पिछले साल 5 अगस्त को बांग्लादेश में शेख हसीना शासन के अपदस्थ होने के अप्रत्याशित परिणामों में से एक पाकिस्तान के साथ इसकी बढ़ती निकटता रही है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के तहत, भारत और बांग्लादेश ने बहुत करीबी और सौहार्दपूर्ण संबंध साझा किए, जिसने पाकिस्तान को लूप से बाहर रखा। हां, बांग्लादेश में पाकिस्तान समर्थित जमात ए इस्लामी की बड़ी उपस्थिति थी। पाकिस्तान की कुख्यात इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) भी बांग्लादेश में संपर्क थी। लेकिन उनमें से किसी को भी भारत के लिए कोई बड़ा खतरा पैदा करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली नहीं माना गया था। इसलिए, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ती सांठगांठ तेजी से उस स्तर पर पहुंच गई है, जिसके भारत के लिए गंभीर सुरक्षा निहितार्थ हैं।
पिछले 15 वर्षों में शेख हसीना के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान, भारत-बांग्लादेश संबंध फले-फूले, खासकर 2014 के बाद से जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में सत्ता संभाली। उनके और शेख हसीना के बीच बहुत अच्छा व्यक्तिगत संबंध था और बांग्लादेश ने अपनी विदेश नीति को भारत के राष्ट्रीय और वैश्विक हितों के अनुरूप बनाया। पीएम मोदी ने 2015 के बाद से अधिक आक्रामक ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ अपनाई और बांग्लादेश, भारत को दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी उपस्थति को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रमुख हिस्सेदार था। भारत और बांग्लादेश के संबंधों ने व्यापक व्यापार, बुनियादी ढांचे के विकास, संपर्क में संवृद्धि और पारस्परिक सुरक्षा हितों को गति देने का काम किया।
शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने उल्फा सहित विभिन्न आतंकवादी गुटों को बाहर निकालने के लिए गंभीर कदम उठाए , जिन्होंने समय के साथ बांग्लादेश में आधार और कैम्प बना लिए थे। इनमें से अधिकांश आतंकी संगठन असम, मणिपुर, नागालैंड और त्रिपुरा में अधिक सक्रिय थे। कुछ आतंकी संगठनों का छिटपुट प्रभाव भारत के शेष उत्तर पूर्व में भी था। पूर्वोत्तर में आतंकी संगठनों को चीन और आईएसआई से रिमोट से संचालित इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED), ड्रोन हथियार, गोला-बारूद की आपूर्ति और पैसों की फन्डिंग होती रही। चीन की छाया भारत के पूर्वोत्तर पर एक बार फिर मंडरा रही है और इस बात की संभावना अधिक है कि चीन भारत के खिलाफ रणनीतिक लाभ के लिए इस क्षेत्र को अस्थिर करना चाहेगा। भारत को बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा से लगे क्षेत्रों में गतिविधियों पर करीब से नजर रखनी पड़ सकती है, खासकर अगर आतंकी ठिकानों को यहाँ पर आश्रय दिया जाता है।
यह जानना दिलचस्प है कि बांग्लादेशियों को पाकिस्तानियों में नया दोस्त कैसे मिल गया? 1971 में अपनी स्वतंत्रता से पहले बांग्लादेश को पाकिस्तान के हाथों बड़े पैमाने पर नरसंहार का सामना करना पड़ा था। ऐसा माना जाता है कि पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के खिलाफ पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) द्वारा किए गए भीषण नरसंहार में 30 लाख से अधिक बांग्लादेशियों ने अपनी जान गंवाई थी। अभी भी बांग्लादेश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो नरसंहार को नहीं भूले हैं। लेकिन वर्तमान बांग्लादेश की आबादी का लगभग 55%, 1971 के भारत-पाक युद्ध जिसने बांग्लादेश को आजादी दी थी, के बाद पैदा हुआ है। इस प्रकार इस अपेक्षाकृत युवा आबादी का पाकिस्तानियों द्वारा किए गए नरसंहार और अत्याचारों के साथ बहुत भावनात्मक जुड़ाव नहीं है। पाकिस्तान ने चालाकी से बांग्लादेश में युवाओं को इस्लामी कट्टरपंथ की ओर बढ़ा दिया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में अधिकांश मुसलमान सुन्नी हैं और संभवतः इससे इन दोनों देशों के धार्मिक संबंधों में मदद मिली होगी।
पाकिस्तान के साथ बढ़ती नजदीकियों का पहली बार पता चला जब बांग्लादेश ने पिछले साल सितंबर/अक्टूबर में छोटे हथियारों, गोला-बारूद, तोपों के गोला-बारूद और कुछ जंगी सामग्री का ऑर्डर दिया। दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच व्यक्तिगत बातचीत में वृद्धि भी देखी गई है, ज्यादातर खाड़ी देशों के दौरे के दौरान। लेकिन इस साल जनवरी में बांग्लादेश सेना प्रमुख के बाद दूसरे रैंक के अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल एसएम कमर-उल-हसन ने रावलपिंडी का दौरा किया और दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को औपचारिक रूप देने के लिए पाकिस्तानी सेना के समकक्षों के साथ बातचीत शुरू की। इनमें हथियारों का व्यापार, संयुक्त सैन्य अभ्यास और संयुक्त प्रशिक्षण शामिल हैं। अब तक, भारत बड़ी संख्या में बांग्लादेश सैन्य कर्मियों को प्रशिक्षण देता रहा है। यह संभव है कि हमारी सैन्य रणनीति, गुप्त जानकारी और प्रशिक्षण पद्धति बांग्लादेश की सेना द्वारा पाकिस्तान के साथ साझा की जा सकती है।
एक अन्य संबंधित खबर बांग्लादेश द्वारा पाकिस्तान से जेएफ-17 थंडर फाइटर जेट हासिल करने की योजना है। जेएफ-17 को चीन और पाकिस्तान ने मिलकर विकसित किया है। बांग्लादेश अपने ‘फोर्सेज गोल 2030’ के हिस्से के रूप में बड़े पैमाने पर अपनी वायु सेना का विस्तार करने की योजना बना रहा है और इस प्रकार दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में बढ़ते चीनी प्रभाव को इस कदम से आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। चीन बांग्लादेश को ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ को अंजाम देने के एक और अवसर के रूप में देखेगा ताकि भारत को अधिक से अधिक तरफ से घेरा जा सके। बांग्लादेश को नौसेना और समुद्री बेड़े का विस्तार करने के लिए भी समर्थन मिलने की संभावना है, जो निकट पड़ोस में भारत की रणनीतिक हितों के लिए अच्छा नहीं है।
राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर भी पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच नज़दीकियाँ बढ़ी हैं। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस पहले ही अंतरराष्ट्रीय राजनयिक कार्यक्रमों में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से दो बार मिल चुके हैं। दोनों देशों के राजनयिकों ने अधिक बार दौरा किया है। एक साल से भी कम समय में दोनों देशों के बीच व्यापार में 25% से अधिक की वृद्धि हुई है। सांस्कृतिक आदान-प्रदान की अनुमति दी गई है और लोगों से लोगों को जोड़ने को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अब तक बांग्लादेश-भारत के लोगों के बीच आना जाना लगा रहता था, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ। बांग्लादेश में रहने वाले हिन्दू समाज को अनगिनत चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है। आने वाले समय में भारत को हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कूटनीतिक और सामरिक प्रयास करने पड़ सकते हैं।
हम बांग्लादेश में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के किसी भी संदर्भ को मिटाने की खबरें सुनते रहते हैं। बांग्लादेश के इस्लामी कट्टरपंथ और आतंकवाद का केंद्र बनने का खतरा है। इनका एकमात्र उद्देश्य भारत में विभाजनकारी विचार प्रक्रिया को बढ़ावा देना है, खासकर पश्चिम बंगाल और भारत के उत्तर पूर्व में। बांग्लादेश और चीन से भारत के ‘सिलीगुड़ी कॉरिडोर’ को खतरा भारत के लिए एक बड़ी सुरक्षा चिंता का विषय है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर भूमि का एक संकीर्ण खंड है, जो कई स्थानों पर केवल 20 किमी चौड़ा है। यह कॉरिडोर सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल के इस हिस्से को उत्तर पूर्व के सात राज्यों से जोड़ता है, इस प्रकार इसका विशाल रणनीतिक महत्व है। भारत रोहिंग्याओं की आमद के खतरे से भी जूझ रहा है और यह भी भारत के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है। असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अल्पसंख्यक आबादी में जनसांख्यिकीय बदलाव भी भारत के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।
ट्रंप 2.0 प्रशासन ने बांग्लादेश को वित्तीय सहायता रोकने का फैसला किया है, ऐसे में यूनुस प्रशासन के लिए आगे की राह आसान नहीं होगी। पाकिस्तान को अमेरिका में नई व्यवस्था से भी ज्यादा मदद नहीं मिलेगी। राष्ट्रपति ट्रम्प ने जॉर्ज सोरोस जैसे डीप स्टेट तत्वों पर भी ध्यान दिया है। भारत और अमेरिका के बीच और घनिष्ठ संबंध होने जा रहे हैं और पीएम मोदी 12-13 फरवरी तक अमेरिका का दौरा कर रहे हैं। मोदी राष्ट्रपति ट्रंप के निमंत्रण पर अमेरिका की यात्रा करने वाले पहले विश्व नेताओं में से एक हैं और वह भी इस साल 20 जनवरी को सत्ता संभालने के एक महीने से भी कम समय में। बांग्लादेश की ताज़ा स्थिति निश्चित रूप से उनकी चर्चा का विषय होगा।
भारत-बांग्लादेश संबंधों को शेख हसीना को भारत में दी गई शरण की कसौटी से गुजरना होगा। यह शरण भले ही अस्थायी रूप से दिया गया हो लेकिन बांग्लादेश उनके परावर्तन की मांग करता रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के एक विश्वसनीय दोस्त को शरण देने का सही और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया होगा। भारत को बांग्लादेश और पाकिस्तान की सांठगांठ के साथ आने के गंभीर निहितार्थों का एहसास करने की क्षमता है। बांग्लादेश में अभी भी एक बड़ी आबादी है, जो चाहेंगे कि उनके देश का भारत के साथ दोस्ताना बना रहे। हमारे ऐतिहासिक संबंध आपस में इतने जटिल रूप से जुड़े हुए हैं कि दोनों देशों को अपने शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए एक-दूसरे की जरूरत है। अब तक, भारत ने बांग्लादेश में नए शासन के साथ संबंधों के पुनर्निर्माण के लिए अत्यधिक संयम बरता है और शालीनता से काम लिया है। यह याद रहे की भारत के पास अपने दीर्घकालिक हितों से समझौता होने पर कठोर कार्रवाई करने की क्षमता और राष्ट्रीय इच्छाशक्ति भरपूर है। जय भारत !
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