2013 से आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिल्ली में शिक्षा को शासन की प्राथमिकता बनाने की बात कही और इसमें निवेश किया। सरकार ने स्कूलों के बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण, स्मार्ट कक्षाओं और नई सुविधाओं के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर धन खर्च किया। हालांकि इन बदलावों से सरकारी स्कूलों की भौतिक उपस्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन इनसे शिक्षा की गुणवत्ता, समावेशिता, और उच्च शिक्षा तक पहुँच जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे सुलझाए नहीं गए हैं।
आम आदमी पार्टी ने स्कूलों के बुनियादी ढांचे को सुधारने का लक्ष्य रखा था। स्कूलों में स्मार्टबोर्ड, नई कक्षाएं शुरू करने का दावा किया। हालांकि, इन सुधारों से शिक्षा की गुणवत्ता में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं आया है। कई शिक्षक इन आधुनिक उपकरणों का प्रभावी उपयोग करने के लिए उचित प्रशिक्षण से वंचित हैं, जिससे कक्षाओं में उनकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है। परिणामस्वरूप, ये सुधार अक्सर शिक्षा में वास्तविक सुधार के बजाय केवल दिखावे के रूप में रह जाते हैं।
सरकार ने शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर विद्यार्थियों को समूहबद्ध करके उत्तीर्ण प्रतिशत बढ़ाने के लिए “मिशन चुनौती” नामक योजना शुरू की। लेकिन यह नीति संघर्षरत छात्रों की मदद करने के बजाय उन्हें मुख्यधारा के स्कूलों से बाहर कर देती है। ऐसे छात्रों को पत्राचार विद्यालयों में भेज दिया जाता है, जो न्यूनतम शैक्षणिक सहायता प्रदान करते हैं। इस प्रकार, यह नीति वास्तविक सुधार की बजाय केवल स्कूल के आंकड़ों को बेहतर बनाने को प्राथमिकता देती है।
238 स्कूलों में ही विज्ञान की पढ़ाई
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में विज्ञान शिक्षा की सीमित उपलब्धता भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। दिल्ली में 846 स्कूलों में से केवल 238 स्कूलों में ही विज्ञान पढ़ाया जाता है, जिससे STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए अवसर बहुत सीमित हो जाते हैं। लड़कियों के मामले में यह असमानता और भी बढ़ जाती है, क्योंकि 100 से भी कम स्कूलों में ही छात्राओं को विज्ञान विषय की सुविधा दी जाती है। यह अंतर पुरानी लैंगिक रूढ़ियों को मजबूत करता है और लड़कियों की विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रवेश करने की संभावना को रोकता है।
गैर विज्ञान विषयों पर ध्यान ज्यादा
सरकार का ध्यान गैर-विज्ञान विषयों पर ज्यादा है, जो आमतौर पर उत्तीर्ण करना आसान होते हैं। हालांकि यह रणनीति उत्तीर्ण प्रतिशत को बढ़ाती है, लेकिन इससे छात्रों के शैक्षणिक विकल्प सीमित हो जाते हैं और उनके पास अधिक चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में आगे बढ़ने का अवसर कम हो जाता है।
स्कूल छोड़ते छात्र
एक और गंभीर समस्या है उच्च विद्यालय छोड़ने की दर। रिपोर्टों के अनुसार, हर साल कक्षा 9 और 11 में 3 लाख से अधिक छात्र फेल हो जाते हैं। बिना प्रभावी सुधारात्मक कार्यक्रमों के, संघर्षरत छात्र पीछे रह जाते हैं, जिससे स्कूल छोड़ने की दर बढ़ती है और सरकारी दावों को कमजोर कर देती है।
प्रतिभा विकास विद्यालयों के बंद होने से शिक्षा प्रणाली और कमजोर हुई है। ये स्कूल उन छात्रों के लिए थे जो उच्च प्रदर्शन करते थे और जिन्हें विशेष शैक्षणिक सहायता की आवश्यकता थी। इन विद्यालयों को बंद करने से इन छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित कर दिया गया। इसके साथ ही, निजी स्कूलों की बढ़ती फीस ने शिक्षा को अनेक परिवारों के लिए अप्राप्य बना दिया है, जिससे समाज में शिक्षा के मामले में और असमानताएं उत्पन्न हो गई हैं।
उच्च शिक्षा बड़ी चुनौती
दिल्ली में उच्च शिक्षा भी बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है। 20 नए कॉलेजों की स्थापना का वादा किया गया था, लेकिन 2013 से अब तक एक भी कॉलेज नहीं खोला गया। इससे उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले छात्रों के पास विकल्पों की कमी हो गई है। दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेजों में भी वित्तीय संकट है, जिसमें शिक्षकों के वेतन में देरी और संसाधनों की कमी जैसी समस्याएं शामिल हैं। इन समस्याओं ने इन संस्थानों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डाला है और छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है।
AAP के शिक्षा मॉडल को प्रशंसा मिली है, विशेष रूप से स्कूलों के बुनियादी ढांचे और उत्तीर्ण प्रतिशत पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, लेकिन यह आलोचना भी की जा रही है कि इसने गहरे और संरचनात्मक मुद्दों को नजरअंदाज किया है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, सरकार को सतही सुधारों से हटकर ऐसी नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है जो शिक्षा की गुणवत्ता, समावेशिता और सीखने के परिणामों में वास्तविक सुधार ला सकें।
वास्तविक परिवर्तन के लिए, सरकार को व्यापक शिक्षक प्रशिक्षण में निवेश करना चाहिए, ताकि शिक्षक आधुनिक उपकरणों का प्रभावी उपयोग कर सकें और शिक्षण विधियों में सुधार कर सकें। विज्ञान शिक्षा में विस्तार करना, विशेषकर लड़कियों के लिए, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और STEM क्षेत्रों में अधिक अवसर पैदा करने के लिए जरूरी है। इसके अलावा, संघर्षरत छात्रों के लिए प्रभावी सुधारात्मक कार्यक्रमों की आवश्यकता है, ताकि स्कूल छोड़ने की दर कम हो सके और छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सके। केवल उत्तीर्ण प्रतिशत पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, सरकार को समग्र शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए, जो छात्रों को आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और समस्या-समाधान कौशल के साथ भविष्य के लिए तैयार करे।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ-
“दिल्ली को भ्रष्टाचार का मॉडल बनाने का काम अरविंद केजरीवाल की सरकार ने किया है। शिक्षा के नाम पर दिल्ली को लूटा जा रहा है, और सरकार की नीतियों ने बच्चों को उनके भविष्य से वंचित कर दिया है। कक्षा में फेल हुए बच्चों को दूसरे स्कूलों में जाने का आदेश दे दिया गया है, लेकिन सरकार यह नहीं बता पा रही कि ये बच्चे बिना शिक्षक या ट्यूशन के कैसे पढ़ पाएंगे।
जिन बच्चों के कंधों पर भविष्य में दिल्ली को बनाने की जिम्मेदारी थी, आज उन्हें इस भ्रष्ट सरकार की नीतियों ने चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। दिल्ली सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं है। शिक्षक भी परेशान हैं क्योंकि उन्हें पढ़ाने के बजाय प्रशासनिक कामों में लगाया जा रहा है।
स्थिति इतनी खराब है कि एक लाख से अधिक बच्चे फेल हो चुके हैं, और यह आंकड़ा खुद शिक्षा निदेशालय ने पेश किया है। यह अरविंद केजरीवाल के झूठे शिक्षा मॉडल और उनकी असफल नीतियों की सच्चाई को उजागर करता है।”
– वीरेंद्र सचदेवा, दिल्ली प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष
योजनाएं की पहुंच कम, चढ़ रहीं भ्रष्टाचार की भेंट
डॉ. अंबेडकर सम्मान छात्रवृत्ति योजना: दिल्ली सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए इस योजना की घोषणा की, जिसके तहत वे विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के लिए आवेदन कर सकते हैं। सरकार उनकी ट्यूशन फीस, यात्रा, और रहने का खर्च वहन करेगी, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
सीमित जागरूकता और पहुंच-
- कई पात्र छात्र योजना के बारे में जानकारी नहीं रखते, जिससे इसका लाभ सही लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता।
- जागरूकता अभियानों की कमी के कारण ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों को योजना का फायदा नहीं मिल पाता।
जटिल आवेदन प्रक्रिया-
- योजना के लिए आवश्यक दस्तावेज़ और आवेदन प्रक्रिया जटिल है, जिससे गरीब और अशिक्षित परिवारों को आवेदन करने में कठिनाई होती है।
- कई बार छात्रों को आवेदन के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते हैं, जिससे यह योजना जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाती।
बजट और धन आवंटन में देरी-
- इस योजना के तहत प्रदान की जाने वाली छात्रवृत्ति राशि में समय पर आवंटन न होने की शिकायतें आई हैं।
- छात्रों को फीस भरने और अन्य खर्चों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हो सकती है।
भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी-
- छात्रवृत्ति प्रदान करने में अनियमितता और पक्षपात की शिकायतें सामने आई हैं।
- पारदर्शिता की कमी से कई बार योजना का सही क्रियान्वयन नहीं हो पाता, जिससे वास्तविक जरूरतमंद छात्रों को इसका लाभ नहीं मिल पाता।
रोजगार की गारंटी का अभाव-
- छात्रों को रोजगार में कोई विशेष सहायता नहीं दी जाती, जिससे वे पढ़ाई पूरी करने के बाद भी बेरोजगार रह सकते हैं।
- शिक्षा और उद्योग के बीच तालमेल की कमी के कारण इस योजना का वास्तविक प्रभाव कम हो जाता है।
शहरी और ग्रामीण असमानता-
- ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को इस योजना का लाभ लेने में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें उचित मार्गदर्शन और संसाधन उपलब्ध नहीं होते।
- शहरी क्षेत्रों में इस योजना का अधिक उपयोग देखा गया है, जिससे असमानता बढ़ जाती है।
प्रधानमंत्री स्कूलों के लिए उत्थान योजना-
- यह केंद्रीय शिक्षा योजना है और इसका उद्देश्य देश भर में चयनित स्कूलों को उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में स्थापित करना है। दिल्ली सरकार ने इस योजना को दिल्ली में लागू ही नहीं किया।
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