प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में गत 10 जनवरी को ज्ञान महाकुंभ आयोजित हुआ। इसे संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि संस्कार-विहीन शिक्षा का कोई अर्थ नहीं है। इसलिए हमें ऐसे शैक्षिक कुंभों के माध्यम से शिक्षा को संस्कार और सरोकारों से जोड़ना होगा। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास यह कार्य कर रहा है।
न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि लगभग 175 वर्ष पुरानी मैकॉले की शिक्षा नीति के प्रभाव के कारण शिक्षा मात्र नौकरी प्राप्त करने का माध्यम बन गई है। इस शैक्षिक परिदृश्य में सुधार एवं परिवर्तन हेतु शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास प्रतिबद्ध है। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा क्षेत्र के क्षेत्र में सकारात्मक कार्य, नवाचार एवं भारतीयता की दिशा में कार्य करने वाली संस्थाओं एवं विद्वानों को एक मंच पर लाकर उनके कार्यों को प्रदर्शित किया जाएगा।
शिक्षा के सभी घटक एक साथ एकत्रित होकर देश की शिक्षा में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए मंथन करें, यही इस ज्ञान महाकुंभ का प्रमुख उद्देश्य है। इस ज्ञान महाकुंभ से पूर्व हरिद्वार, कर्णावती, नालंदा और पुद्दुचेरी में भी ज्ञान महाकुंभ आयोजित किए जा चुके हैं। विश्व जागृति फाउंडेशन के डॉ. वागीश स्वरूप ब्रह्मचारी ने कहा कि दुनिया जब ज्ञान से कोसों दूर थी तब हम नक्षत्रों की गणना, उच्च स्तरीय विज्ञान और नैतिकता की बात किया करते थे।
शिक्षाविद् रमेश कुमार ने कहा कि भारतीय परंपराएं सदा से ही अपने आप में अनोखी सामाजिक समरसता को बल देती रही हैं। हमें इस पर गर्व करना चाहिए और इसके संरक्षण के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए। केंद्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय के निदेशक आचार्य ललित त्रिपाठी ने कहा कि ज्ञान से बड़ा कोई अमृत नहीं होता, जो इसका पान करेगा, उसी का उत्थान संभव है।
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