महाकुंभ में रविवार को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा ज्ञान कुम्भ का आयोजन किया गया। इस ज्ञान कुंभ में “विकसित भारत और भारतीय भाषाएं” विषय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि हम पुराने ज्ञान का उपयोग करने वाले ही न बनें बल्कि नये ज्ञान को सृजित करने वाले, कर्मवीर व साधक बनें। शिक्षा व संस्कृति अलग नहीं हो सकती। देश में शैक्षिक वातावरण निर्माण करने का काम शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने किया है। देश की शिक्षा में परिवर्तन लाने का काम केवल कुछ लोगों या शासन का काम नहीं है। अगर देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा। देश को आत्मनिर्भर बनाना है तो छात्रों को आत्मनिर्भर बनाना होगा।
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दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि मातृभूमि एवं मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं है। भारत की प्रत्येक भाषा में साहित्य व संस्कृति है। अगली पीढ़ी को मातृभाषा का परिचय कराना प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है। मातृभाषा से जो व्यक्ति दूर हो जाता है, उसके जीवन मूल्यों में संस्कृति की समझ में कमी आ जाती है। उन्होंने कहा कि अतीत में क्या हुआ इसके बारे में चर्चा करके न बैठें बल्कि आगे के लिए सोचें। भारत में ज्ञान परम्परा इतिहास संसाधन सब है। जरूरत है परिश्रम व संकल्प की सामूहिकता की योजना के तहत चलने की। समवय भाव से संकल्प लेकर परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए आगे बढ़ें तो हम भारत को सिरमौर बना सकते हैं। हम प्रतिबद्धता से परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए देश के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रयत्न करेंगे तो भारत को न केवल विश्वगुरू बनायेंगे बल्कि परम वैभव का सपना हम पूरा कर पायेंगे।
उन्होंने कहा कि शिक्षा को केवल आप व्यवसाय के नाते न चलाएं, परिवर्तन लाने की भूमिका से चलाएं। शिक्षा के द्वारा संस्कार चाहिए। इसलिए वो संस्कार देने वाली शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि शिक्षा के माध्यम से उत्तम चरित्र का निर्माण हो सके। ऐसा ही प्रशंसनीय कार्य न्यास ने किया है।
उन्होंने कहा कि भारत के भविष्य के निर्माता विद्यालयों की कक्षाओं में तैयार होते हैं। उनके अंदर ज्ञान और जीवन मूल्य इन दोनों की दृष्टि से वर्तमान भारत में क्या होना आवश्यक है। इसको केवल सरकार से अपेक्षा रखते हुए मांग रखने का काम न्यास ने नहीं किया। न्यास ने समाज में प्रबोधन किया। भारत के शिक्षाविद, शिक्षक, चिंतक विद्वानों को एकमंच पर लाकर इस विषय में समाधान क्या हो सकता है। इस पर समय-समय पर मंथन किया है।
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