भारत में कुछ वर्ष पहले तक मुस्लिम कट्टरपंथी केवल सनातन परंपरा की यात्राओं पर हमले करते थे, लेकिन अब राष्ट्रीय पर्व और तिरंगा यात्रा पर भी हमले करने लगे हैं। कट्टरपंथी हमलावरों को बचाने के लिए बाकायदा एक नेटवर्क काम कर रहा है, जो सत्ता के गलियारों से लेकर अदालतों तक सक्रिय है। इसमें कुछ सामाजिक संगठन का मुखौटा ओढ़े एनजीओ भी शामिल हैं, जिन्हें कट्टरपंथियों को सजा से बचाने और उनकी आर्थिक सहायता के लिए विदेशों से पैसे मिलते हैं। इसकी स्पष्ट झलक दिल्ली के दंगों में देखी गई थी और अब चंदन गुप्ता हत्याकांड में तो न्यायालय के सामने ही सात एनजीओ के नाम आगे आए हैं। हाल ही में एनआईए अदालत ने इस मामले में 28 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने इस हत्याकांड के आरोपियों को बचाने में देसी-विदेशी एनजीओ की भूमिका और उनके विदेशी वित्त पोषण पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
भारत ने विकास की एक नई अंगड़ाई ली है। आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी ही नहीं, अंतरिक्ष अनुसंधान में भी नए आयाम स्थापित हुए हैं, जिसका लोहा पूरे विश्व ने माना है। यह संपूर्ण भारतवासियों के लिए गर्व की बात है कि जिस इंग्लैंड ने कभी भारत पर शासन किया, अब उसी के उपग्रहों के प्रक्षेपण का माध्यम भारतीय वैज्ञानिक संस्था इसरो बनी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी इसरो की तकनीकी लागत सीमित करने की युक्ति की प्रशंसा की है। लेकिन भारत की इस बढ़ती प्रतिष्ठा से बौखलाई भारत विरोधी कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां इसके विकास की गति को अवरुद्ध करने के षड्यंत्र रचने लगीं। इन दिनों ये षड्यंत्र दो प्रकार से हो रहे हैं- राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न करने और सामाजिक जीवन को अशांत करने की कोशिश करके।
भारत के राजनीतिक वातावरण को अस्थिर करने के कुचक्र में सक्रिय अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस ने कैसे भारत के कुछ मीडिया समूहों और राजनीतिक दलों में अपनी घुसपैठ बढ़ाई है, यह समाचार अब छिपा नहीं है। सड़क से संसद तक इसमें शामिल नाम सामने आ चुके हैं। दूसरी ओर, भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय शक्तियां समाज जीवन को षड्यंत्रपूर्वक अशांत करने वाले अपराधियों के बचाव में भी लगी हैं। इसकी पुष्टि उत्तर प्रदेश के कासगंज में तिरंगा यात्रा में बलिदान हुए चंदन गुप्ता के हत्याकांड की सुनवाई के दौरान हुई। विशेष अदालत के सामने कुछ देसी और विदेशी एनजीओ के नाम सामने आए हैं, जो इस्लामी कट्टरपंथियों के माध्यम से भारत के सामाजिक जीवन में अशांति ही नहीं, टकराव पैदा करने का षड्यंत्र रच रहे हैं।
अदालत की टिप्पणी
साम्प्रदायिकता का तात्पर्य उस संकीर्ण मनोवृत्ति से है, जो मजहब और पंथ के नाम पर संपूर्ण समाज तथा राष्ट्र के व्यापक हितों के विरुद्ध व्यक्ति को केवल व्यक्तिगत मजहब के हितों को प्रोत्साहित करने तथा उन्हें संरक्षण देने की भावना को महत्व देती है। साम्प्रदायिकता भारत के राष्ट्रीय एकीकरण के विरुद्ध अपने समुदाय की आवश्यक एकता पर बल देती है। इस प्रकार साम्प्रदायिकता रूढ़िवादी सिद्धांतों में विश्वास, असहिष्णुता असहष्णिुता तथा अन्य मतों के प्रति नफरत को भी बढ़ावा देती है, जो कि समाज को विभाजन की ओर अग्रसर करता है। साम्प्रदायिकता देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी चुनौती प्रस्तुत करती है, क्योंकि साम्प्रदायिक हिंसा को भड़काने वाले एवं उससे पीड़ित होने वाले, दोनों ही पक्ष देश के ही नागरिक होते हैं। एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के प्रति नफरत का भाव होने के कारण उनमें भय, शंका एवं खतरे का भाव उत्पन्न होता है। इस मनोवैज्ञानिक भय के कारण लोगों के बीच विवाद, एक-दूसरे के प्रति नफरत, क्रोध और भय का माहौल लगातार बना रहता है। यह भी देखा गया है कि साम्प्रदायिक हिंसा राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा या चुनौती बन जाती है, क्योंकि साम्प्रदायिक संघर्षों में बाहरी तत्व या विदेशी शक्तियां भी हस्तक्षेप करती रहती हैं। यह भी पाया गया है कि साम्प्रदायिक हिंसा तथा हिंसा के अन्य रूपों, जैसे आतंकवाद, व्रिदोह, उग्रवाद आदि के बीच साठगांठ होती है।
महंगी पड़ी मुस्लिम लड़की दोस्ती
30 नवंबर, 2024 – प्रयागराज के सारा इस्माइल गांव में मुस्लिम लड़की से दोस्ती करने पर मुसलमानों ने 15 वर्षीय शैलेश यादव को बेरहमी से मार डाला।
31 अक्तूबर, 2024 – महाराष्ट्र के मीरा-भायंदर में मुस्लिम लड़की से संबंध रखने पर 21 वर्षीय रघुनंदन पासवान की मुसलमानों ने हत्या की।
19 अगस्त, 2024 – उत्तर प्रदेश के हरदोई स्थित हसनापुर गांव में 28 वर्षीय हिंदू युवक की हत्या, मुस्लिम लड़की के साथ रिलेशनशिप में था।
3 अगस्त, 2024 – गुजरात के द्वारका में मुस्लिम लड़की से शादी करने पर हिंदू युवक को धोखे से बुलाया, फिर लड़की के परिजनों कुल्हाड़ी से काट डाला।
25 जून, 2024 – पुणे के यरवदा में अपनी बहन के साथ प्रेम संबंध रखने पर मुस्लिम युवक ने हिंदू युवक के बुजुर्ग पिता की हत्या की।
20 नवंबर, 2023 – यूपी के प्रतापढ़ स्थित एक गांव में मुस्लिम परिवार ने अपनी लड़की से संबंध रखने पर दिलीप जायवाल की हत्या की।
14 अक्तूबर, 2023 – मुंबई में अपनी लड़की से संबंध रखने पर नाराज मुस्लिम बाप ने बेटे के साथ करन रमेश चंद्र की हत्या की।
13 सितंबर, 2023 – देहरादून में हिंदू युवक की गर्लफ्रेंड ने भाई के साथ मिलकर हत्या कर दी।
2 जुलाई, 2023 – दिल्ली के जकिरा क्षेत्र में मुस्लिम लड़की से संबंध रखने पर 20 वर्षीय राज कुमार की चाकू से गोदकर हत्या।
9 जून, 2023 – हिमाचल के चंबा में मुस्लिम लड़की से संबंध रखने पर उसके परिजनों ने 21 वर्षीय मनोहर को काट कर 8 टुकड़े किए।
1 सितंबर, 2022 – महाराष्ट्र के अहमदनगर में आदिवासी युवक ने मुस्लिम लड़की से शादी की, ससुराल वालों ने अगवा कर उसे मार डाला।
27 मई, 2022 – कर्नाटक के गुलबर्गा में मुस्लिम लड़की से संबंध रखने पर दलित युवक की हत्या।
6 मई, 2022 – हैदराबाद में मुस्लिम लड़की से शादी करने पर लड़की के परिजनों ने दलित युवक की हत्या की।
25 अक्तूबर, 2021 – कर्नाटक के टुमकुर में मुस्लिम परिवार ने अपनी बेटी से संबंध रखने पर हिंदू युवक को अगवा हत्या की।
सुनियोजित थी कासगंज हिंसा
उत्तर प्रदेश के कासगंज में चंदन गुप्ता की हत्या 26 जनवरी, 2018 को उस समय हुई थी, जब वे राष्ट्रीय जागरण के लिए निकाली जा रही तिरंगा यात्रा में सहभागी थे। वे राष्ट्र गौरव के प्रतीक तिरंगे को लेकर सबसे आगे चल रहे थे। युवाओं में राष्ट्र जागरण का भाव जगाने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद 15 अगस्त और 26 जनवरी को तिरंगा यात्राओं का आयोजन करता है। कासगंज में तिरंगा यात्रा इसी उद्देश्य से निकाली गई थी। लेकिन कट्टरपंथी मुसलमानों की भीड़ ने तिरंगा यात्रा पर हमला कर दिया, जिसमें चंदन गुप्ता बलिदान हो गए, जबकि अन्य कई युवा घायल हो गए थे। जिहादियों की भीड़ ने इसके बाद पूरे कासगंज में जमकर हिंसा की। उस समय हिंसा के आरोपियों को सजा दिलाने की मांग को लेकर प्रदेश में कई स्थानों पर शांति मार्च निकाले गए।
इस मामले में लगभग 6 वर्ष बाद 3 जनवरी, 2025 एनआईए अदालत का फैसला आया। अदालत ने जिन लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई, उनमें आसिफ कुरैशी उर्फ हिटलर, असलम कुरैशी, असीम कुरैशी, शबाब, साकिब, मुनाजिर रफी, आमिर रफी, सलीम, वसीम, नसीम, बबलू, अकरम, तौफीक, मोहसिन, राहत, सलमान, आसिफ, आसिफ जिम वाला, निशू, वासिफ, इमरान, शमशाद, जफर, शाकिर, खालिद परवेज, फैजान, इमरान, शाकिर, जाहिद उर्फ जग्गा शामिल हैं। अदालत ने नसरुद्दी और असीम कुरैशी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया, जबकि सुनवाई के दौरान एक आरोपी अजीजुद्दीन की मौत हो गई। लखनऊ एनआईए न्यायालय ने 129 पन्नों के अपने निर्णय में कहा है कि तिरंगा यात्रा में शामिल हिंदुओं पर आरोपियों ने सुनियोजित हमला किया। वे न केवल लाठी-डंडों से लैस थे, बल्कि उनके पास तमंचे और कारतूस भी थे। इन्होंंने चंदन गुप्ता की हत्या को अंजाम दिया। अदालत ने कहा कि कासगंज के साम्प्रदायिक दंगे को केवल छिटपुट और अचानक हुई घटना मानना उचित नहीं होगा। इसे पूर्व नियोजित घटना मानते हुए तथा स्थानीय, प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी घटनाओं के अपराधियों एवं दंगाइयों को कठोर संदेश देने के लिए कठोर दंड देना उचित होगा।
षड्यंत्रकारी एनजीओ का पर्दाफाश
हत्याकांड के आरोपियों को बचाने के लिए किस योजना से काम किया गया, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि एनआईए अदालत को निर्णय देने में 6 वर्ष लग गए। तकनीकि बिंदु उठाकर उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया गया। इन आरोपियों को बचाने के लिए केवल भारत के कट्टरपंथी मुसलमान ही नहीं, बल्कि एनजीओ भी सक्रिय थे, जिन्हें विदेशों से आर्थिक सहायता मिली। ऐसे 7 एनजीओ के नाम अदालत के सामने आए हैं, जिनके तार न्यूयॉर्क और लंदन से जुड़े हुए हैं। इनका संपर्क भारत के कुछ एनजीओ से है। ये एनजीओ स्थानीय लोगों से मिलकर कासगंज के दंगाइयों और चंदन गुप्ता के हत्यारों को बचाने के लिए अंत तक पूरी शक्ति से जुटे रहे।
न्यायालय ने इन एनजीओ के वित्तपोषण के स्रोत और इसके उद्देश्यों को लेकर कुछ प्रश्न भी उठाए और सरकार से भी इसकी जांच के लिए कहा है। एनआईए अदालत के समक्ष जिन एनजीओ के नाम सामने आए, उनमें न्यूयॉर्क से संचालित ‘अलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटिबिलिटी, वॉशिंगटन से संचालित ‘इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल’ और लंदन से संचालित ‘साउथ एशिया सॉलिडैरिटी ग्रुप’ शामिल हैं। इनके अलावा, तीन भारतीय एनजीओ के नाम भी हैं। इनमें सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस (मुंबई), पीपुल्स यूनियन फॉर सिबिल लिबर्टीज (नई दिल्ली), लखनऊ से संचालित ‘रिहाई मंच’ और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की लीगल सेल भी सक्रिय थी। न्यायालय ने यह भी कहा कि बचाव पक्ष ने खुद माना है कि इन गैर-सरकारी संगठनों ने ‘स्वतंत्र जांच-कासगंज का सच’, ‘फर्जी पुलिस जांच ने हिंदुओं को बचाया, मुसलमानों को फंसाया’ नाम से जो रिपोर्ट प्रस्तुत किए हैं, उसकी जांच के लिए कोई मौके पर गया ही नहीं। साथ ही, अदालत ने यह सवाल भी उठाया कि ‘इन एजेंसियों की फंडिंग कहां से हो रही है और इनका सामूहिक उद्देश्य क्या है?’
न्यायालय के सामने यह बात भी आई कि इन संस्थाओं से जुड़े लोगों ने केवल आरोपियों को बचाने का ही प्रयास नहीं किया, अपितु ऐसे अनावश्यक बिंदु भी उठाए, जिससे मुकदमे के निबटारे में समय लगा। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे गंभीर अपराध के आरोपियों को नि:शुल्क कानूनी सहायता देना किसी एनजीओ का अपना अधिकार नहीं हो सकता, भले ही नि:शुल्क कानूनी सहायता प्राप्त करना किसी आरोपी का अधिकार हो। इसी के साथ न्यायालय ने अपने निर्णय की प्रति भारत सरकार के गृह मंत्रालय और बार काउंसिल आफ इंडिया को भी भेजी है, ताकि न्यायायिक प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब रुके।
तिरंगा यात्रा पर हमले
15 अगस्त, 2024- गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के सांगानी गांव में मुसलमानों ने तिरंगा यात्रा में शामिल छात्रों से भगवा रंग की टी-शर्ट उतरवाई।
14 अगस्त, 2024- मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के कोयंबटूर में भाजपा को 78वें स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा रैली आयोजित करने की अनुमति दी, पर पुलिस ने कानून-व्यवस्था बिगड़ने का हवाला देकर अनुमति देने से इनकार किया।
18 अगस्त, 2023 – गुजरात के आणंद में कट्टरपंथी मुसलमानों की भीड़ ने तिरंगा यात्रा के दौरान 21 वर्षीय कल्पेश चौहान को पहले बाइक से टक्कर मारी, फिर नीचे गिरा कर उसे बल्ले से पीटा।
17 अगस्त, 2023 – हरियाणा के करनाल में गांव गढ़ी भरल में तिरंगा यात्रा निकाल रहे लोगों पर मुसलमानों ने पथराव किया और तिरंगा फाड़ा।
10 अगस्त, 2022 – उत्तर प्रदेश के हरदोई के पाली कस्बे में तिरंगा यात्रा के दौरान कट्टरपंथी मुसलमानों ने हिंदू परिवार पर हमला किया। एक हिंदू महिला को गोली मार कर घायल किया। आरोपियों को गिरफ्तार करने गई पुलिस पर भी पथराव किया।
15 अगस्त, 2022 – उत्तर प्रदेश के बदायूं में मदरसा संचालक इमाम मोहम्मद रिजवान बच्चों के साथ तिरंगा यात्रा निकालने की तैयारी कर रहे थे। मुस्लिम युवकों ने विरोध किया और इमाम को पीटा और मदरसे से भी पथराव किया।
25 जनवरी, 2019 – अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में गणतंत्र दिवस पर तिरंगा यात्रा निकालने पर एएमयू प्रशासन ने दो हिंदू छात्र नेताओं को कारण बताओ नोटिस भेजा।
जनसांख्यिकीय परिवर्तन
1 नवंबर, 2024 – यूपी के कुशीनगर के बांसगांव खास में पड़ोसी मुस्लिमों ने सच्चिदानंद पांडेय को पलयान के लिए मजबूर किया।
27 अक्तूबर, 2024 – बल्लभगढ़ (हरियाणा) के सुभाष कॉलोनी में दिवाली के दिन पड़ोसी मुसलमानों ने हिंदुओं के घरों पर र्इंट-पत्थर बरसाए, दरवाजे तोड़ दिए। हिंदू परिवारों को घर के बाहर लिखना पड़ा ‘यह मकान बिकाऊ है।’
19 अगस्त, 2024 – बिजनौर (उत्तर प्रदेश) के मोहल्ला सराय रफी में मुस्लिम युवक को हिंदू लड़की को अश्लील मैसेज भेजता था। परिजनों ने विरोध पर 400 मुसलमानों की भीड़ ने हमला किया, परिवार पलायन के लिए मजबूर हुआ।
10 जुलाई, 2024 – महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल वानीपुरा बस्ती में हिंदू घरों पर कब्जा कर बस्ती का नाम मस्तान चौक रखा। हिंदू परिवारों का बिना घर बेचे पलायन।
5 फरवरी, 2024 – दरभंगा (बिहार) के मुस्लिम बहुल गांव में इकलौते हिंदू परिवार को जिहादियों ने गांव छोड़ने पर मजबूर किया।
8 फरवरी, 2023 – हरदोई (उत्तर प्रदेश) में 30 मुस्लिम हमलावरों ने हिंदू परिवार पर हमला किया, एक महिला सहित 5 घायल।
18 अगस्त, 2023 – पलवल (हरियाणा) स्थित गांव सराय में हिंदू परिवार पर जानलेवा हमला, मुसलमानों ने गांव छोड़ने को कहा।
16 जून, 2022 – गिरिडीह (झारखंड) के पंचबा थानाक्षेत्र में मुसलमानों से विवाद के बाद पुलिस की एकतरफा कार्रवाई। 150 हिंदुओं ने मकानों व दुकानों पर बिक्री के पोस्टर के लगाए।
15 जून, 2022 – नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) के महाजनी टोला में हिंदू परिवार पर पथराव कर पलायन के लिए मजबूर किया गया।
29 दिसंबर, 2022 – अररिया (बिहार) में बांग्लादेशी घुसपैठियों का दबदबा, पलायन को मजबूर हो रहे अल्पसंख्यक हिंदू।
29 मई, 2022 – पलामू (झारखंड) में मुस्लिमों ने मदरसे की जमीन बता 50 महादलित परिवारों के घर तोड़े, पीटकर गांव से भगाया।
26 मई, 2021 – अलीगढ़ के नूरपुर गांव में मुस्लिम दबंगों के आतंक से घर बेचकर 150 हिंदू परिवारों का पलायन।
15 अगस्त, 2016 – बिजनौर (उत्तर प्रदेश) के ढिकौला गांव में मुसलमानों से तंग आकर 7-8 हिंदू परिवारों का पलायन, शेष ने घर की दीवारों पर लिखा ‘मकान बिकाऊ है।’
8 जून, 2016 – उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल कैराना से 346 हिंदू परिवारों का पलायन।
हिंसा और बचाव की रणनीति
भारत के सांस्कृतिक या राष्ट्रीय आयोजनों पर हमला व हमलावरों को बचाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करने का यह अकेला या पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कट्टरपंथियों और आतंकियों को बचाने के प्रयास हुए हैं। आतंकी अफजल गुरु को बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से लेकर राष्ट्रपति भवन तक दौड़ लगाई गई, बड़े-बड़े वकील खड़े हुए, आधी रात को न्यायालय का द्वार खटखटाया गया, यह पूरे देश ने देखा है। कासगंज प्रकरण में भी यही हुआ। कासगंज की ही तरह देश के दूसरे हिस्सों में भी तिरंगा यात्रा रोकने के लिए हमले और पथराव किए गए। अनेक घटनाएं तो स्थानीय प्रशासन और वयोवृद्ध लोगों के बीच-बचाव के कारण पुलिस रिकॉर्ड में आई ही नहीं। लेकिन नौ स्थानों पर ऐसी बड़ी घटनाएं दर्ज की गर्इं, जिनमें दंगे, तोड़फोड़ और आगजनी की गई तथा पुलिस-प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा। इन सभी घटनाओं के पीछे इस्लामी कट्टरपंथी समूहों का ही हाथ था। इन सभी घटनाओं के आरोपियों के बचाव में जिस तत्परता से कुछ संगठन और व्यक्ति सामने आए, उससे इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता कि आरोपियों ने बचाव की रणननीति बनाकर ही उपद्रव किया था।
खटक रहा बढ़ता भारत
कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा राष्ट्रीय आयोजनों पर हमले की घटनाएं भले ही कम हों, लेकिन सनातन परंपरा के मान बिंदुओं और शोभा यात्राओं पर हमलों का इतिहास पुराना है। इन पर हमलों में तब से और तेजी देखी जा रही है, जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक भारत को सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। भारत में कुछ कट्टरपंथी समूह अशांति और अस्थिरता पैदा करके इसका रुपांतरण करने का षड्यंत्र हमेशा से करते रहे हैं। सनातनी परंपरा के त्योहारों पर पथराव, पाकिस्तान के झंडे लहराना, आतंकियों के समर्थन में जुलूस निकालना, उनकी बरसी मनाना, भारत के टुकड़े होने के नारे लगाना इसके उदाहरण हैं। इन कट्टरपंथियों को अब भारत की प्रगति अवरुद्ध करने का कुचक्र रचने वाली अंतरराष्ट्रीय शक्तियों का साथ भी मिल गया है। इससे राजनीति में भी इनका प्रभाव बढ़ा है और न्यायालयी प्रक्रिया में भी। बहुत पुरानी बात छोड़ दें और केवल तीन वर्ष के आंकड़े देखें तो सनातन परंपराओं के आयोजन जैसे-कांवड़ यात्रा, गणेशोत्सव और दशहरे पर पथराव की सौ से अधिक घटनाएं घटी हैं। ये किसी क्षेत्र विशेष की घटनाएं नहीं हैं, अपितु पूरे देश में घटी हैं।
मध्ययुगीन मानसिकता नहीं गई
उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक और दिल्ली से लेकर केरल तक देश के अधिकांश प्रदेशों में इन घटनाओं में दर्जनभर से अधिक लोगों की मौत हुई है। लूट, हिंसा और क्रूरता की जो मानसिकता लेकर मध्य एशिया के हमलावर भारत आए थे, वह मानसिकता सल्तनत काल में भी बनी रही। सनातन धार्मिक स्थलों के विध्वंस और परंपराओं के दमन से भारत का इतिहास अटा पड़ा है। स्वतंत्रता एवं भारत विभाजन के बाद भी यह क्रम कभी रुका नहीं। देश का कोई प्रांत, कोई वर्ष ऐसा नहीं बीता, जब कट्टरपंथी मुसलमानों ने कहीं मंदिर को खंडित नहीं किया हो या शोभायात्रा पर पथराव न किया हो।
सल्तनत काल में सनातनियों की हत्या करने में जिस क्रूरता का विवरण मिलता है, वही कू्ररता आज भी कट्टरपंथियों में देखी जा सकती है। इसका उदाहरण है बहराइच में रामगोपाल मिश्रा और दिल्ली दंगों में अंकित शर्मा की हत्या। इनके शवों पर गंभीर चोटों के निशान रोंगटे खड़े कर देते हैं। दिल्ली दंगों में किसी के सिर में ड्रिल तो किसी के सिर में सरिया घुसा दिया गया। छतों पर गुलेल से पेट्रोल बम और तेजाब फेंके गए। इतने युग बीत जाने के बाद भी न तो इनकी क्रूरता में कोई अंतर आया और न ही झुंड बनाकर हमला करने में।
जिस प्रकार एनजीओ और प्रभावी चेहरों की सक्रियता कासगंज प्रकरण में देखी गई, वैसे ही सक्रियता बहराइच के राम गोपाल मिश्रा के हत्यारोपियों को बचाने में देखी गई। बहराइच की घटना अक्तूबर 2024 की है। महराजगंज कस्बे में दुर्गा विसर्जन यात्रा को अब्दुल हमीद, सबलू, सरफराज व फहीम आदि ने रोकने का प्रयास किया, लेकिन यात्रा नहीं रुकी। सबसे आगे भगवा ध्वज लिए युवा राम गोपाल मिश्रा चल रहे थे। अचानक शोभायात्रा पर आसपास की छतों से पथराव होने लगा। पलक झपकते ही सैकड़ों कट्टरपंथी मुसलमानों की भीड़ एकत्र हो गई। जिहादी राम गोपाल को घसीट कर एक मकान में लगे और निर्ममता से उनकी हत्या कर दी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उनके शरीर का ऐसा कोई अंग नहीं जहां चोट के निशान न हों। इसके साथ ही पूरे क्षेत्र में मारपीट और तोड़-फोड़ शुरू हुई, जो अगले दिन भी जारी रही। जांच में पता चला कि दंगे की तैयारी पहले से कर ली गई थी। उस समय भी आरोपियों को बचाने के लिए जिला न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक सक्रियता देखी गई। शनिवार को अवकाश के दिन अदालत का दरवाजा खटखटाया गया। कुछ ऐसे एनजीओ भी सक्रिय थे, जो यह प्रचारित करने में जुटे थे कि उपद्रव डीजे बजाने को लेकर हुआ और राम गोपाल खुद मकान में घुसे थे। सोचने वाली बात है कि शोभा यात्रा में भगवा ध्वज लेकर आगे चल रहा युवक यात्रा छोड़कर किसी के घर में क्यों घुसेगा? इस मामले में 31 आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं। उनके बचाव में जो सक्रिय चेहरे सामने आए हैं, उनके तार दिल्ली दंगों और भारत माता के टुकड़े करने का नारा लगाने वालों के यहां आते-जाते दिखते रहे हैं।
दिल्ली दंगों में बचाव की वही रणनीति
दंगे के आरोपियों को बचाने की जो रणनीति और कुछ अंतरराष्ट्रीय एनजीओ की सक्रियता कासगंज, सम्भल और बहराइच की घटनाओं में देखी गई, वैसी ही योजना और सक्रियता दिल्ली के दंगों में भी देखी गई थी। दिल्ली में दंगा 24 फरवरी, 2020 को जाफराबाद और मौजपुर में हुआ था। इसमें अंकित शर्मा का शव दो दिन बाद 26 फरवरी को चांद बाग के नाले में मिला था। अंकित के शरीर पर चोटों के 51 निशान थे। यह प्रकरण 11 मार्च, 2020 को लोकसभा में भी उठा था।
इस दंगे में ड्यूटी पर तैनात हेड कांस्टेबल रतन लाल की भी हत्या हुई थी। उनके शरीर पर भी चोटों के अनेक निशान थे। दंगाइयों की यह भीड़ नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के विरोध के बहाने एकत्र हुई थी। प्रदर्शन के नाम पर एकत्र इस भीड़ ने भयंकर पथराव किया और घरों, वाहनों व दुकानों में तोड़फोड़ की। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच ने दिल्ली दंगे को गहरी साजिश माना। जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को इसका मास्टरमाइंड माना जा रहा है। माना जा रहा है कि आतंकी अफजल की बरसी मनाने के लिए जो कार्यक्रम आयोजित किया गया था, उसमें उमर खालिद की भूमिका थी। उमर खालिद का संपर्क भारत के कुछ कट्टरपंथी समूहों के सााि कुछ अंतरराष्ट्रीय एनजीओ से भी माना जा रहा है। दिल्ली दंगों के आरोपियों को बचाने के लिए राजनीतिक गलियारे से लेकर न्यायालय तक वैसी ही भागदौड़ हुई, जैसी आतंकी अफजल गुरु के प्रकरण से लेकर कासगंज, बहराइच और सम्भल में देखी गई है।
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