को बाहर निकाल रही है। जबकि, इस्लामिक कट्टरपंथी शान के साथ उसमें भरे हुए दिखते हैं। खास बात ये है कि ये कट्टरपंथी पुलिस और सरकार का मजाक भी उड़ाते हैं, लेकिन पुलिस चुपचाप खड़े होकर तमाशा देखने के शिवा कुछ नहीं कर पा रही है। वह कुछ कर पा रही है तो ट्रेन से जर्मन नागरिकों को बाहर निकाल रही है।

रेडियो जेनोआ कहता है कि जर्मन लोग बर्लिन मेट्रो का इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि इस पर उन्मादी इस्लामी भीड़ का कब्जा है। यूरोपीय लोगों को अब जाग जाना चाहिए।

https://Twitter.com/RadioGenoa/status/1892496870372475029

ये हाल जर्मनी की राजधानी बर्लिन का है। अगर राजधानी का ऐसा हाल है तो देश के बाकी हिस्से का क्या होगा, सोचकर भी डर लगता है। लगभग दस वर्ष पहले जर्मनी ने अपने दरवाजे सीरिया के उन नागरिकों के लिए खोल दिए थे जो बशर अल असद के शासन में तरह-तरह के अत्याचारों से परेशान थे। लोगों को अभी तक जर्मनी की तत्कालीन चांसलर एंजेला मार्कल की वे तस्वीरें याद हैं, जिनमें वह शरणार्थियों का स्वागत कर रही थीं। इन दस वर्षों में तस्वीर बदली है। जर्मनी में लोगों ने शरणार्थियों के उस व्यवहार को देखा, जो उनकी कल्पना से बाहर था। वहाँ पर अपराध बढ़े और ऐसे अपराध हुए, जिसकी उन्होंने शायद ही कल्पना की हो। ऐसे अनेक उदाहरण आए जब पूरा देश ही नृशंसता से हिल गया था। लड़कियों के साथ बलात्कार हुए, उनके साथ यौन हिंसा हुई और इसके साथ ही अन्य अपराधों की संख्या में भी वृद्धि हुई। उसके बाद जर्मनी में आवाज उठने लगीं कि इन्हें बाहर किया जाए।

पिछले साल दिसंबर 2024 की बात है, जब सीरिया में बशर अल असद की सरकार गिरने के बाद जर्मनी में 8 दिसंबर को कई शहरों में सीरियाई शरणार्थी शहर में बाहर निकलकर आए और उन्होंने जमकर जश्न मनाया। लेकिन, एक सवाल फिर उठ खड़ा हुआ कि अब ये यहां क्यों हैं, अगर असद सरकार गिर गई है तो अब इन शरणार्थियों को वापस चले जाना चाहिए।

बीबीसी के अनुसार 2021 और 2023 के बीच 143,000 सीरियाई लोगों को जर्मन नागरिकता प्राप्त हुई है, जो किसी भी और अन्य देश की तुलना में बहुत अधिक है, मगर अभी भी 7 लाख से अधिक सीरियाई नागरिक शरणार्थी हैं। ब्रिटेन में, जहां पर 30,000 के करीब सीरियाई शरणार्थी हैं, वहाँ से भी लोगों की यही मांग सामने आ रही है कि अब शरणार्थियों को वापस चले जाना चाहिए। शरण लेने के बाद जिस प्रकार से यूरोपीय देशों की डेमोग्राफी में बदलाव आया है, ये केवल उनके लिए नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए ‘वेक अप’ सिग्नल है कि अभी भी नहीं चेते तो फिर बहुत देर हो जाएगी।

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