ब्रिटेन में पाकिस्तानियों द्वारा 1400 बच्चियों के यौन उत्पीड़न का मामला जितना गंभीर और हृदयविदारक है, उतना ही लापरवाही और घिनौनी राजनीति में पगा है प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर का ‘इस्लामोफोबिया की परिभाषा’ की आड़ में इन मामलों से कन्नी काटना। विश्व हैरान है कि स्टार्मर इस मुद्दे पर कैसे बेपरवाही भरे बयान दे रहे हैं। कंजर्वेटिव सांसदों ने इस प्रवृत्ति का विरोध करते हुए स्टार्मर से इस्तीफा मांगा
इंग्लैंड में पाकिस्तानी मुसलमानों के कुख्यात ‘ग्रूमिंग गैंग’ का जिन्न फिर बोतल से बाहर आ गया है। वैसे यह कभी बोतल में गया ही नहीं, बस उस पर चर्चा नहीं होती रही। पिछले वर्ष भी यह तब चर्चा में आया था, जब इंग्लैंड में ऋषि सुनक की अगुआई वाली कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार थी। अब लेबर पार्टी की सरकार है, तो विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी की नेता एवं सांसद केमी बेडेनॉक ने सरकार से ‘बलात्कार गिरोह कांड’ की राष्ट्रव्यापी सार्वजनिक जांच की मांग उठाई, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। हालांकि, यह फैसला पिछले वर्ष अक्तूबर में लिया गया था, लेकिन मीडिया में हाल ही में आया।
अब जब विवाद बढ़ा तो इसमें अमेरिकी अरबपति और टेस्ला के मालिक एलन मस्क, हैरी पॉटर की लेखिका जेके रोलिंग और ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री लिज ट्रस सहित कई हस्तियां इस मामले में ब्रिटिश सरकार पर हमलावर हैं। एलन मस्क ने तो सीधे ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर पर ही निशाना साधते हुए राजशाही से संसद को भंग करने की अपील की है।
मस्क ने यहां तक कहा कि जेस फिलिप्स को जेल भेज देना चाहिए। वहीं, ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने एलन मस्क और अन्य पर ‘झूठ और गलत सूचना फैलाने’ का आरोप लगाते हुए पलटवार किया है। ‘ग्रूमिंग गैंग’ के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाने के अपने फैसले का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि ‘गलत सूचना फैलाने वालों को पीड़ितों में कोई दिलचस्पी नहीं है।’ गृह कार्यालय मंत्री जेस फिलिप्स को ‘बलात्कार नरसंहार समर्थक’ बताते समय एलन मस्क ‘सीमा रेखा पार कर गए।’
निशाने पर ब्रिटिश पीएम
वैसे तो इंग्लैंड के कई शहरों से ‘ग्रूमिंग गैंग’ की करतूतों की रिपोर्ट न जाने कब से आती रही है, लेकिन इस पर सरकार की चुप्पी समझ से परे है। इन दिनों खासतौर से 1997 से 2013 के बीच ‘रॉदरहैम स्कैंडल’ ने लोगों का ध्यान अधिक खींचा है। सोशल मीडिया पर ब्रिटिश संसद की एक बहस का वीडियो साझा करते हुए एक यूजर ने दावा किया कि बीते 25 वर्ष में ढाई लाख ब्रिटिश लड़कियों के साथ मुसलमानों ने बलात्कार किया है।
एलन मस्क ने प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘‘ब्रिटेन में बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के लिए पुलिस को संदिग्धों पर आरोप लगाने के लिए ‘क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस’ (सीपीएस) की मंजूरी की आवश्यकता होती है। जब बलात्कारी गिरोहों को न्याय का सामना किए बिना युवा लड़कियों का शोषण करने की अनुमति दी गई थी, तब सीपीएस का प्रमुख कौन था? कीर स्टार्मर, 2008-2013।’’ इसके बाद उन्होंने एक और पोस्ट लिखी कि ‘‘जेस फिलिप्स का मौजूदा बॉस कौन है? कीर स्टार्मर। यही कारण है कि वह बलात्कारी गिरोहों की जांच करने से इनकार कर रही हैं, क्योंकि इसका आरोप आखिरकार कीर स्टार्मर पर ही आएगा।’’
मस्क का आरोप है कि प्रधानमंत्री स्टार्मर 15 वर्ष पहले जब सीपीएस के निदेशक थे, तब रेप पीड़िताओं को सजा दिलाने में नाकाम रहे थे। 2008 से 2013 तक सीपीएस प्रमुख रहते हुए वे ब्रिटेन के बलात्कार वाले मामले में सहभागी थे। ब्रिटेन के इतिहास के सबसे बड़े अपराध में अपनी मिलीभगत के लिए उन्हें आरोपों का सामना करना चाहिए। मस्क ने 2022 में जारी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा कि 1997 से 2013 के बीच रॉदरहैम, कॉर्नवाल, डर्बिशायर, रोशडेल और ब्रिस्टल जैसे शहरों में कम से कम 1400 नाबालिग बच्चियों को यौन शोषण का शिकार बनाया गया। आरोपियों में सबसे अधिक पाकिस्तानी मूल के थे। अधिकांश लड़कियों को एक संगठित गिरोह ने बहला-फुसलाकर शिकार बनाया और उनकी तस्करी की। सबसे पहला मामला रॉदरहैम का था। बाद में जांच हुई तो उत्तरी इंग्लैंड के कई शहरों में ऐसे और मामले मिले।
2017 में ब्रिटेन का थिंक टैंक कहे जाने वाले ‘क्विलियम फाउंडेशन’ ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इसके अनुसार, 16-17 वर्ष की लगभग 50,000 लड़कियां ग्रूमिंग गैंग की शिकार हुईं, लेकिन मात्र 5,000 लड़कियों ने ही शिकायत दर्ज कराई थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि गिरोह के 84 प्रतिशत अपराधी ‘एशियाई’ मूल के हैं। यानी सीधे-सीधे पाकिस्तानियों का नाम नहीं लिया गया। इसके विपरीत, 2014 में प्रोफेसर एलेक्सिस जे. ने रॉदरहैम मामले की स्वतंत्र समीक्षा की थी। इसमें उन्होंने निष्कर्ष निकाला था कि बच्चियों का यौन शोषण करने वाले ‘ग्रूमिंग गैंग’ में अधिकांश पाकिस्तानी मूल के थे।
इनमें 2010 में दोषी ठहराए गए पांच पाकिस्तानी भी शामिल थे। इसी तरह, फरवरी 2012 में ग्रेटर मैनचेस्टर पुलिस ने रोशडेल कांड में दोषी पाए गए अपराधियों की पहचान ब्रिटिश पाकिस्तानी के रूप में की थी। लेकिन पिछले वर्ष ब्रिटेन की तत्कालीन गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने जब कहा कि ‘ग्रूमिंग गैंग’ में शामिल अधिकांश अपराधी ब्रिटिश पाकिस्तानी हैं, तो न केवल ब्रिटेन में उनके बचाव में कुछ लोग और संस्थाएं खड़ी हो गई थीं, बल्कि पाकिस्तान ने भी कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था कि किसी एक व्यक्ति के अपराध के आधार पर समूचे समुदाय को दोषी ठहराना उचित नहीं है।
एक-एक कर उघड़ती परतें
अब कुख्यात ‘ग्रूमिंग गैंग’ पर व्यापक बहस शुरू हुई है तो सोशल मीडिया पर लोग पुरानी सभी रिपोर्ट के हवाले से इसकी भयावह सच्चाई को सामने ला रहे हैं। इसी क्रम में एक यूजर ने एक्स पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें रॉदरहैम की पीड़िता से लेबर पार्टी की तत्कालीन सांसद नाज शाह ने कहा था कि वह ‘डाइवर्सिटी’ अर्थात् विविधता की भलाई के लिए अपना मुंह बंद रखे। कई बार ऐसा भी हुआ है कि किसी पिता ने अपनी बच्ची को ‘ग्रूमिंग गैंग’ के शिकंजे से छुड़ाने का प्रयास किया तो पुलिस ने उसे ही जेल भेज दिया। ऐसे ही एक पिता के वीडियो को एक यूजर ने साझा किया, जिसने अपनी बेटी को बचाने का प्रयास किया था। एक अपार्टमेंट में उसकी बेटी का बलात्कार हो रहा था। उसने पुलिस से शिकायत की तो उसे ही गिरफ्तार कर लिया गया था।
इसे लेकर हैरी पॉटर की लेखिका जेके रोलिंग, जो वैसे भी कम्युनिस्ट लॉबी के निशाने पर रहती हैं, ने भी एक्स पर ‘ग्रूमिंग गैंग’ शब्द पर सवाल उठाया। उन्होंने लिखा, ‘‘बलात्कार करने वाले गिरोहों (इन्हें ‘ग्रूमिंग’ गिरोह क्यों कहा जाता है? यह तो उन लोगों को ‘चाकू रखने वाले’ कहने जैसा है जो लोगों को चाकू मार देते हैं) ने रॉदरहैम में लड़कियों के साथ जो किया, उसके बारे में जो विवरण सामने आ रहे हैं, वे बहुत भयावह हैं। इस मामले में पुलिस पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगे हैं, वे तो कल्पना से भी परे हैं।’’
दरअसल, जेके रोलिंग ने पत्रकार सैम एशवर्थ की एक रिपोर्ट के एक अंश को साझा किया था। उसमें एक पीड़िता के हवाले से पुलिस की लापरवाही और भ्रष्टाचार की बातें भी की गई थीं। उसी की अगली पोस्ट में पत्रकार ने यह भी लिखा था कि कई पीड़िता ऐसी थीं, जिनके पिता ने बताया कि जब वे पुलिस के पास मदद मांगने गए तो उन्हें प्रताड़ना मिली, मदद नहीं। इसी तरह, radiyogena नामक एक्स हैंडल पर एक वीडियो मिल जाएगा, जिसमें 13 वर्ष की दो लड़कियों की कहानी है। इसमें बताया गया है कि वे बिना कपड़ों के 7 पाकिस्तानियों के साथ घर में शराब पी रही थीं। लेकिन पुलिस ने किसे गिरफ्तार किया? दोनों नाबालिग लड़कियों को, क्योंकि वे नशे में थीं।
एलन मस्क ने ब्रिटिश पत्रकार टॉमी रॉबिन्सन की रिहाई के लिए भी एक पोस्ट लिखी है। ब्रिटेन के इस्लामीकरण के खिलाफ आवाज उठाने वाले रॉबिन्सन ने ‘ग्रूमिंग गैंग’ पर एक डाक्यूमेंट्री बनाई थी। नतीजा, वे जेल में हैं। उनकी अनुपस्थिति में उनकी टीम सोशल मीडिया पर सक्रिय है। टीम ने उनके एक्स हैंडल पर एक पीड़िता निकोल की आपबीती लिखी है।
इसमें लिखा है, ‘‘ब्रिटेन का बलात्कार-प्रकरण 1, निकोल की कहानी। निकोल 11 वर्ष की थी, जब टेलफोर्ड में ‘ग्रूमिंग गैंग’ ने उसके साथ बलात्कार किया और उसे वेश्यावृत्ति में धकेल दिया। यह उस इलाके में हुए ऐसे कई मामलों में से एक है। एक व्यक्ति उच्च सुरक्षा वाली जेल में एकांत कारावास में सड़ रहा है, क्योंकि उसने यहां की लड़कियों के साथ हो रहे इस संगठित और पूरी तरह से व्यवसाय बन चुके शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। वह व्यक्ति टॉमी रॉबिन्सन हैं।
रॉबिन्सन एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, जो ब्रिटेन में बढ़ते कट्टरपंथ और मुस्लिम घुसपैठ के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। उनका मानना है कि इस्लाम एक ‘बीमारी’ है। मुसलमान यूरोप पर आक्रमण कर रहे हैं। वे यूरोपीय जीवनशैली के लिए खतरा हैं।
2016 में उन्होंने कहा था, ‘‘मैं अति-दक्षिणपंथी नहीं हूं… मैं सिर्फ इस्लाम का विरोधी हूं। मेरा मानना है कि यह पिछड़ा हुआ और फासीवादी है। मौजूदा शरणार्थी संकट का शरणार्थियों से कोई लेना-देना नहीं है। यह यूरोप पर मुस्लिम आक्रमण है।’’ यही कारण है कि उन्हें ‘दक्षिणपंथी इस्लाम विरोधी कार्यकर्ता’ और ‘इस्लामोफोबिक चरमपंथी’ भी कहा जाता है। रॉबिन्सन इंग्लिश डिफेंस लीग (ईडीएल) के सह संस्थापक हैं, जिसकी स्थापना 2009 में ब्रिटेन के न्यूलटन में की गई थी। इसके बैनर के तले वे इस्लामिक खतरे को लेकर आवाज भी उठाते रहे हैं।
रॉबिन्सन ने ‘मुस्लिम आप्रवासन’ पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान करते हुए कहा था कि यूरोप में आने वाले मुस्लिम ‘महिलाओं को परेशान कर रहे हैं, उनके साथ बलात्कार कर रहे हैं। वे सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से घुलने-मिलने वाले नहीं हैं।’’ इससे पहले 2011 में रॉबिन्सन ने बर्मिंघम को ‘ब्रिटेन का आतंकवादी केंद्र्र’ कहा था। रॉबिन्सन को पहले भी कई बार गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है। उन पर कई मामले दर्ज हैं।
मुसलमानों का खौफ!
श्वेत लड़कियों के साथ हो रहे इस जघन्य अपराध पर कोई कार्रवाई सिर्फ इसलिए नहीं की गई, क्योंकि वहां के राजनेताओं को यह डर था कि मुस्लिम विरोधी दंगे भड़क सकते हैं। प्रशासन, पुलिस और मीडिया पूरे प्रकरण को केवल इस कारण दबाते रहे कि यदि ये अपराध सामने आए तो मुस्लिमों के प्रति नफरत बढ़ जाएगी। क्या मुस्लिमों के प्रति नफरत न बढ़े, कथित विविधता पर आंच न आए, इसके लिए लड़कियां कुर्बान होती रहेंगी?
इंग्लैंड के स्वतंत्र विचारक इम्तियाज महमूद कहते हैं कि पश्चिम की समृद्धि निजी संपत्ति का अधिकार, व्यापार की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से बनी थी। लेकिन हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा का सम्मान नहीं करते हैं। यदि ब्रिटेन अपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कायम रखना चाहता है, तो उसे अपने यहां मुसलमानों के आप्रवासन को रोकना होगा। वैसे तो सभी पश्चिमी देशों को ऐसा करना चाहिए था। लेकिन बजाए इसके उन्होंने मुसलमानों के लिए दरवाजे पूरी तरह से खोल दिए और उनके वैध-अवैध आप्रवासन को भी प्रोत्साहन दिया।
इम्तियाज महमूद के अनुसार, ‘काफिर समाज’ में मतभेद ही इस्लाम की मूल ताकत है। ‘काफिर’ की तरह मुसलमान शिक्षा, करियर, धन, घर, खेल आदि नहीं चाहते। पश्चिम में वे बेहतर जीवन के लिए भी नहीं आए हैं। वे तो सत्ता पर कब्जा करने आए हैं। वे पूरे विश्व में, हर देश में सत्ता चाहते हैं। अपने लक्ष्य को पाने के लिए इस्लाम वैसे लोगों की पहचान कर उन्हेंं पालता-पोसता है और धन उपलब्ध कराता है, जो समाज में ‘फॉल्ट लाइन’ बनाते और उसे बढ़ाते हैं।
पश्चिम के साथ अभी तक वामपंथी जो कर रहे थे, इस्लाम भी वही कर रहा है। इसने वामपंथियों के हथकंडों को अपना लिया है। इस्लाम शिकार बनाने में माहिर है। लेकिन कई दशक पहले वामपंथियों ने इस्लाम को पश्चिम का शिकार घोषित किया था। इसलिए शुरुआत में पश्चिम के लोगों ने खुले मन से मुसलमानों का स्वागत किया। लेकिन आगे क्या? यदि कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया तो पश्चिम में आने वाले वर्ष कैसे होंगे?
पाकिस्तानी सेना के पूर्व ब्रिगेडियर एस.के. मलिक ने भी अपनी पुस्तक ‘द कुरानिक कॉन्सेप्ट आफ वॉर’ में लिखा है कि काफिरों को समर्पण करने के लिए आतंक फैलाया जाता है। इम्तियाज महमूद आगे कहते हैं कि पश्चिम में इस्लाम पहले ही दो स्तरीय पुलिस व्यवस्था हासिल कर चुका है। दो स्तरीय पुलिसिंग शरिया के अलावा कुछ नहीं है, क्योंकि शरीयत में मुसलमानों और काफिरों के लिए अलग-अलग कानून हैं। अंत में स्थिति यह हो जाएगी कि ‘काफिरों’ के पास मुसलमानों के पालतू जानवरों से भी कम अधिकार होंगे। इसमें लिबरल, सेकुलर गैंग इस्लाम का सबसे बड़ा मददगार है।
ऐसा कोई भी समाचार, जो लोगों को इस्लाम की सच्चाई से अवगत करा सकता है, उसे मीडिया द्वारा प्रकाशित या प्रसारित नहीं किया जाता। लेकिन दुनिया में कहीं भी मुसलमानों के साथ कुछ होता है, तो उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है और जान-बूझकर कई दिनों तक चर्चा में रखा जाता है। इस तरह से एक छद्म वास्तविकता तैयार की जाती है, जिसका असर यह होता है कि औसत नागरिक यह समझने की भूल कर बैठता है कि ‘मुसलमानों को प्रताड़ित किया जा रहा है।’ इसलिए जब वह उन्हें पश्चिमी शहर की सड़कों पर ‘काफिरों’ को मारते हुए देखता है, तो सब कुछ माफ कर देता है।
ब्रिटेन में यही हो रहा है। विविधता के नाम पर पाकिस्तानियों के लिए ‘एशियाई’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। एशियाई नागरिक लिखते ही उसमें हिंदू, सिख, जापानी, श्रीलंकाई आदि शामिल हो जाते हैं। नतीजा, उनके प्रति नफरत बढ़ती है, जबकि ऐसे मामलों से उनका दूर-दूर तक कोई लेना-देना ही नहीं होता। भारत का ही उदाहरण लें। जब मदरसे के किसी मौलवी के बच्चे-बच्चियों से दुष्कर्म और बलात्कार के मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो मीडिया में उसे ‘शिक्षक’ बताया जाता है। इस तरह से अपराधों में संलिप्तता के बावजूद मुसलमानों के लिए सुरक्षा का आवरण तैयार किया जाता है।
क्या इस छल के खिलाफ भी आवाज नहीं उठनी चाहिए कि एक समुदाय के प्रति कथित नफरत न बढ़े तो उस नफरत के दायरे में आने वाले समुदायों की संख्या ही बढ़ा दी जाए? एक नहीं, कई रिपोर्टयह संकेत देती हैं कि ब्रिटेन में बलात्कार करने वाले अधिकांशत: किस समुदाय और किस मुल्क के हैं? फिर भी पहचान और अपराध के साथ ऐसा छल क्यों? ऐसे कई प्रश्न हैं, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उत्तर मिलेगा या वामपंथी-सेकुलर मीडिया उन लाखों पीड़ाओं को स्वर दे पाएगा, इसमें संदेह ही है।
क्या है ग्रूमिंग गैंग?
यह एक आपराधिक गिरोह है, जिसमें अधिकांश पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश मुस्लिम शामिल हैं। यह गिरोह ज्यादातर कम उम्र की लड़कियों को अपना शिकार बनाकर उनका शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण करता है। गिरोह के सदस्य अपनी बातों में फंसाकर उन्हें यह विश्वास दिलाते हैं कि वे उनके हितैषी हैं। यह गिरोह अमूमन सोशल मीडिया, गेमिंग और चैट रूम के जरिये लड़कियों को फंसाता है।
फिर उन्हेंं कई लोगों के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है। एक बार इस गिरोह के चंगुल में फंसने के बाद लड़कियों का इनसे पीछा छुड़ाना मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जाता है। गिरोह के शातिर इन्हें शराब, गांजा और ड्रग्स की लत लगा देते हैं, ताकि वे नशे में रहें और जैसा वे कहें, वैसा करती रहें। हमेशा नशे में होने के कारण लड़कियां यह समझ ही नहीं पाती हैं कि उनका यौन शोषण हो रहा है। यह गिरोह लड़कियों की मानव तस्करी भी करता है। कइयों को तो गर्भपात भी कराना पड़ा।
‘पाकिस्तानी पुरुषों का गैंग’ की चर्चा 2023 में भी हुई थी। उस समय सुएला ब्रेवरमैन ब्रिटेन की गृह मंत्री थीं। तब उन्होंने कहा था कि ‘पाकिस्तानी पुरुषों का गैंग’ श्वेत लड़कियों को निशाना बना रहा है। उनका आरोप था कि ब्रिटिश मूल के पाकिस्तानी लड़कियों को ड्रग्स देते हैं, उनका रेप करते हैं। लेकिन ऐसे मामलों में अधिकारी आंखें बंद कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने कार्रवाई की तो वे ‘नस्लभेदी’ ठहरा दिए जांएगे। इसके बाद सुएला विपक्ष के निशाने पर आ गई थीं। उनके आरोपों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा था कि ‘ग्रूमिंग गैंग’ को खत्म करने के लिए जो भी संभव होगा, सरकार कदम उठाएगी। उन्होंने ‘ग्रूमिंग गैंग’ के खिलाफ एक टास्क फोर्स बनाने का फैसला भी लिया था। साथ ही, यह भी कहा था कि गैंग के सदस्य किस नस्ल के हैं, इसका डेटा भी बनाया जाएगा।
उस समय ब्रिटिश मूल के पाकिस्तानियों की करतूतों पर परदा डालने के प्रयास भी हुए। यूनिवर्सिटी आफ मैनचेस्टर के चांसलर नाजिर अफजल ने गृह मंत्रालय की 2020 की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं है, जिसमें बाल यौन उत्पीड़न के लिए किसी ‘खास वर्ग’ को जिम्मेदार ठहराया जा सके। बाकायदा 84 प्रतिशत बच्चियों के यौन अपराधी श्वेत ब्रिटिश हैं। दूसरी ओर, एक पीड़िता डॉ. एला हिल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि ‘ग्रूमिंग गैंग’ जातीय और पांथिक आधार पर लड़कियों को शिकार बनाता है।
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