तीर्थनगरी प्रयागराज के अधिष्ठाता स्वयं भगवान विष्णु हैं, जो यहां श्री वेणी माधव के रूप में विराजमान हैं। प्रयागराज के अलग-अलग स्थानों पर 12 स्वरूपों में विराजमान होने के कारण ये ‘द्वादश माधव’ के रूप में प्रसिद्ध हैं। प्रयागराज के दारागंज में विराजे श्री वेणी माधव यहां मुख्य देवता के रूप में पूजे जाते हैं। श्री वेणी माधव के प्रयागराज में निवास करने के संदर्भ में एक पौराणिक प्रसंग है। वह प्रसंग है कि त्रेता युग में राक्षस गजकर्ण के अत्याचार से तीनों लोकों के लोग परेशान थे। इस कारण चारों ओर ‘रक्षा करो, रक्षा करो’ की पुकार हो रही थी। अंत में सभी लोग भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
उन्होंने उनकी बात सुनने के बाद नारद जी को कोई उपाय करने को कहा। इसके बाद नारद जी गजकर्ण का गुणगान करते हुए उसके दरबार में पहुंचे। गजकर्ण उस समय बीमारी की वजह से बहुत कष्ट में था। नारद जी ने उससे कहा कि तुम संगम में स्नान करो, कष्ट से मुक्ति मिल सकती है। नारद जी की सलाह मानते हुए गजकर्ण ने संगम में स्नान किया और आश्चर्यजनक रूप से उसकी बीमारी भी ठीक हो गई। संगम के जल का यह चमत्कार देखकर गजकर्ण का मन बदल गया और मन वांछित फल प्राप्त करने की नीयत से वह तीनों नदियों (गंगा, यमुना और सरस्वती) का जल पी गया। इस कारण संसार में जल समाप्त हो गया। इसके बाद हाहाकार मच गया। सभी एक बार फिर से भगवान विष्णु के पास पहुंचे और जल की रक्षा करने की प्रार्थना की।
गजकर्ण की इस हरकत से आक्रोशित भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर मंगलवार के दिन प्रयागराज पहुंचे। कहा जाता है कि भगवान विष्णु और गजकर्ण लगातार तीन दिन तक युद्ध करते रहे। अंत में गुरुवार के दिन भगवान ने गजकर्ण का वध कर दिया और इसके साथ ही त्रिवेणी जी गजकर्ण के शरीर से बाहर आ गईं। सब कुछ सामान्य हो जाने पर भगवान वापस जाने लगे। इस पर प्रयागराज ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘हे प्रभु! आने वाले समय में फिर कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई, तो मेरी रक्षा कौन करेगा? इसलिए मेरी प्रार्थना है कि आप यहीं विराजित होकर हम सबकी रक्षा करें।’’ इस पर भगवान ने कहा कि आगे से मैं वेणी माधव के रूप में प्रयागराज क्षेत्र की रक्षा करूंगा।
कालांतर में श्री वेणी माधव प्रयागराज में अलग-अलग क्षेत्रों में कुल 12 स्वरूपों में विराजमान हुए। उन स्थानों पर बहुत ही कलात्मक मंदिर भी बनाए गए। बाद में उनकी देखरेख नहीं होने के कारण उनकी स्थिति खराब होती गई। वहां स्थापित विग्रह भी खंडित हो गए। वर्षों तक ये मंदिर ऐसे ही पड़े रहे। किसी ने उनकी देखभाल नहीं की। 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इन मंदिरों की ओर ध्यान दिया गया और 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया।
नए-नए कीर्तिमान
प्रयागराज महाकुंभ हर क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। अब तक लगभग 11 करोड़ श्रद्धालु संगम में डुबकी लगा चुके हैं। दिनोंदिन यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष महाकुंभ में 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आएंगे। इसमें विदेशी श्रद्धालुओं की संख्या लगभग 5 लाख हो सकती है। महाकुंभ ने प्रयागराज हवाईअड्डे को भी नई ‘उड़ान’ दी है। जनवरी के मध्य वाले हफ्ते में 30,172 यात्री प्रयागराज हवाई अड्डे पर उतरे। एक दिन में 5,000 यात्री प्रयागराज हवाईअड्डे से उड़ान भर चुके हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। महाकुंभ के दौरान अब तक इस हवाईअड्डे से 226 विमान उड़ चुके हैं।
वेणी माधव के 12 रूप
वेणी माधव का मुख्य मंदिर दारागंज में दशाश्वमेध घाट के समीप है। यहां वेणी माधव के साथ त्रिवेणी जी की भी प्रतिमा है। ये प्रतिमाएं काले शालिग्राम की हैं। यह मंदिर नगर देवता और लक्ष्मी नारायण मंदिर जैसे कई नामों से विख्यात है। इसके मुख्य द्वार पर सुनहरे अक्षरों में ‘नगर देवता’ और ‘माधो सकल काम साधो’ अंकित है।
प्रयागराज के अरैल क्षेत्र में भगवान सोमेश्वर महादेव मंदिर के समीप चक्र माधव का मंदिर है। कहा जाता है कि चक्र माधव 14 महाविद्याओं से परिपूर्ण हैं। इनके दर्शन-पूजन से 14 विद्याओं की प्राप्ति होती है।
नैनी क्षेत्र में छिवकी रेलवे स्टेशन के समीप माधव मंदिर है। कुछ तत्वों ने यहां स्थापित मूल विग्रह को खंडित कर दिया था। कुछ वर्ष पूर्व जयपुरिया पत्थर से नूतन विग्रह निर्मित कराकर स्थापित किया गया है।
घूरपुर के नजदीक यमुना तट पर वीकर देवरिया गांव में पद्म माधव का प्राचीन और बहुत ही आकर्षक मंदिर है। यहां स्थापित मूल विग्रह को भी खंडित कर दिया गया है। कुछ वर्ष पहले यहां नूतन विग्रह स्थापित किया गया है।
धूमनगंज में एक टीले पर हनुमान मंदिर के निकट अनंत माधव का मंदिर है। मंदिर में स्थापित विग्रह श्वेत पत्थर का है।
गंगा के द्रौपदी घाट पर बिंदु माधव का मंदिर है। राज्य सरकार ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया है।
जानसेनगंज के द्रव्येश्वर नाथ मंदिर में मनोहर माधव और लक्ष्मी जी के विग्रह स्थापित हैं। यहां मनोहर माधव लक्ष्मी जी के साथ शंकर जी की पूजा करने की मुद्रा में स्थित हैं।
दारागंज स्थित नाग वासुकी मंदिर परिसर में असि माधव जी का एक छोटा विग्रह है, जिसमें वे खड्ग लिए हुए हैं।
झूंसी में हंस तीर्थ के निकट स्थित वट वृक्ष के नीचे संकट हरण माधव विराजते हैं। इस पीठ की पुनस्स्थापना और विग्रह की स्थापना प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी ने 1931 में की थी।
अरैल क्षेत्र में स्थित फलाहारी बाबा आश्रम और सच्चा बाबा आश्रम के बीच आदि वेणी माधव एक पीपल के वृक्ष के नीचे बने मंदिर में विराजमान हैं।
वेणी माधव का एक रूप है-आदि वट माधव। इन्हें मूल माधव भी कहा जाता है। मान्यता है कि प्रलयकाल में माधव वट वृक्ष में विराजते हैं और जब सृष्टि काल आता है तो संपूर्ण ब्रह्मांड में विभिन्न रूपों में विराजते हैं। प्रयागराज में इस पीठ का स्थान त्रिवेणी का जल माना जाता है।
झूंसी स्थित सदाफल आश्रम के पीछे एक बगीचे में शंख माधव विराजित हैं।
प्रयागराज वासी श्री वेणी माधव के जिस भी स्वरूप के दर्शन करते हैं, उन्हें एक आत्मिक संतोष प्राप्त होता है। सच ही है कि श्री वेणी माधव शहर के साथ-साथ उन भक्तों के भी रखवाले हैं, जो उनकी शरण में आते हैं।
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