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विदेशी तन सनातनी मन

महाकुंभ में बड़ी संख्या में विदेशी भक्त भी आ रहे हैं। ये न केवल संगम में डुबकी लगा रहे हैं, बल्कि सनातन संस्कृति को अपना भी रहे हैं। ये नव सनातनी पूरे विश्व में सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रचार कर रहे

by हरि मंगल
Jan 29, 2025, 12:36 pm IST
in विश्लेषण, उत्तर प्रदेश, संस्कृति
भगवा रंग में रंगे विदेशी

भगवा रंग में रंगे विदेशी

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प्रयागराज के संगम तट पर बसी तंबुओं की नगरी भारतीयों का ही नहीं, विदेशियों का भी ध्यान आकृष्ट कर रही है। एक ओर देश के कोने-कोने से सनातनधर्मी धर्माचार्य, साधु-संत और श्रद्धालु कल्पवास, स्नान-दान और अध्यात्म का पाठ पढ़ने के लिए महाकुंभ नगर पहुंच रहे हैं, तो दूसरी ओर सात समंदर पार से भी हजारों की संख्या में विदेशी भक्त महाकुंभ में आ रहे हैं। ये लोग आस्था की एक डुबकी लगाने के साथ ही सत्संग-भजन भी सुन रहे हैं। अनेक विदेशी तो सनातन धर्म की दीक्षा लेकर सनातनी बन रहे हैं। ये नव सनातनी किसी पुराने सनातनी से भी बढ़कर अपने अध्यात्म ज्ञान का परिचय दे रहे हैं।

हरि मंगल
वरिष्ठ पत्रकार

एक ऐसा ही उदाहरण गत 19 जनवरी को लखनऊ में मिला। इस दिन इटली से आए एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट की। इसमें शामिल महिलाओं ने रामायण की चौपाई, शिव तांडव स्तोत्र और कई भजन सुनाए। इससे योगी आदित्यनाथ इतने भाव-विभोर हुए कि उन्होंने उनकी जम कर प्रशंसा की। यह प्रतिनिधिमंडल महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने के बाद लखनऊ पहुंचा था।

इन विदेशी श्रद्धालुओं में तमाम ऐसी चर्चित हस्तियां भी हैं, जो अपने मत, धन, पद और प्रतिष्ठा को दरकिनार कर सनातन का चोला ओढ़ कर अपने समाज की भोगवादी संस्कृति को आईना दिखा रहे हैं। इनमें एक हैं लॉरेन पॉवेल जॉब्स। ये अमेरिका की बहुराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कंपनी ‘एप्पल’ के सह संस्थापक स्व. स्टीव जॉब्स की पत्नी हैं। महाकुंभ में आने से पहले ही उनके आध्यात्मिक गुरु श्री निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने उनका नामकरण किया था-कमला। भारत आने पर सबसे पहले उन्होंने काशी विश्वनाथ के दर्शन किए। इसके बाद महाकुंभ में पहुंचीं। यहां उन्होंने बड़े संतों की देखरेख में पूजा-पाठ किया, प्रवचन भी सुने।

महाकुंभ में विदेशी श्रद्धालु

सनातन धर्म की आभा से प्रभावित होने वालों में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन के सैन्य लेखा विभाग की अधिकारी हानाई का भी नाम है। हानाई ने जानसन एंड वेल्स विश्वविद्यालय से एमबीए करने के बाद 2014 में अमेरिका के सैन्य विभाग में सेवा शुरू की थी। इसी बीच उनका जुड़ाव यूट्यूब के माध्यम से प्रयागराज के संत योगी सत्यम से हुआ, जो क्रियायोग अभ्यास कराते हैं। क्रियायोग अभ्यास से जुड़ने के बाद उनके जीवन में आए बदलाव ने उन्हें सनातन धर्म के बहुत करीब पहुंचाया। 2018 में उन्होंने पहली बार भारत आकर सनातन के बारे में नजदीक से जानने का प्रयास किया। वे कहती हैं, ‘‘क्रियायोग का अभ्यास करने से मेरे जीवन में बहुत बदलाव आए। इससे मन को शांति और शुद्धता मिली। मोह-माया से विरक्ति का भाव आया। अब मेरा पूरा जीवन साधना और अध्यात्म को समर्पित है।’’ सनातन धर्म से जुड़ने की प्रबल इच्छा लेकर वे आध्यात्मिक गुरु योगी सत्यम के प्रयागराज स्थित आश्रम में आईं। महाकुंभ के पहले ही आश्रम में उनका नव संस्कार हुआ। अब उन्होंने तन पर भगवा वस्त्र धारण कर लिया है। इसके बाद उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अपने आपको गंगा को समर्पित कर दिया है, क्योंकि गंगा का पावन जल हमारे मन को पवित्र करता है, जीवन के पापों को समाप्त कर मोक्ष और अमरत्व की प्राप्ति करवाता है।’’ उन्होेंने कहा, ‘‘सनातन संस्कृति बहुत समृद्ध है। मन करता है कि अब भारत में ही रह कर साधना करूं, क्योंकि यही जीवन को अमरत्व की ओर ले जाएगी।’’

अमेरिका के न्यू मैक्सिको में जन्म लेने वाले माइकल कभी अमेरिकी सेना में सैनिक थे, लेकिन नौकरी रास नहीं आई तो चल पड़े शांति की तलाश में और ठिकाना मिला भारत में। आज वे संत बन कर बाबा मोक्षपुरी के नाम से विख्यात हैं और जूना अखाड़े से जुड़ कर सनातन धर्म की पताका देश-विदेश में लहरा रहे हैं। मोक्षपुरी बताते हैं, ‘‘मैं 2000 में पहली बार परिवार के साथ भारत आया और यहां आकर योग, साधना के साथ ही सनातन को नजदीक से जाना। भारत की संस्कृति और परंपरा ने मुझे अंदर तक प्रभावित किया। यहीं मेरी आध्यात्मिक चेतना जाग्रत हुई, जो शायद ईश्वर की कृपा ही थी।’’

बाबा मोक्षपुरी के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब उनके बेटे का असमय निधन हो गया, लेकिन ध्यान और योग ने उन्हें इस विपत्ति से बाहर निकालने में मदद की। इस घटना से बाबा मोक्षपुरी को यह अनुभूति हुई कि जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है, बस इसके बाद उन्होंने अपना जीवन अध्यात्म को समर्पित कर दिया। 2016 के उज्जैन कुंभ में आने के बाद उन्होंने प्रत्येक महाकुंभ में आने का संकल्प लिया है। बाबा मोक्षपुरी की योजना न्यू मैक्सिको में एक आश्रम खोलने की है, जहां वे भारतीय धर्म, दर्शन और योग का प्रचार करेंगे।

श्री पंच दशनाम शंभू अटल अखाड़ा से जुड़ीं अंजना गिरि इटली की रहने वाली हैं। पहले उनका नाम एंजेला था। वे जब छोटी ही थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया। बाद में उनकी मां भी चल बसीं। ईसाई परिवार में जन्मीं एंजेला को एक दिन अपनी मां के कपड़े में लिपटी हुई ‘अवधूत गीता’ मिली। संस्कृत में होने के कारण वे तत्काल उसे पढ़ नहीं पाईं, लेकिन प्रयास छोड़ा नहीं। उन्होंने कुछ विद्वानोें की देखरेख में उस पुस्तक का अध्ययन किया। पुस्तक ने उनके मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव डाला कि वे अध्यात्म के पथ पर चल पड़ीं। वे 1994 में पहली बार भारत आईं। कई राज्यों के कुछ प्रमुख स्थानों के भ्रमण के बाद गुजरात गईं, जहां उनकी भेंट माता संतोष गिरि से हुई। उन्हीं के माध्यम से वे संत रामेश्वर गिरि से मिलीं।

1995 में एंजेला ने सनातन की दीक्षा ली और उनका नाम हो गया अंजना गिरि। महाकुंभ में आईं गेरुआ वस्त्रधारी एंजेला श्री पंच दशनाम अटल अखाड़ा में रह कर सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। इसी प्रकार न्यूयॉर्क की एक कंपनी में खाद्य सचिव के पद पर कार्यरत क्रिस्टीना को सनातन संस्कृति इतनी रास आई कि वे अब अमृता माता बन कर सनातन का प्रचार कर रही हैं। क्रिस्टीना का जीवन भी पाश्चात्य संस्कृति में रचा-बसा था, लेकिन कनाडा में क्रियायोग के एक अभ्यास शिविर में शामिल होने के बाद उनके जीवन के सभी पक्षों में बदलाव आने लगा। अंतत: एक दिन वे अपने माता-पिता के साथ क्रियायोग साधना के गुरु स्वामी योगी सत्यम के आश्रम में आ गईं। यहां उन्होंने विधिवत् सनातन की दीक्षा ली। अब वे पूरी तरह सनातन धर्म के प्रति समर्पित हैं और देश-विदेश में सनातन की विशेषताओं पर प्रवचन देती हैं। इस समय वे महाकुंभ में स्थित क्रियायोग आश्रम में रह कर ध्यान, योग और साधना कर रही हैं।

महाकुंभ में यूरोपीय देश स्लोवेनिया के डारजियो और क्रोएशिया के ब्लेज भी आए हैं। इन दोनों को सनातन संस्कृति इतनी पसंद है कि ये 1998 में सनातनी हो गए थे। इन दोनों ने 1998 के हरिद्वार कुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी महेश्वरानंद से दीक्षा ली। इन्होंने ही डारजियो को दत्तात्रेय और ब्लेज को रामानंद नाम दिया है। गुरु दीक्षा और नामकरण के बाद दोनों गुरु भाई बन गए। इन दिनों ये दोनों महाकुंभ में स्थित महानिर्वाणी अखाड़े के शिविर में एक साथ रह रहे हैं।

इससे पहले ये दोनों 2007, 2013 तथा 2019 के कुंभ में आ चुके हैं। डारजियो यानी दत्तात्रेय कहते हैं, ‘‘सनातन संस्कृति को अपनाने के बाद मेरे जीवन में बहुत बदलाव आ गया है। रोज हनुमान चालीसा पढ़ता हूं। हर-हर गंगे की ध्वनि से तो मन पवित्र हो जाता है।’’ दत्तात्रेय और रामानंद दोनों के परिवार वाले भी सनातन पर आस्था रखने लगे हैं। महाकुंभ में घूमते हुए दत्तात्रेय कहते हैं, ‘‘जब मैं अपने घर से प्रयागराज के लिए चला तो मेरे परिवार वालों ने कहा कि गंगा जल लेकर आना। इसलिए वापसी में गंगा जल जरूर ले जाऊंगा।’’

वेद व्यासानंद बने महामंडलेश्वर

सनातनी अखाड़ों में महामंडलेश्वर का पद सदैव आकर्षण का विषय रहा है। विदेशी साधु-संतों के लिए तो यह राह और कठिन है, लेकिन निरंजनी अखाड़े के पंच परमेश्वरों द्वारा सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में मग्न विदेशी संत स्वामी वेद व्यासानंद का विधिवत पट्टाभिषेक करके उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई है। वेद व्यासानंद का पुराना नाम टॉम है और वे अमेरिका के पूर्व थल सेना अध्यक्ष के पुत्र हैं। टॉम ने 2003 में स्वामी कैलाशानंद से दीक्षा ली थी। उसी समय उन्हें वेद व्यासानंद का नाम मिला था। इसके बाद वे अनेक देशों में भारतीय संस्कृति का प्रचार कर रहे हैं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष रवींद्र पुरी कहते हैं, ‘‘सनातन के प्रति उनके इस योगदान को देखते हुए ही उन्हें महामंडलेश्वर बनाया गया है। अब वे महामंडलेश्वर वेद व्यासानंद के नाम से जाने जाएंगे।’’

अब एक ऐसे अमेरिकी की बात, जिसने ईसाई मत छोड़कर सनातन धर्म अपनाया। अब तो वे प्रवचन भी करते हैं, वह भी हिंदी और संस्कृत में। इनका नाम है- अनंत दास जी महाराज। ये अभी निर्मोही अनी अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं। सनातन के प्रति अप्रतिम लगाव ही उन्हें भारत खींच लाया। वे 2010 में काशी पहुंचे और उन्होंने वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण का अध्ययन शुरू किया। इसके लिए उन्होंने पहले संस्कृत और हिंदी भी सीखी। 2013 में उन्होंने ब्रह्मचारी दीक्षा ली है। अब यज्ञ, ध्यान और सत्संग के माध्यम से सनातन धर्म का प्रचार कर रहे हैं।

ब्राजील निवासी जोनास मसेटी भी हिंदू बन गए हैं। अब उनका नाम है वेदांत आचार्य जोनास मसेटी उर्फ विश्वनाथ। उनकी पत्नी का नाम मीनाक्षी, बेटी का नाम सरस्वती और बेटे का नाम मनु है। वे ब्राजील में एक गुरुकुल चलाते हैं, जिसमें लगभग 3,000 युवा भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की शिक्षा ले रहे हैं। भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के प्रति उनके समर्पण की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2020 में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में उनकी चर्चा की थी।

इन प्रसंगों से यही सिद्ध होता है कि पूरी दुनिया में सनातन का सूर्योदय हो चुका है। आज नहीं तो कल, विश्व के लोग सनातन के सिपाही अवश्य बनेंगे।

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